औरंगाबाद। जो कल तक कल-कल करती थीं आज बूंदों को तरस रही हैं। जिले से बहने वाली नदियों की यही स्थिति हो गई है। नदियां गायब होती जा रही हैं। यही स्थिति रही तो केवल नक्शे पर ही नदियां दिखेंगी, जमीन पर नहीं।कभी चट्टानों को तोड़कर गर्मी में भी अविरल बहने वाली नदियां सूखी पड़ी हैं। यह मानव जीवन के लिए शुभ संकेत नहीं है। नदियों में पानी नहीं रहने के कारण कृषि भी प्रभावित हो रही है।
नदी किनारे के गांव में पानी की किल्लत
जिले से होकर गुजरी उत्तर कोयल, बटाने, पुनपुन, केशहर, अदरी, बतरे व झरही समेत अन्य नदियाें में दरार फटी रहती है। नदियों के मिटने का सीधा असर पशुओं पर पड़ रहा है। नदी किनारे बसे गांवों का जलस्तर लगातार नीचे गिर रहा है। नदियों में पानी गायब होने के कारण जंगल में रहने वाले पशु भटककर गांव में पहुंच जा रहे हैं। दरअसल, बारिश नहीं होने के कारण नदियों में बाढ़ का पानी आना लगभग बंद हो गया है। पहले अविरल बहने वाली नदियां आज रेगिस्तान बनकर रह गई हैं। नदियों में पानी नहीं है। अदरी नदी, बतरे व पुनपुन नदी की स्थिति दयनीय है। अदरी नदी का अतिक्रमण कर लिया है। नदी में घर बना लिया गया है। अवैध खनन व अतिक्रमण को देखते हुए भी अधिकारी कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं।
पुनपुन नदी के अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा
पुनपुन नदी संरक्षण के अभाव में दम तोड़ रही है। नवीनगर प्रखंड के कुंड के पास पुनपुन नदी निकलती है। यहां से नवीनगर होते हुए गंगा में मिल जाती है। जानकार बताते हैं कि पहले इस नदी में पानी की अविरल धारा बहती थी। लेकिन यह नदी बरसाती बनकर रह गई है। गर्मी में चापाकल सूखने के कारण ग्रामीण इस नदी का पानी पीते थे। पुनपुन को आदि गंगे पुनपुन की संज्ञा दी गई है। श्रद्धालु नदी में पितृ तर्पण करते हैं। इस नदी की व्याख्या पुराणों में की गई है। नवीनगर के तत्कालीन सीओ राणा अक्षय प्रताप सिंह के नेतृत्व में पुनपुन नदी को अतिक्रमणमुक्त करने की मुहिम चलाई गई थी, लेकिन यह खानापूर्ति मात्र रही। फाइल पर ही अतिक्रमण हटाया गया। मालूम हो कि उद्गम स्थल से नवीनगर तक नदी की लंबाई करीब 11.5 किमी है। बिहार व झारखंड के सरैया, बारा, खजुरी, टंडवा व बसडीहा समेत दर्जनों गांव के बीच से नदी गुजरती है। पुनपुन नदी का अस्तित्व को बचाने एवं महत्ता और महिमा को उजागर करने के लिए पुनपुन महोत्सव का आयोजन किया जाता है। महोत्सव समिति के अध्यक्ष अभय वैद्य, सचिव राजेश अग्रवाल, शंकर प्रसाद व अरुण कुमार सिंह ने बताया कि पुनपुन नदी का अस्तित्व को बचाने की जरूरत है। इसके लिए सरकार व अधिकारियों को जागरूक होना होगा। अगर पुनपुन नदी की स्थिति सुधर जाए तो सैकड़ों गांवों के लिए जीवनदायिनी बन जाएगी। ग्रामीणों ने बताया कि नदी का मिटते अस्तित्व का सीधा अगर गांवों पर पड़ रहा है। दिन-प्रतिदिन जलस्तर गिरता जा रहा है।
उत्तर कोयल परियोजना से नहीं मिला लाभ
1972 में 1.25 लाख हेक्टेयर जमीन की सिंचाई के लिए उत्तर कोयल परियोजना का खाका तैयार हुआ था। तब परियोजना पर मात्र 30 करोड़ रुपये खर्च होता। वर्तमान में इस परियोजना पर 900 करोड़ रुपये से अधिक व्यय हुआ है, परंतु परियोजना अधूरी पड़ी है। 46 वर्षों में न जाने कितनी पीढि़यां गुजर गई, लेकिन सत्ता और व्यवस्था के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। परियोजना के गति पकड़ने के आसार बढ़े हैं, परंतु धरातल पर काम दिखाई नहीं दे रहा है। झारखंड में कुटकु डैम का निर्माण होना है, परंतु अब तक नहीं हो सका है। जब तक डैम में गेट नहीं लगेगा, नहर से किसानों को पर्याप्त पानी नहीं मिलेगी। करोड़ों रुपये खर्च हो जाने के बाद भी किसानों के खेत तक पानी नहीं पहुंच सका। मदनपुर प्रखंड के जमुनिया गांव के किसान मुरारिक यादव, सिजुआही के राजेश यादव, शिवनारायण यादव, अमरजीत कुमार, चिल्हमी के आशीष यादव, शिवदत्त यादव व रतनुआं के रामप्रवेश यादव ने बताया कि पानी की आस में आंखें पथरा गई हैं।
सबकाे मिलकर आना होगा आगे
पीएचईडी के कार्यपालक अभियंता राजीव कुमार कहते हैं नदी जीवनदायिनी हैं। इसे बचाना सभी का दायित्व है। कुछ मानवीय भूल नदियों से हमलोगों का रिश्ता टूट रहा है। जलस्तर नीचे गिरता जा रहा है। इसको बचाने का प्रयास किया जा रहा है। नदियों के सूखने का असर गांवों पर पड़ रहा है। वर्तमान में जलस्तर 24 फीट है।