छोटी उम्र से कहावत सुनता आ रही हूं कि एक गंदी मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है यानी अगर पूरे समूह में से एक व्यक्ति भी दुष्ट हो तो वह पूरे समूह को दुष्ट बनाने या उसकी छवि को वैसा दर्शाने के लिए काफी होता है! आज कोई व्यक्ति अगर अधिकार और कर्तव्य की बात करता है तो उसे कहा जाता है कि उसने अब तक वास्तविक जीवन में कदम नहीं रखा! खैर ठंड के मौसम में सब का काम निपटा के देर शाम को गरमा गरम चाय मिल जाए तो उसका आनंद ही और कुछ होता है वही आनंद लेने मेरे कुछ दोस्त दर्यानगंज चाय पीने निकले चाय की टपरी के पास पहुंचे तो देखा कि पुलिस की गाड़ी खड़ी थी कुछ पुलिस वाले कुछ राह चलती गाड़ियों को रोक सड़क किनारे लगवा रहे थे तो कुछ पार्किंग में लगी गाड़ी के मालिक को बुला उसकी चाभी हथिया रहे थे! मेरे दोस्तों की समझ में तब भी कुछ नहीं आया जब एक लड़का हेलमेट पहने आया गाड़ी लगाई और चाय पीने ही लगा था कि उससे उसकी चाभी मांगी लड़का सहम गया और उसने चाभी दे दी यह घटना आम थी आज इसे आम ही माना जाने लगा है लेकिन क्या सचमुच यह तरीका सही है? अगर गाड़ी वाले गलत थे तो पुलिस की कार्रवाई सिर्फ चाबी लेने तक सीमित क्यों थी? क्या पुलिस इस समस्या से निपटने की व्यवस्था नहीं कर सकती जो रोजाना कई अनजान लोगों को नियमों को धता बताने पर मजबूर करती होगी?