बिनोद गुप्ता की रिपोर्ट
वाराणसी। लॉकडाउन भले मुश्किल भरा हो, लेकिन इस वक्त प्रकृति खिल-खिला रही है। काशी में गंगा इतनी स्वच्छ हो गई हैं, मानों मा गंगा इस दिन का ही इंतजार कर रही थी। लॉकडाउन की वजह से ऐसा बदलाव देखकर घाट किनारे रहने वालों को खुशी हो रही है। बताया जा रहा है की वाराणसी में गंगा 40 प्रतिशत तक शुद्ध हो चुकी हैं। जो मछलियां कभी जल में प्रदूषण की भेंट चढ़ जाती थीं, वो मछलियां सीढ़ियों के किनारे अटखेलियां ले रही हैं। पानी में जलीय जंतु क्रीड़ा कर रहे हैं। वैज्ञानिकों की मानें, तो गंगा का पानी अब स्नान और आचनम करने योग्य है। लोग बता रहे हैं की मोक्षदायिनी मां गंगा सालों पहले इतनी अविरल और निर्मल हुआ करतीं थीं।
लॉकडाउन के 30 दिन से अधिक का समय बीत गया है। बनारस के घाटों पर सन्नाटा पसरा हुआ है, काशी विश्वनाथ से लेकर कालभैरव और संकट मोचन दरबार भी सूना है। पर काशी के लोग इस बात से खुश भी हैं कि करीब 40 साल बाद मां गंगा इतनी साफ हुई हैं। हवा प्रदूषण मुक्त हो गई है। प्रकृति अपनी अलबेली धुन में मानों सालों बाद गा रही हो। घाट किनारे पीपल के पेड़ की हरी पत्तियां हवाओं के साथ ऐसे संगत कर रही जैसे किसी घोड़े की सवारी कर रही हो। यह लॉकडाउन इंसानों के लिए चाहे जितना कष्टकारी हो पर हमेशा इनके कारगुजारियों दुर्बल होने वाली प्रकृति आज सबसे सबल दिख रही है। यहां रहने वालों के मन में एक बात यह भी आ रही है कि वो पहले की अपेक्षा बीमार कम पड़ रहे हैं। प्रकृति को मानो नया जीवन मिल गया हो।
पर्यावरणविद पीके मिश्र कहते हैं की लॉकडाउन की वजह से फैक्ट्रियां बन्द पड़ी हैं। वाहनों का चलना नहीं हो रहा ऐसे में पर्यावरण शुध्द हुआ है साथ ही गंगा अविरल हो गईं हैं 70 साल के पंडित हीरामणि उपाध्याय कहते हैं की इस कदर बंदी हमने पहले कभी ना देखी। लोगों के मन में अब भी बहुत आशा और विश्वास है की यहां जल्द सब कुछ सही हो जाएगा। जल्द फिर बनारस आने पुराने दिनों में लौटेगा।