जानिये अक्षय तृतीया को क्यों मानते हैं इतना शुभ, मांगलिक कार्यक्रम करने का ये है महत्व

अक्षय तृतीया के दिन को बहुत खास औरपावन माना जाता है। इसे आखा तीज भी कहते हैं। ज्योतिष शास्त्र में अक्षय तृतीया स्वयंसिद्ध मुहूर्त कहा गया है, इसलिए इस तिथि का विशेष महत्व है। ज्योतिषियों की मानें तो इस तिथि पर कोई भी मांगलिक कार्य करने के लिए मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं पड़ती। इस बार तृतीया तिथि का आरंभ मई, मंगलवार की सुबह 05ः19 से शुरू हुआ है, जो अगले दिन बुधवार को 07ः33 तक रहेगी। तृतीया तिथि दो दिन सूर्याेदयकालीन रहेगी, लेकिन पर्वकाल यानी स्नान, दान आदि कार्य 3 मई, मंगलवार को करना ही श्रेष्ठ रहेगा। इस तिथि पर सोना खरीदने तथा इसकी पूजा करने का विशेष महत्व माना जाता है। ये एक तरह की परंपरा है। जानिए क्या है इस परंपरा से जुड़े कारण और मान्यताएं।
अक्षय तृतीया पर इसलिए खरीदते हैं सोना
हिंदू धर्म में सोना को इसलिए महत्व नहीं दिया जाता क्योंकि वो मूल्यवान है, बल्कि इसलिए भी दिया जाता है क्योंकि उसका ज्योतिषिय महत्व भी है। सोना देवगुरु बृहस्पति की धातु माना गया है। देवगुरु बृहस्पति से शुभ फल पाने के लिए सोना खरीदना, उसकी पूजा और दान करने का विशेष का विशेष महत्व बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि अक्षय तृतीया पर सोना खरीदने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और किसी तरह की आर्थिक परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है।
इस विधि से करें सोने की पूजा
– धर्म ग्रंथों के अनुसार, अक्षय तृतीया पर सोना खरीदकर उसकी पूजा करनी चाहिए, लेकिन अगर ऐसा करना संभव हो तो घर में जो भी सोने के पुराने आभूषण हों, उनकी पूजा भी की जा सकती है।
– इसके लिए घर में रखें सोने के गहनों को गाय के कच्चे (बिना उबला) दूध और गंगाजल या शुद्ध जल से धोकर एक लाल कपड़े पर रखें और केसर, कुमकुम से पूजन कर लाल फूल अर्पित करें। ऊं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद महालक्ष्म्यै नमरू मंत्र की जाप करें।
– इसके बाद कर्पूर से आरती करें। इसके बाद शाम के समय इन आभूषणों को यथास्थान तिजोरी में रख दें। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सोने पर बृहस्पति यानी गुरु का आधिपत्य होता है। इसलिए इस दिन स्वर्ण पूजा करके बृहस्पति की भी विशेष कृपा प्राप्त की जा सकती है।
क्यों मनाई जाती है अक्षय तृतीया
इस दिन को लेकर बहुत सी मान्यताएं हैं जिनमें शामिल हैं…
1. अक्षय तृतीया के दिन परशुराम जयंती भी मनाई जाती है। क्योंकि मान्यता है कि इस दिन विष्णु भगवान के छठवें अवतार परशुराम भगवान का जन्म हुआ था। इसलिए अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु और परशुराम जी की पूजा का खास विधान है।
2. भगवान भोलेनाथ ने इसी दिन माता लक्ष्मी के साथ कुबेर जी की पूजा करने का ज्ञान दिया था। जिसके बाद से आज तक अक्षय तृतीया के पवित्र दिन पर माता लक्ष्मी और कुबेर भगवान की पूजा की परंपरा चली आ रही है।
3. माना जाता है कि इस तिथि पर महर्षि वेदव्यास ने पांचवे वेद महाभारत को लिखना प्रारंभ किया था, जिसमें श्रीमद्भागवत गीता का ज्ञान भी मिलता है। इस कारण शुभ फलों की प्राप्ति के लिए श्रीमद्भागवत गीता के अठारहवें अध्याय का पाठ इस दिन करना चाहिए।
4. वहीं अक्षय तृतीया के दिन राजा भागीरथ द्वारा किए गए हजारों वर्षों के तप के फलस्वरूप गंगा माता स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुई थीं। इसलिए इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से जीवन के सभी पापों से मुक्ति मिलती है।
5. इसके अलावा बंगाल में इस खास दिन पर विघ्नहर्ता गणेश और धन की देवी मां लक्ष्मी का पूजन व्यापारियों की ओर से किया जाता है। साथ ही इस दिन व्यापारी नई लेखा-जोखा किताब की शुरुआत भी करते हैं।
अक्षय तृतीया का महत्व
इस दिन मांगलिक कार्यों का बड़ा महत्व बताया गया है। माना जाता है कि अक्षय तृतीया पर कम से कम एक गरीब या जरूरतमंद व्यक्ति को अपने घर बिठाकर आदरपूर्वक भोजन कराना शुभ होता है। इससे वैवाहिक जीवन में सुख-शांति आती है और जीवन में धन-धान्य की कभी कमी नहीं होती। साथ ही इस दिन शादी, सोना-चांदी, वाहन, भूमि आदि खरीदने, गृह प्रवेश, नया काम शुरू करना, मुंडन संस्कार जैसे कार्यों को करने के लिए कोई खास मुहूर्त की जरूरत नहीं होती क्योंकि ये दिन अपने आप में भी बहुत फलदायी माना जाता है।