विमला मेहरा की रिपोर्ट
कोरोना वायरस के कारण इस समय लोगों को लॉक-डाउन में रहना पड़ रहा है और इसी लॉकडाउन के कारण रेड लाइट एरिया में जिस्म का धंधा करने वाली औरतों का काम बंद हो गया और उनके खाने-पीने की भी हालत नहीं हैं।
जी हाँ, हाल में मिली जानकारी के मुताबिक कोलकाता के 10 किलोमीटर दूर सोनागाछी गलियों के बारे में खबर मिली है कि वहां जिस्म का धंधा करने वाली औरतों को खाने के लिए भी नहीं मिल रहा है। आप जानते ही होंगे लॉकडाउन के पहले देखा जाए तो यहाँ का हर क़स्बा काफी खचाखच भरा रहता था लेकिन इस समय गालियां वीरान हो गई हैं। जी दरअसल कोरोनावायरस ने इन औरतों का काम धंधा छीन लिया है अभी इन गलियों में कोई नहीं आता है।
वहां की महिलाओं ने बताया कि ”उनका खाने पीने का सामान भी नहीं दिया जा रहा हैं, ग्राहकों के आने की वजह से उनका गुजारा होता था लेकिन अब वायरस के कारण कोई भी इनका जिस्म नहीं छूना चाहता हैं.” आप सभी को बता दें कि सोनागाछी में 8000 महिलाएं ऐसी हैं जिनका परिवार इस जिस्म बेचने वाले धंधे से चल रहा है, एक वक्त की रोटी कमाने के भी लाले पड़ गए हैं, पहले यहां पर रोजाना रात में 15 से 20000 लोग आते थे लेकिन अब यहां पर पूरी तरह सन्नाटा छा गया हैं. इसी के साथ मिली जानकारी के मुताबिक यहां इस समय खाने के लाले पड़े हैं।
बिहार के कटिहार शहर में अवस्थित करीब 2500 देहकर्मी के बारे में भी खबर है कि उनकी खूबसूरती पर जान छिडकने वाले अय्याशों के नहीं आने की वजह से आज उनका ये हाल है कि यदा कदा सरकारी खाद्यान्न सामग्री बांटने वालों पर उनकी रोटी चल रही है लेकिन अन्य जरुरतें जो उनके आम दिनों में जैसे पान , सिगरेट, गुटखा, शराब आदि के लाले पड़ गए हैं।
बता दें कि इनकी ये आवश्यकताएं पेशागत काफी महत्वपूर्ण है। एक देहजीवा से मुलाकात के दौरान उसने बताया कि, सुबह सात बजे से शुरू हो कर देर रात तक उनके जिस्म से खेलने अमूमन 10 से 20 तक मर्द आते हैं। अक्सर की ये इच्छा होती है कि पोर्न फिल्मों की तरह क्रूडावस्था में उन्हें सेक्स करने दिया जाए। इसके लिए जब उनसे हम मुंहमांगी कीमत मांगते हैं तो वो दे भी देते हैं। हमारी मालकिन को हमारे जिस्म की परवाह कम बल्कि हमारी कमाई की उम्मीद ज्यादा होती है। इस लक्ष्य में हमारे साथ ग्राहकों की क्रूडता हमारे जिस्मों को घायल करती है। किसी तरह हम उसे सहन करने की कोशिश कर भी लेते हैं।’
मुजफ्फरपुर चतुर्भुज स्थान की रेड लाइट एरिया का भी इस लाक डाउन में बुरा हाल है। खाने भर की जरूरत किसी तरह पूरी हो जाती है लेकिन उन्हें यह अंदेशा सता रही है कि जब लाक डाउन खुल जाएगा तो भी क्या उनके टाइम पास आशिकों की चहलकदमी लौट आएगी ?
जी दरअसल यहाँ पर रहने वाली महिलाओं के बारे में आप यह भी जानते ही होंगे कि वह बांग्लादेश और एशियाई हैं, इन महिलाओं का परिवार इसी काम की वजह से पल रहा था लेकिन इस समय ग्राहक नहीं आने की वजह से भूख से मर रही है। वहीं इन महिलाओं ने बताया कि ”सरकार भी उनके लिए कोई अच्छा प्रबंध नहीं कर रही लेकिन कुछ एनजीओ की टीम की बात करें तो खाने पीने की चीजों को लगातार बाँट रही और मदद के लिए आगे आ रही है।”