लगता है कि सरकार ऐसा ही कुछ कहना चाहती है. और एक बार नहीं बार-बार कह रही है. हालाँकि इसकी अगली लाइन आज की परिस्थिति में किसी भी तरह फिट नहीं हो सकती. वो है.. यावत् जीवेत् सुखम् जीवेत् यानी जब तक जियो सुख से जियो. और यहाँ तो हाल ऐसा है कि दुख ही दूर होने का नाम नहीं ले रहा.
कोरोना से बुरी तरह मार खाई हुई अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को कुल मिलाकर 6,28,993 करोड़ रुपए का नया पैकेज लाने का एलान किया है.
इसके पहले भी मोदी सरकार क़रीब 24 लाख 35 हज़ार करोड़ रुपए के राहत और स्टिमुलस पैकेज देने का एलान कर चुकी है.
लेकिन इसमें से ज़्यादातर रक़म क़र्ज़ के नाम पर ही दी जानी है. अब वो क़र्ज़ वापस आएगा या नहीं यह एक अलग सवाल है. लेकिन कोरोना राहत के पहले एलान के बाद से जितना कुछ सामने आया है, वो मोटे तौर पर उधार बाँटने की ही योजना है.
इस वक़्त सबसे ज़्यादा ज़रूरत इस बात की है कि लोग पहले लिए हुए क़र्ज़ चुकाने की हालत में आएँ और नए क़र्ज़ लेने की हिम्मत दिखा सकें.
कोरोना की पहली लहर में सरकार ने क्या-क्या किया
पिछले साल कोरोना संकट शुरू होने के तुरंत बाद यानी 26 मार्च को वित्त मंत्री ने ग़रीबों को सीधे और तात्कालिक मदद पहुँचाने के लिए 1,70,000 करोड़ रुपए के राहत पैकेज का एलान किया था. इस राहत में शहरों और गाँवों में ग़रीब परिवारों को मुफ्त राशन देने का इंतज़ाम शामिल था.
सरकार ने दावा किया कि देश में 80 करोड़ लोगों को अगले तीन महीनों तक दाल, चावल और गेहूँ जैसी चीज़ें दी जाएँगी ताकि लॉकडाउन की वजह से बेरोज़गार हो गए लोगों के खाने का तो इंतज़ाम हो जाए.
सफ़ाई कर्मचारियों और स्वास्थ्य सेवा से जुड़े लोगों के लिए एक विशेष बीमा योजना लाई गई और काफ़ी बड़ी संख्या में लोगों के खातों में सीधे रक़म डालने का इंतज़ाम भी हुआ.
इसमें गाँव और शहर दोनों के ही लोग शामिल थे. एक सीमा से छोटी इकाइयों में काम करने वाले और 15 हज़ार से कम तनख्वाह पाने वाले लोगों के लिए सरकार ने पीएफ़ की रक़म भी तीन महीने तक अपने पास से भरने का एलान किया था.
डेबिट कार्ड से पैसा निकालने पर चार्ज ख़त्म किया गया और बैंकों में मिनिमम बैलेंस की शर्त भी.
सरकार को उम्मीद थी कि दो-तीन महीनों में कोरोना का ख़तरा टल जाएगा और सब कुछ पटरी पर आने लगेगा. हम आप भी ऐसा ही सोच रहे थे.
स्टिमुलस पैकेज का एलान
यह ज़्यादातर इंतज़ाम भी तीन महीने के नज़रिए से ही किए गए थे. और साथ में यह फ़िक्र भी थी कि इसके तुरंत बाद चीज़ों को सुधारने के लिए एक धक्का और लगाना ही होगा. सो दो महीने बाद यानी मई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 लाख करोड़ रुपए के एक आर्थिक स्टिमुलस पैकेज का एलान किया.
स्टिमुलस यानी ऐसा इंतज़ाम, जिससे अर्थव्यवस्था को उछलने का दम मिल सके. प्रधानमंत्री ने तो आत्मनिर्भर भारत का एलान कर दिया और साथ में बता दिया कि पैकेज का ब्योरा वित्त मंत्रालय से आएगा.
अगले कई दिन तक वित्त मंत्री और उनके साथी राज्यमंत्री ने अंग्रेज़ी और हिंदी में कई किश्तों में इस पैकेज का ब्योरा पेश किया. सारा ब्योरा सामने आने के बाद अधिकतर विशेषज्ञों की राय यही थी कि दरअसल यह पैकेज कम और पैकेजिंग ज़्यादा है.
अव्वल तो इसमें सरकार के तमाम पुराने एलान भी जोड़ लिए गए और रिज़र्व बैंक के उठाए क़दमों से बाज़ार में आने वाला क़रीब आठ लाख करोड़ रुपए का नक़दी बढ़ाने का असर भी इसमें शामिल कर लिया गया था. बाल की खाल निकालने वाले जानकारों ने तो यहाँ तक कहा कि जितना कहा जा रहा है, यह पैकेज दरअसल उसका 10वाँ हिस्सा भी नहीं है.
और यह पैकेज सामने आने के साथ ही यह बहस खड़ी हो गई थी कि आख़िर तरह-तरह के क़र्ज़ बांटकर सरकार अर्थव्यवस्था को क्या सहारा देने की सोच रही है जबकि ज़रूरत तो बाज़ार में डिमांड पैदा करने की है. क़र्ज़ तो कोई तब लेगा न, जब उसे पैसे की ज़रूरत होगी.
जब लॉकडाउन, बेरोज़गारी और अनिश्चितता की वजह से बाज़ार में मांग क़रीब-क़रीब ख़त्म हो चुकी हो, ऐसे में व्यापारियों या उद्योगपतियों को क़र्ज़ देने से क्या फ़ायदा होना था. और उससे बड़ी बात यह थी कि ऐसे में क़र्ज़ लेने आएगा कौन?
इस बीच एक बात ज़रूर हुई, व्यापारिक क़र्ज़ों और घर के क़र्ज़ या कार, स्कूटर या घर के सामान जैसी चीज़ों या किसी भी वजह से लिए गए पर्सनल लोन की भी ईएमआई भरने से कुछ महीनों की छूट ज़रूर मिल गई. हालाँकि इस बीच भी ब्याज़ चढ़ते रहना था. फिर भी बेहद मुसीबत में फँसे लोगों के लिए यह कुछ राहत का सबब तो बना.
तीसरे पैकेज की घोषणा
नवंबर के महीने में फिर दो लाख 65 हज़ार करोड़ रुपए का एक पैकेज आया. आत्मनिर्भर अभियान का तीसरा चरण. इस बार निर्मला सीतारमण ने रोज़गार पैदा करने पर ज़ोर दिया और कुछ ऐसे सेक्टरों को सहारा देने का इंतज़ाम किया गया, जिनसे रोज़गार बढ़ाने की उम्मीद थी.
कोरोना के दौरान रोज़गार खो चुके लोगों या नए लोगों को रोज़गार पर रखने वाली इकाइयों को बढ़ावा देने के लिए आत्मनिर्भर भारत रोज़गार योजना लाई गई.
छोटे उद्यमियों के लिए इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी योजना की मियाद बढ़ाई गई और 10 चैंपियन सेक्टरों को पीएलआई स्कीम में क़रीब डेढ़ लाख करोड़ रुपए देने का इंतज़ाम भी किया गया. और भी कई एलान थे और उन पर काम भी हो रहा है.
लेकिन समस्या ख़त्म होने के बजाय विकराल होती ही दिख रही है. इसकी सबसे बड़ी वजह तो यही है कि कोरोना ख़त्म होने के बजाय दोगुने ज़ोर से फिर हमलावर हो गया और अब तीसरी लहर की आशंका भी है. लेकिन सरकार ने अब जो ताज़ा एलान किए हैं, वो दूसरी लहर के असर को ही कम करने की कोशिश लगते हैं.
नई घोषणाओं में क्या है ख़ास
सोमवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आठ नई योजनाओं का एलान किया. बच्चों के इलाज की सुविधाएँ बढ़ाने के लिए 23 हज़ार 220 करोड़ रुपए देने का एलान किया गया है और खासकर पिछड़े इलाक़ों में मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर सुधारने यानी इलाज की बेहतर सुविधाएँ बनाने के लिए 50 हज़ार करोड़ रुपए की क्रेडिट गारंटी स्कीम लाई जा रही है.
दरअसल यह लोन गारंटी स्कीम एक लाख 10 हज़ार करोड़ रुपए की है, जिसमें से 50 हज़ार करोड़ हेल्थ सेक्टर के लिए और बाक़ी 60 हज़ार करोड़ के क़र्ज़ दूसरे सेक्टरों के लिए होंगे.
इसके अलावा कोरोना की सबसे बुरी मार झेल रहे टूरिज्म सेक्टर को सहारा देने के लिए ट्रैवल एजेंटों को 10 लाख रुपए और टूरिस्ट गाइडों को एक लाख रुपए का क़र्ज़ सरकार की गारंटी पर दिया जाएगा.
यही नहीं इनका कारोबार बढ़ाने के लिए विदेशों से भारत आने वाले पहले पांच लाख टूरिस्टों की वीज़ा फ़ीस माफ़ कर दी जाएगी.
एमएसएमई उद्योगों को सहारा देने के लिए सरकार ने पहले से चल रही इमरजेंसी क्रेडिट लाइन स्कीम का आकार तीन लाख करोड़ रुपए से बढ़ाकर साढ़े चार लाख करोड़ रुपए कर दिया है. इस स्कीम में उद्यमियों को कुछ गिरवी रखे बिना क़र्ज़ दिए जाते हैं.
साथ ही वित्त मंत्री ने एक नई स्कीम का एलान भी किया, जिसमें 25 लाख छोटे कारोबारियों को सवा लाख रुपए तक का क़र्ज़ रियायती ब्याज दर पर दिया जाएगा. उन्होंने आत्मनिर्भर भारत रोज़गार योजना और नए रोज़गार पैदा करने पर मिलने वाली इंसेंटिव स्कीम यानी पीएलआई की मियाद भी एक एक साल बढ़ाने का एलान किया है.
किसे होगा इनसे फ़ायदा?
लेकिन इस बात पर गंभीर सवाल हैं कि इन योजनाओं से कितना फ़ायदा होगा और किसे होगा? सरकार पहले ही जो क्रेडिट गारंटी स्कीम लाई थी, उसमें तीन लाख करोड़ के सामने सिर्फ़ दो लाख 69 हज़ार करोड़ रुपए का ही क़र्ज़ उठा है. फिर डेढ़ लाख करोड़ बढ़ाकर सरकार क्या हासिल करेगी.
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिस वक्त कंज्यूमर की जेब में पैसे डालकर मांग बढ़ाने की ज़रूरत है, उस वक्त सरकार व्यापारियों और उद्यमियों को क़र्ज़ देने पर क्यों इतना ज़ोर दे रही है? इसके लिए वो गारंटी भी देगी, ब्याज की दर भी कम करेगी और गिरवी रखने की शर्त भी हटा देगी.
लेकिन क़र्ज़ लेकर कोई उद्योगपति या दुकानदार करेगा क्या? उसके लिए क़र्ज़ की ज़रूरत या अहमियत तभी होती है, जब उसके सामने ग्राहक खड़े हों और उसे माल ख़रीदने, भरने या बनाने के लिए पैसे की ज़रूरत हो.
इस वक्त की सबसे बड़ी मुसीबत है बाज़ार में मांग की कमी. और उसकी वजह है लाखों की संख्या में बेरोज़गार हुए लोग, बंद पड़े कारोबार और लोगों के मन में छाई हुई अनिश्चितता. सरकार को कुछ ऐसा करना होगा, जिससे इसका इलाज हो. और तब शायद उसे इस तरह क़र्ज़ बाँटने की ज़रूरत नहीं रह जाएगी.