शेखर की रिपोर्ट
झारखंड में खुद को ओबीसी जातियों का मसीहा साबित करने में हर दल दूसरे से बाजी मारने की जुगत में जुट गया है। ऐसे में आरक्षण बढ़ाने को लेकर राजनीतिक सरगर्मी एकाएक बढ़ गई है। वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा कांग्रेस और राजद को इससे जोर-शोर से उठा रहे हैं भाजपा सहयोगी Ajshu भी इस संवेदनशील मसले पर खुद को पिछड़ने नहीं देना चाह रहे हैं कांग्रेस सहित अन्य कुछ दलों ने जातिगत मतगणना के लिए भी दबाव बनाना शुरू कर दिया है हालांकि इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि समय-समय पर विभिन्न जाति समूह में के हक की आवाज उठाने के पीछे का एक बड़ा उद्देश बड़े वोट बैंक को रिझाना भी होता है झारखंड में ओबीसी का आरक्षण 14 परसेंट है जो बिहार समेत अन्य पड़ोसी राज्यों की तुलना में कम है इसे बढ़ाकर 27% करने की मांग बहुत पुरानी है बताते जाएगी 2019 के विधानसभा चुनाव में भी इस मांग को उभार कर सभी राजनीतिक दल ने मतदाताओं को लुभाने का भरसक प्रयास किया था
झारखंड प्रदेश कांग्रेस प्रभारी व पूर्व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री आरपीएन सिंह के निर्देश पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ रामेश्वर उरांव ने यह मांग उठाई है भाजपा ने कांग्रेस को कटघरे में खड़ा करते हुए कटाक्ष किया है कि सरकार में शामिल दल को मांग उठाने की बजाय इसे पूरा करने की दिशा में प्रयास करना चाहिए वहीं भाजपा भी सरकार पर ओबीसी जातियों का आरक्षण बढ़ाने के लिए दबाव बना रही है फिलहाल राज्य में अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति और ओबीसी का आरक्षण मिलाकर 50 परसेंट है इससे अनुसूचित जनजाति में 26 परसेंट और अनुसूचित जाति को 10 परसेंट आरक्षण मिलता है इसके अलावा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10 परसेंट आरक्षण है यदि ओबीसी का कोटा बढ़ाते हैं तो यह कानून पेज में फंस सकता है लेकिन मुसीबत यह है कि चुनाव में बढ़-चढ़कर वादा किया गया था और ऐसी स्थिति में इसे पूरी तरह मुखड़ा भी नहीं जा सकता सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा भी इस पक्ष में है कि आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाया जाए