हिन्दू धर्म में कई शास्त्र ग्रंथ और पुराण हैं, जिनमें 84 लाख योनियों की अवधारणा का उल्लेख मिलता है। हालाँकि यह स्पष्ट नहीं है कि क्या यह एक तथ्यात्मक विश्वास है। साथ ही हिंदू धर्म के अनुसार केवल मनुष्य ही ईमानदारी और बेईमानी जैसे नैतिक कार्यों को करने में सक्षम हैं और उनके कर्म स्वर्ग या नरक में उनके अंतिम गंतव्य को निर्धारित भी करते हैं।किसी की आर्थिक स्थिति से अधिक उसका चरित्र महत्वपूर्ण बताया जाता है, क्योंकि इतिहास व्यक्तियों को उनके व्यवहार के आधार पर याद रखता है और यही कारण है कि भगवान राम और दुर्योधन जैसे विभूतियों को आज भी याद किया जाता है। आमतौर पर जाना जाता है, महिला प्रजनन अंग, जिसे योनि के रूप में जाना जाता है, आत्मा के जन्म का स्रोत होता है। यह विभिन्न प्राणियों जैसे कि जानवरों, पक्षियों, कीड़ों, सांपों और मनुष्यों सहित अन्य पर लागू भी होता है। ठीक 84 लाख योनियाँ हों, यह आवश्यक नहीं है क्योंकि समय के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के जीवों का उदय हुआ है। आधुनिक विज्ञान के अनुसार अमीबा से मनुष्य तक की यात्रा में लगभग 1 करोड़ 04 लाख योनियां शामिल होती हैं। ब्रिटिश वैज्ञानिक रॉबर्ट एम. में का अनुमान है कि दुनिया में जानवरों, कीड़ों, पक्षियों, पौधों और जलीय और स्थलीय जानवरों सहित 87 लाख प्रजातियां भी हैं। इस गिनती में थोड़ा अंतर हो सकता है, लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि हजारों साल पहले, बिना किसी तकनीकी साधन के, ऋषियों और बुद्धिमान व्यक्तियों ने पता लगाया कि लगभग 84 लाख योनियां होती हैं।धार्मिक ग्रंथों में बोला गया है कि 84 लाख योनियां हैं, जिनमें जलीय जानवर, कीड़े-मकोड़े, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, मनुष्य और बंदर शामिल भी हैं। योनियों में मनुष्य योनि सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। योनियों को दो भाग योनिज और आयोजित में बांटा गया है जबकि जीवों को जलीय, स्थलीय और जलीय जीवों में वर्गीकृत किया गया है। जैसे वृक्ष के रूप में 30 लाख बार जन्म लिया गया और जल जीव के रूप में 9 लाख बार, कीड़े-मकौड़े के रूप में 10 लाख बार, किसी अन्य की योनि में 11 लाख बार, पशु और पक्षी की योनि में 20 लाख बार। यह जरूर से ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि मनुष्य के रूप में जन्म लेने के लिए इन सभी प्रजातियों का अनुभव करना आवश्यक है और इसलिए आत्मा के जीवन के प्रकार को निर्धारित करने में कर्म के महत्व पर जोर भी दिया जाता है।