• प्रमोद दीक्षित मलय
ताल तलैया में भरा सिंघाड़ा।
पोखर में तैरे हरा सिंघाड़ा।
कोई खाता है गुड़ से, कोई-
तीखी चटनी से खरा सिंघाड़ा।।
तीन नुकीले कांटें हैं इसमें।
कभी न पशुओं ने चरा सिंघाड़ा।।
गांव, शहर, चौराहों में बिकता।
ठेले पर उबला धरा सिंघाड़ा।।
आटे से पूआ-पूड़ी बन जातीं।
उपवासों में प्रिय रहा सिंघाड़ा।।
कच्चा ताजा जाड़ों में मिलता।
हर दम पानी में फरा सिंघाड़ा।।
चले शीतलहर, कुहासा, पाला।
तब पोखर में ही मरा सिंघाड़ा।।
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