आत्माराम त्रिपाठी की विशेष रिपोर्ट
लखनऊ । कोविड 19 कोरोनावायरस की वजह से संपूर्ण देश में लॉक डाउन जारी है लॉक डाउन के कारण देश के अलग-अलग हिस्सों में प्रवासी मजदूर छात्र पर्यटक फंसे हुए हैं। लाक डाउन में सबसे बुरी हालत प्रवासी मजदूरों की है। जिनके पास रहने और खाने का कोई ठिकाना नहीं है कोरोना संकट के इस घड़ी में प्रवासी मजदूरों और छात्रों के लिए स्पेशल ट्रेन चलाकर केंद्र की मोदी सरकार ने बड़ी राहत दी है राज्यों के अनुरोध अनुरोध के बाद केंद्र सरकार ने शुक्रवार से अलग-अलग राज्यों के लिए स्पेशल ट्रेन चलाने की अनुमति दे दी है इस तरह कई राज्यों के प्रवासी मजदूर ट्रेन के माध्यम से अपने घरों को जा सके मगर इस के लिए उन्हें कुछ जरूरी जानकारी रखना जरूरी है इस ट्रेन में वैसे ही यात्री सफर कर पाएंगे जिनका रजिस्ट्रेशन हुआ है यानी प्रवासियों के लिए चलने वाली स्पेशल ट्रेन में सफर करने वाले लोगों की एक लिस्ट तैयार की जाएगी और इसी के अनुसार इसमें लोग सफर करेंगे प्रवासी मजदूरों और छात्रों आज को अपने गृह राज्य में इसके लिए आवेदन करना होगा राज्य सरकार संबंधित राज्य में नोडल अधिकारी नियुक्त करेगी और नोडल ऑफीसर जो सूची तैयार करेंगे वही रेलवे को सौंपी जाएगी रेलवे फिर उन सभी यात्रियों को सूचना देगा ताकि समय पर स्टेशन पर रोक पहुंच सके जिनका लिस्ट में नाम होगा उन्हें सफर करने दिया जाएगा ऐसी खबरें विभिन्न सोशल मीडिया समाचार पत्रों के माध्यम से वायरल हो रही है किंतु सच्चाई इसके विपरीत है जिलाधिकारी द्वारा नियुक्त किए गए नोडल अधिकारी एवं बनाए गए कंट्रोल रूम में या प्रदेश स्तर पर नियुक्त किए गए रेक्स यू अधिकारियों के जो फोन नंबर जारी किए गए हैं उन पर प्रवासी मजदूरों द्वारा संपर्क करने पर या तो फोन उठाया नहीं जाता या फिर अधिकांश मोबाइल नंबर स्विच ऑफ बताया जा रहे हैं जिससे दूसरे प्रांतों में रह रहे मजदूरों के अंदर घबराहट उत्पन्न हो रही है बाहर रह रहे मजदूर अधिकारियों के बाद सोशल मीडिया का सहारा लेते हुए पत्रकारों को अवगत करा मदद की गुहार लगा रहे हैं इधर अधिकारी मदद करने की वजह अपना पिन छुड़ाते हुए मजदूरों को इधर से उधर बात करने को कह रहे हैं जिस तरह गेंद को एक हाथ से दूसरे हाथ में फेंका जाता है उसी तरह आज नियुक्त किए गए अधिकारियों द्वारा प्रवासी मजदूरों को नंबर दे कर के अपना पिंड छुड़ाया जा रहा है जिससे लाक डाउन के चलते परेशान मजदूर अपने आप को बेसहारा समझ रहे हैं व मानसिक रूप से परेशान होने लगे हैं जो किसी भी सरकार के लिए शुभ संकेत नहीं कहा जा सकता अब यह समझ में नहीं आ रहा यह कमी सरकार की है या उसके नुमाइंदों की या जनप्रतिनिधियों की जो प्रवासी मजदूरों की तरफ से मुंह मोड़े हुए हैं घोषणाएं तो चारों तरफ से हो रही हैं स्थानीय स्तर पर भूखों को खाना दिया जा रहा भोजन दिया जा रहा है लेकिन इन जनप्रतिनिधियों के द्वारा अपने जनपद के उन मजदूरों के प्रति मानवी संवेदनाएं नहीं है जो दूसरे प्रांतों में मजदूर मजदूरी के लिए गए हैं और लाक डाउन के वजह से फंस गए हैं अपने घरों को नहीं आ पा रहे जो घर आना चाहते हैं।
बात की जा रही है रजिस्ट्रेशन कराने की तो रजिस्ट्रेशन कैसे होगा कौन करेगा जब मजदूरों के फोन भी नहीं उठ रहे हैं। सरकार को चाहिए कि वह अपने प्रदेश के ग्राम स्तर के कर्मचारियों को निर्देशित करें साथ गांव के प्रधानों को की वह अपने ग्राम से बाहर रह रहे लोगों की लिस्ट तैयार कर जिला प्रशासन को सौंपे और जिला प्रशासन उस पर उचित कार्रवाई करते हुए बाहर रह रहे मजदूरों के वापसी का रास्ता प्रशस्त करें। उत्तर प्रदेश सरकार सहित सभी जिम्मेदार अधिकारियों जनप्रतिनिधियों का ध्यान मजदूरों की इन विषम परिस्थितियों में घर वापसी कराए जाने हेतु ध्यान अपेक्षित।