इंद्रपाल सिंह की रिपोर्ट
पीढ़ियों से बांस की डलियां, सूपा, हाथ का पंखा आदि सामान बनाकर गुजर बसर कर रहे लोगों को क्या पता था कि कोरोना महामारी में उनका कारोबार पूरी तरह ठप हो जाएगा हालत एसे बनेंगे कि दो वक्त रोटी के लिए भी लाले पड़ जाएगें अक्षय तृतीया पर होने वाली शादीयों में हजारों की सख्यां में बांस की डलियां और सूपा बिकते थे लेकिन इस बार लाॅकडाउन के चलते सन्नाटा है
ग्राम राजगढ़, पड़ना, चंदेरा,पिपरिया, पाली में काफी संख्या में वंशकार समाज के लोग रहते हैं जिनका मुख्य व्यसाय हस्तशिल्प कला, मजदूरी करना हैै, ये अपने हाथ के हुनर से बांस की डलियां, सूपा, हाथ का पंखा, कुर्सी, शादी विवाह में प्रयोग होने बाले टिपारे एवं बच्चों के खेल खिलौने बनाते हैं इन परिवारों की रोटी रोजी इसी सामान की बिक्री से चलती है यह लोग साल भर से सामान घरों पर बना कर तैयार करते हैं और उसे अपने पाली, धौर्रा, बालाबेहट, डोगरा कला, ललितपुर, बंगरिया आदि आस पास के बाजार में स्थानों पर लगने वाली हाथों में या फेरी लगाकर गाँव गाँव जा कर बेंच देते हैं कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए चल रहे लाॅकडाउन में आवागमन के साधन बंद होने के कारण यह लोग बांस से तैयार किया गया अपना सामान बेचने के लिए न तो बाहर ले जा रहे और न ही सामान खरीदने गाँव में कोई आ रहा है इससे इनके परिवार की रोजी रोटी पर संकट गहराने लगा है।
संक्रमण के डर से सामान तक नहीं छू रहें लोग
पाली वंशकार समाज के कुछ लोगों ने बताया कि लाॅकडाउन के कुछ दिन बाद जब प्रशासन की रोक को नजर अंदाज करते हुए वह आसपास के गाँवों में अपना सामान खरीदना तो दूर उसे हाथ में लेना तक उचित नहीं समझा यदि किसी ने खरीदना भी चाहा तो उसकी कीमत लागत मूल्य से काफी कम बताई|
हर वर्ष शादियों की बढ़ती संख्या को देखकर इस बार हमने अधिक मुनाफे के लिए काफी मात्रा में कच्चा हरा बांस खरीदन कर डलियां, सूपा, हाथ का पंखा आदि बनाकर रखे थे पर कोरोना के फेर में हाट बाजार बंद होने से हमारी संपूर्ण पूंजी फस गई है ।
इस धंधे से जुड़े हुए पवन कुमार का कहना है, बांस के सामान बनाना हम लोगो का पुश्तैनी काम है इसके अलावा हमारे पास जीवोकोपार्जन का कोई और दूसरा साधन नहीं है लाॅकडाउन में इस सामान का निर्माण कर लिया है परंतु खरीदार नहीं मिल रहें।
शादियों का समय आ रहा था यही सोचकर हमने काफी मात्रा में टिपारे डलियां बनाई थी पर लाॅकडाउन के चलते शादियां न होने के कारण सामान नहीं बिक पा रहा इससे काफी नुकसान हो रहा है वही पूंजी नहीं होने के कारण लडकियों की शादियां भी पाली पड़ रही है
बांस से घरेलू जरूरत का समान बनाने वाले अब घरेलू सामान के अलावा कई तरह से सजावटी सामान बना रहे हैं। जिसकी बाजार में अच्छी मांग है। टोकरी, पर्रा, सूपा, झांपी, पंखा के अलावा पिंजरा की तरह चिड़ियों का बसेरा, पक्षियों को पानी देने का पात्र, बांस से पशु-पक्षी आदि बना रहे हैं, जिसकी ओर ग्राहकों का ध्यान आकर्षित हो रहा है। खासकर बांस से सामान व कलाकृति बनाने वाले कमार, कंडरा परिवार इस व्यवसाय में लगे हुए हैं। मशीनी युग में बाजार तक पहुंच रहे प्लास्टिक आदि से बने सस्ते सामानों के आगे व्यवसाय को जीवित रखना एक चुनौती है। इस चुनौती को स्वीकारने में बांसवार परिवार लगे हुए हैं।
आधुनिकता की चकाचौंध में बांस से निर्मित होने वाले बर्तनों, पूजा सामग्री, घरेलू उपयोग के सामान सहित साज सैया की सामग्रियों का अस्तित्व लगभग अंत के कगार पर है। इस परंपरागत व्यवसाय से जुड़े एक खास जाति मल्लिक लोगों के बीच भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई है।
सूबे सहित केंद्र की सरकार द्वारा गरीब, हरिजन, आदिवासी के उत्थान के लिए विभिन्न जनकल्याणकारी योजनाओं को क्रियान्वित किया जा रहा है। लेकिन बांंस से बनने वाली टोकड़ी, सूप, डगरा, चालन, शादी विवाह के लिए डाला सहित सजावट की विभिन्न उपयोगी सामग्री बनाने वाले मल्लिक जाति के लिए इस परंपरागत व्यवसाय को बचाने व बढ़ाने के लिए एक भी योजना नहीं बनाई गई। जिससे इनके बीच रोजगार का भी संकट खड़ा होता जा रहा है। इस क्षेत्र में हस्तकला को बढ़ावा देने के लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं है। जिससे बांंस से बने सामानों की बड़ी मुश्किल से घर-घर जाकर बेच कर किसी तरह अपनी और अपने परिवार के लिए दो जून की रोटी का इंतजाम कर पाता है। (इनपुट “जिज्ञासा कुंज दैनिक” एवम समाशोधन एनबीडी डेस्क)