उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव में असदउद्दीन ओवैसी की पार्टी खाता भी नहीं खोल सकी थी. ‘ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन’ यानी ‘एआईएमआईएम’ को मात्र पांच लाख वोट मिले थे.
बावजूद इसके वर्ष 2022 को राज्य में होने वाले विधानसभा के चुनावों में एआईएमआईएम ने सौ सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है.
पार्टी के सुप्रीमो और सांसद असदउद्दीनओवैसी का कहना है कि उनकी पार्टी ने ओम प्रकाश राजभर के नेतृत्व वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के साथ गठबंधन करने का फैसला किया है और इस गठबंधन का नाम, ‘भागेदारी संकल्प मोर्चा’ रखा गया है.
ओवैसी अमूमन अंग्रेज़ी में ट्वीट करते हैं. मगर इस गठबंधन की जानकारी उन्होंने हिंदी में लिख कर ट्वीट की है. ज़ाहिर है कि वो अपनी बात सोशल मीडिया के ज़रिये उत्तर प्रदेश के हिंदी भाषी क्षेत्रों तक पहुंचाना चाहते हैं.
असदउद्दीन ओवैसी ने पिछले दिनों जब भी बीबीसी से बात की तो उन्होंने हमेशा यही कहा कि उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा मुसलामानों का राष्ट्रीय दल बनाने की नहीं रहीं हैं.
एक साक्षात्कार में उन्होंने इतना तक कह डाला था, ” मुसलामानों का नेता मैं नहीं हूँ. मुसलामानों के नेता हैं मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव, ममता बनर्जी. ये नेता और उनके दलों ने मुसलमानों के वोट लिए मगर उनके लिए कभी किया कुछ नहीं.”
लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ओवैसी चाहे कुछ कहें मगर लगभग हर राज्य में विधानसभा के चुनावों में उन्होंने अपनी पार्टी की संभावनाएं तलाश करनी शुरू कर दीं हैं और कई राज्यों में उन्हें कामयाबी भी मिलती रही.
विश्लेषक ये भी मानते हैं कि बेशक उतनी अपेक्षित कामयाबी ना मिल पायी हो, लेकिन असदुद्दीन ओवैसी अपनी पार्टी यानी ‘एआईएमआईएम’ की मौजूदगी का अहसास कराते रहे हैं.
महाराष्ट्र-बिहार में दिखा असर
उनका कहना है कि सांसद रहे उनके पिता सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी भी राजनीतिक रूप से उतने महत्वाकांक्षी नहीं थे जितना असदउद्दीन ओवैसी हैं क्योंकि मजलिस का दायरा हैदराबाद तक ही सीमित रहा था.
अब पार्टी के दो सांसद हैं और तेलंगाना या अविभाजित आंध्र प्रदेश के अलावा अपना प्रभाव ‘एआईएमआईएम’ को कहीं बढ़ाने का मौक़ा मिला है तो वो है महाराष्ट्र. विश्लेषक कहते हैं कि महाराष्ट्र में कामयाबी हासिल करने के बाद ही असदउद्दीन ओवैसी की ‘एआईएमआईएम’ ने दूसरे प्रदेशों में भी राजनीतिक भविष्य तलाशने की कोशिश शुरू कर दी.
उनकी कोशिश को बिहार में तो कामयाबी ज़रूर मिली, लेकिन पश्चिम बंगाल – जहां मुसलामानों की काफ़ी बड़ी आबादी है – वहाँ ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस का ही प्रभाव क़ायम रहा और ‘एआईएमआईएम’ को इस समुदाय का उतना समर्थन नहीं मिल पाया.
मायावती ने क्या कहा?
राजनीतिक हलकों में ओवैसी द्वारा उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए बनाए गए इस नए गठबंधन की घोषणा को लेकर काफ़ी हलचल इसलिए भी है क्योंकि बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने स्पष्ट कर दिया है कि उनकी पार्टी के, एआईएमआईएम या किसी भी अन्य दल के साथ किसी भी तरह के गठबंधन की कोई संभावना नहीं है.
मायावती ने ये भी स्पष्ट किया कि बहुजन समाज पार्टी आगामी विधानसभा के चुनाव अपने ही बूते लड़ेगी.
ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि उत्तर प्रदेश के चुनावी समर में क्या ‘एआईएमआईएम’ की मौजूदगी मतों के ध्रुवीकरण में भूमिका निभाएगी? क्या ‘एआईएमआईएम’ की मौजूदगी कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जैसे दलों के लिए 2022 की डगर को और भी मुश्किल बना देगी?
पहले अनुमान लगाए जा रहे थे कि एआईएमआईएम 2022 में होने वाले विधानसभा के चुनावों में बहुजन समाज पार्टी के साथ जायेगी. लेकिन ऐसा नहीं होने की सूरत में राजभर ने भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद से बातचीत का दौर भी शुरू कर दिया है.
ओवैसी का कहना है कि ओम प्रकाश राजभर के दल के अलावा गठबंधन के लिए उनकी किसी भी राजनीतिक दल से पहले कोई बात नहीं हुई. उल्लेखनीय है कि बिहार के विधानसभा के चुनावों में ‘एआईएमआईएम’ ने बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया था.
कांशीराम का फ़ॉर्मूला
‘एआईएमआईएम’ की उत्तर प्रदेश की इकाई के अध्यक्ष शौकत अली ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि उनकी पार्टी बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशी राम के फ़ॉर्मूले पर चल रही है.
अली कहते हैं, “कांशी राम जी कहते थे कि पहला चुनाव हारने के लिए लड़ो, दूसरा हराने के लिए लड़ो और तीसरा जीतने के लिए.”
बिहार की मिसाल देते हुए शौकत अली कहते हैं कि वर्ष 2015 विधानसभा के चुनावों में एआईएमआईएम ने कुल 6 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किये थे जिनमे से पांच सीटों पर उनकी ज़मानत ज़ब्त हो गयी.
उन्होंने कहा, “सिर्फ़ एक सीट पर ही ज़मानत बच पायी थी. फिर आप वर्ष 2020 में बिहार के विधानसभा के चुनावों के नतीजे देख लीजिये. हमें पांच सीटों पर विजय मिली. आने वाले उत्तरे प्रदेश के विधानसभा के चुनावों में भी हमारा प्रदर्शन काफ़ी अच्छा होगा.”
‘खिंच गई है लकीर’
हालांकि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने किसी भी तरह के गठबंधन की घोषणा नहीं की है. समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि उनकी पार्टी ‘एआईएमआईएम’ और ओम प्रकाश राजभर के गठबंधन को ज़्यादा गंभीरता से नहीं ले रहा है.
चौधरी के अनुसार उत्तर प्रदेश की राजनीति बहुत स्पष्ट है. वो कहते हैं कि प्रदेश में राजनीति के केंद्र में सिर्फ़ चार कोण ही रहे हैं. समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी. उनका मानना है कि इन दलों के अलावा किसी और राजनीति के केंद्र की उत्तर प्रदेश में कोई गुंजाइश नहीं है जबकि राष्ट्रीय लोकदल का प्रभाव दो तीन जिलों में ही सिमट कर रह गया है.
राजेंद्र चौधरी ने कहा, “ध्रुवीकरण की बात कर रहे हैं लोग. ध्रुवीकरण तो पहल ही हो चुका है. लकीरें साफ़ खिंच गयीं हैं. लोग पिछली बार के चुनावों के परिणाम से सबक़ ले चुके हैं. इस लिए एआईएमआईएम या राजभर साहब कोई चमत्कार नहीं करने वाले हैं और ना ही इनकी मौजूदगी से कोई ध्रुवीकरण ही संभव होगा.”
वैसे एआईएमआईएम ने स्पष्ट कर दिया है कि वो ओम प्रकाश राजभर के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ेगी और ‘भागेदारी संकल्प मोर्चा’ नाम के बनाए गए अपने गठबंधन में अन्य कई छोटे दलों को शामिल भी करेगी. शौकत अली का कहना है कि उन्होंने अपने गठबंधन के दरवाज़े खुले रखे हैं.
बीजेपी को रोकने का दावा
एआईएमआईएम के उत्तर प्रदेश के प्रमुख का ये भी कहना है कि कांग्रेस के साथ गठबंधन की बात उनका दल सोच भी नहीं सकता.
अली कहते हैं, “कांग्रेस से जिसने हाथ मिलाया उसकी नैय्या डूब ही गयी. चाहे वो पश्चिम बंगाल में वाम दल हों या बिहार में राष्ट्रीय जनता दल. हम भाजपा को रोकने का काम करेंगे क्योंकि अन्य छोटे दलों में वो दम ख़म बचा ही नहीं रह गया है कि वो भाजपा की राजनीतिक बढ़त में कोई ब्रेक लगा सकें.”
‘एआईएमआईएम’ ने उतर प्रदेश में विधान सभा के चुनावों की तैयारी 2020 के दिसम्बर माह से ही शुरू कर दी थी जब पार्टी के प्रमुख असदउद्दीन ओवैसी ने राज्य में अपने दौरों का सिलसिला शुरू किया था. अपने दौरे के क्रम में उन्होंने आरोप लगाया था कि अखिलेश यादव की सरकार उन्हें उत्तर प्रदेश आने से रोकती रही जिस वजह से 12 अवसरों पर उन्हें अपना दौरा स्थगित करना पड़ा.
बीजेपी की बी टीम?
इसी साल 14 जनवरी को कन्नौज में ओवैसी के दौरे को लेकर टिप्पणी करते हुए भाजपा के सांसद साक्षी महाराज ने कहा कि उनकी पार्टी यानी एआईएमआईएम की मौजूदगी से भाजपा को बिहार में लाभ हुआ और उत्तर प्रदेश में भी इसका राजनीतिक लाभ होगा.
साक्षी महाराज के बयान के बाद एआईएमआईएम पर भारतीय जनता पार्टी की ‘बी-टीम’ होने का आरोप लगने लगा जिसका स्पष्टीकरण देते हुए केंद्रीय मंत्री मुख़्तार अव्ब्बस नक़वी ने कहा कि भाजपा “अपने बूते पर चुनाव जीतती है, न की किसी बी-टीम या सी-टीम के सहारे.”
राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश कहते हैं कि सबसे पहले ये ध्यान में रखना होगा कि एआईएमआईएम अल्पसंख्यकों का कोई राष्ट्रीय दल नहीं है जैसा वो जताने की कोशिश कर रहे हैं. वो कहते हैं कि ये बात भी सही है कि भाजपा एआईएमआईएम की राजनीति का फ़ायदा उठाने की कोशिश ज़रूर करती है.
उर्मिलेश का कहना था, “उत्तर प्रदेश में एआईएमआईएम का गठबंधन हो, कांग्रेस हो या क्षेत्रीय दल किसी के पास वैसा सक्रिय नेता नहीं है जो सत्तारूढ़ दल से वैसे लोहा ले सके जैसे ममता बनर्जी ने बंगाल में लिया, पिनाराई विजयन ने केरल में और एम के स्टालिन ने तमिलनाडु में लिया. कांग्रेस का तो उत्तर प्रदेश में इतन बुरा हाल है कि पार्टी के सबसे कद्दावर नेता राहुल गाँधी लोक सभा का चुनाव ही हार गए.”
विश्लेषकों का कहना है उत्तर प्रदेश की अगर बात की जाए तो ये स्पष्ट है कि इस प्रदेश में राजनीतिकी दल हों या गठबंधन, सबको अब भी काफ़ी ‘होमवर्क’ करना पड़ेगा.