अनिल अनूप
यह एक यक्ष प्रश्न है? कांग्रेस का कौन सा नेता सार्वजनिक मंच पर कब क्या बोल देगा, इसका अंदाजा कोई नहीं लगा सकता। कांग्रेस जब सत्ता में होती है तो इसके अधिकाँश नेता जिनमें शीर्ष नेतृत्व भी सम्मिलित है, अहंकारवश बड़बोले होकर कब क्या बोल दें और जब सत्ता में नहीं होते तो अवसादग्रस्त होकर कब क्या बोल दें, इसका पता स्वयं बोलने वाले को भी नहीं होता।
अभी तक ये कांग्रेसी नेता मोदी, उनके मंत्रिमंडल और भाजपा के साथ आरएसएस को ही अपशब्दों का प्रयोग कर अपनी जग हंसाई कराते रहते थे मगर अब तो ये लोग विरोध का काम केवल सत्ता पक्ष की गलत नीतियों पर प्रश्न चिन्ह लगाने के अघोषित वीटो का सहारा लेकर अपने विरोध में खड़े किसी न किसी भी व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन के बारे में भी अनाप-शनाप जो मन में आए बिना झिझके बोलने को अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझ कर जो मुंह से निकल जाए, वह बोलते रहते हैं जिससे यदा-कदा पूरी पार्टी की जगहंसाई या जो छीछालेदर हो जाती है। उस पर न तो इन लोगों को कोई पछतावा ही होता है और न ही ये उससे सबक लेने के लिए तैयार ही रहते हैं।
अब तक तो मणि शंकर अय्यर, शशि थरूर, गुलाम नबी आजाद, अधीर रंजन चौधरी, कपिल सिब्बल, दिग्विजय सिंह और राहुल गांधी का ही नाम था किन्तु अब कई अन्य पिछलग्गू नेताओं के साथ गहलोत और कमलनाथ जैसे बड़े नाम भी जुड़े हैं जिन्होंने पिछले कुछ दिनों से अपने कर्मों और कथनों से कांग्रेस की नैया मंझधार में ले जाने के पुनीत कर्तव्य निभाने का कार्य सम्पन्न किए हैं।
बीते 18 अक्तूबर को कमलनाथ जो मध्यप्रदेश के पिछले मुख्यमंत्री उन्होंने अपनी जिद के चलते सिंधिया को नकार कर मध्यप्रदेश से कांग्रेस की सत्ता गंवाने का कार्य किया। ये महाशय पूर्व में देश की मंत्री परिषद के भी कई बार सदस्य रह चुके हैं। इन्होंने मध्यप्रदेश में हो रहे 28 उपचुनावों में कांग्रेस से भाजपा में गए के प्रति जो उदगार प्रकट किए, वे कांग्रेसी मानसिकता के प्रतीक चिन्ह के रूप में उभर कर सामने आए हैं।
यह सही है कि चुनावों में विरोधियों के प्रति कोई सद्भावना प्रकट नहीं की जाती। भरसक उनका विरोध ही किया जाता है। इस आधार पर अन्य के लिए की गई उनकी अभद्र टिप्पणियों का संज्ञान न भी लिया जाए किन्तु शिवराज मंत्रिमंडल की सदस्य इमरती देवी जो एक दलित संप्रदाय से आती हैं, पर की गई कमलनाथ की यह व्यंग्यात्मक टिप्पणी कि, ‘वह तो क्या आइटम हैं, ये आप सब जानते ही हैं।’ को किसी भी दशा में माफ नहीं किया जा सकता।
वैसे तो कांग्रेस के दोगले चरित्र का खुला प्रदर्शन कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से लेकर छुटभैय्ये नेता तक करते रहते हैं। हाल के दिनों में कांग्रेस और विरोध पक्षनीत सरकारों के प्रदेशों और भाजपा प्रदेशों में हुई समान घटनाओं में कांग्रेस और विरोधपक्ष के कृत्यों ने इसे सिद्ध भी किया है। आश्चर्य की बात है कि कुछ मीडिया घरानों की इकतरफा और नेगेटिव रिपोर्टिंग ने उनके भी दोगलेपन को सामने ला दिया है। अर्बन नक्सल और टुकड़े-टुकड़े गैंग के साथ मोमबत्ती गैंग और तथाकथित अवार्ड वापसी गैंग की असलियत भी खुल कर सामने आते देर नहीं लगी।
कांग्रेस में किस तरह कदम कदम पर सार्वजनिक जीवन में आई महिलाओं को प्रताडऩा और भेदभाव सहन करना पड़ता है, पिछले एक दो महीने में ही कई घटनाएं प्रचुरता से सामने आई हैं। महिला कार्यकर्ताओं से मारपीट की भी घटनाएं सामने आई हैं। मथुरा में विगत दो तीन वर्ष पूर्व एक महिला राष्ट्रीय प्रवक्ता से छेड़छाड़ के बाद छेड़छाड़ करने वालों पर शीर्ष स्तर से कोई कार्यवाही न होने से नाराज होकर कांग्रेस का पक्ष दबंगई और जोरदार ढंग से रखने वाली उस राष्ट्रीय प्रवक्ता को शिव सेना में जाना पड़ा।
महिलाओं के बारे में ओछी और सड़क छाप बातें करने और उनकी मर्यादाओं के खिलाफ बात, एक साधारण स्तर से लेकर शीर्ष स्तर के कई नेता अनेक बार कर चुके हैं और उनके विरुद्ध इस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष महिला के होते हुए भी उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही न होने के कारण किसी को कोई भय या चिंता भी नहीं रहती। इसीलिए कमल नाथ को भी कोई अपराधबोध नहीं है और उन्होंने अपने बयान पर लीपापोती करते हुए हो चुके डैमेज कंट्रोल को समाप्त करने के लिए जो ‘मैंने कोई गलत बात नहीं कही है, फिर भी अगर किसी को कोई पीड़ा पहुंची है तो मैं खेद प्रकट करता हूँ’, कह कर पल्ला झाडऩे की नाकाम कोशिश की है जो उनके अहंकार और पौरुषजन्य भोंडी मानसिकता की परिचायक है।
कुल मिला कर स्थिति यहाँ तक पहुंच चुकी है कि इमरती देवी ने इस बयान पर अपनी पहली प्रतिक्रिया में ही सोनिया गांधी पर सीधे हमला कर दिया कि ‘अगर किसी कांग्रेसी ने उनकी बेटी के बारे में ऐसे शब्द कहे होते तो क्या वे उसके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं करतीं। उन्होंने यह कह कर पूरी पार्टी की छीछालेदर कर दी है। अब सोनिया सांसत में जरुर पड़ गई होंगी कि वे कमलनाथ के खिलाफ कुछ बोल भी नहीं सकतीं और अगर नहीं बोलतीं तो पूरी पार्टी की की छवि खराब होती है।
सोने पर सुहागा यह कि इमरती देवी दलित समुदाय से आती हैं। इसलिए कांग्रेस जो पिछले कुछ दिनों से दलित महिलाओं की अस्मिता का विधवा विलाप करती रही है, ‘तत्ता दूध उगलना न निगलना’ की स्थिति में आ चुकी है। अगर कुछ करती है तो कमलनाथ जैसा खम्भा हाथ से जाता है और अगर कोई कार्यवाही नहीं करती तो पार्टी की छवि और दलित वोटों के साथ 5० प्रतिशत वोटों की मालिक महिलाओं पर नकारात्मक असर पड़ता है। कमलनाथ की अहंकारिता का तुर्रा यह है कि इस सन्दर्भ में वे कंगना राणावत के सन्दर्भ में संजय राउत द्वारा दिए गए ‘हरामखोर और ‘नाटी शब्दों का उदाहरण देकर अपने शब्द का औचित्य सिद्ध करने का असफल प्रयास कर रहे हैं।
सच बात तो यह है कि सत्ता का आनन्द लेने के आदी कांग्रेस के बड़े नेता जो हनक और अर्थलाभ का भरपूर सुख सत्ता में लेते रहे हैं, सत्ता से बाहर आते ही अवसाद में आ जाते हैं और भाजपा को नुकसान पहुंचाने और उसकी छवि खराब करने के लिए ऊलजलूल जो मन आए बोलने लगते हैं। उनके ऐसे बयान भाजपा को तो नहीं, कांग्रेस के लिए भस्मासुर साबित होते हैं। अगर कांग्रेस को अगली बार सत्ता में आना है तो उसे धैर्यपूर्वक दो तीन साल इन्तजार करना चाहिए अन्यथा इन बड़बोले नेताओं के ऐसे बयान कांग्रेस के ताबूत में लम्बी लम्बी कीलें ठोकते जाएंगे और एक दिन ऐसी स्थिति आ जाएगी कि कांग्रेस को बाहर निकलना दूभर हो जाएगा।