ओडिशा के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ का मंदिर अकेला ऐसा मंदिर है जहां जगन्नाथ जी अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ में विराजमान हैं।कहते हैं कि पुरी भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर है और यह तीनों बहन-भाई अपनी मौसी के घर घूमने के लिए आए थे। इस दौरान इनकी तबीयत खराब हो जाती हैं और फिर दवाएं देकर इन्हें ठीक किया जाता है और यह परंपरा आज भी जगन्नाथ पुरी में निभाई जाती है। आज भी जगन्नाथ रथ यात्रा से 15 दिन पहले भगवान बीमार होकर एकांतवास में चले जाते हैं और किसी को दर्शन नहीं देते। फिर 15 दिन में ठीक होकर आते हैं और अपने भक्तों को दर्शन देते हैं। तभी जगन्नाथ रथ यात्रा शुरू होती है और इस रथ यात्रा से जुड़ी कई ऐसे रहस्य व कहानियां हैं जो कि आज भी लोगों को काफी हैरान कर देती हैं।
जगन्नाथ रथ यात्रा 2023
इस साल जगन्नाथ रथ यात्रा 20 जून 2023, मंगलवार के दिन शुरू होगी और इस दिन भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ नगर का भ्रमण करने के लिए निकलेंगे। इस रथ यात्रा की तैयारियां कई महीने पहले शुरू हो जाती हैं और इससे जुड़े कुछ ऐसे नियम हैं जिनका आज भी पूरी श्रद्धा के साथ पालन किया जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि जगन्नाथ रथ यात्रा के लिए उपयोग होने वाली लकड़ी सोने की कुल्हाड़ी से काटी जाती है? तो आइए जानते हैं इसके बारे में डिटेल से।
सोने की कुल्हाड़ी से काटते हैं लकड़ी
लोगों को यह बात सुनकर शायद थोड़ा अजीब लगेगा कि रथ बनाने के लिए जिन लकड़ियों का उपयोग किया जाता है उन्हें सोने की कुल्हाड़ी से काटा जाता है। रथ बनाने में दो महीने का समय लगता है और इसकी शुरुआत अक्षय तृतीया के दिन से ही हो जाती है। इसके लिए सबसे पहले लकड़ी का चुनाव किया जाता है और फिर वन विभाग के अधिकारियों को मंदिर समिति के लोग सूचना भेजते हैं कि उन्हें रथ के लिए लकड़ियां काटनी है। इसके बाद मंदिर के पुजारी के जंगल जाकर उन पेड़ों की पूजा करते हैं जिनकी लकड़ियां रथ के लिए उपयोग होने वाली है फिर महाराणा यानि कारपेंटर कम्युनिटी के लोग पेड़ों पर सोने की कुल्हाड़ी से कट लगाते हैं। कट लगाने से पहले सोने की कुल्हाड़ी को पहले भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा से स्पर्श कराया जाता है और उनका आशीर्वाद भी लिया जाता है।