विनोद गुप्ता की रिपोर्ट
वाराणसीः नाव पर खाना, पीना, सोना और समय बिताना, आम तौर पर ये किसी नाविक की दिनचर्या लग रहा होगा, लेकिन वाराणसी के जिला मुख्यालय से लगभग 24 किलोमीटर दूर चौबेपुर ग्रामीण क्षेत्र के गंगा किनारे बसे गांव कैथी में गुजरात के मेहसाणा से आए 2 दोस्तों ने हालात के साथ समझौता कर लिया। लाॅकडाउन में फंसे होने के दौरान लाख दुश्वारियों और मुश्किलों को झेलते हुए गुजरात के मेहसाणा से अपने गांव कैथी पहुंचे तो परिवार और गांव वालों ने गांव में एंट्री ही नहीं दी। तब से लगभग ढाई हफ्ते का वक्त बीत जाने के बावजूद नाविक परिवार के पप्पू और कुलदीप निषाद जो मेहसाणा में गन्ने के जूस की पेराई की मजदूरी किया करते थे, वे गंगा की लहरों पर ही अपने पैतृक नाव पर खुद को क्वारंटाइन कर लिया है।
इस बारे में कुलदीप बताते है कि तमाम कोशिशों के बाद जब मालिक ने भी पैसे नहीं दिए तो अन्य लोगों से मदद मांगकर श्रमिक ट्रेन से गाजीपुर तक आए फिर वहां थर्मल स्क्रिनिंग और ब्लड चेक कराकर बस से वाराणसी अपने गांव कैथी आ गए। उसके बाद मोहल्ले में बैग रखकर वापस नाव पर आ गए। कुछ दिनों बाद गांव जरूरत का सामान लेने गए तो गांव वालों ने रोक दिया तभी से नाव पर ही रह रहें हैं। चूकि साग-सब्जी नहीं मिल पा रहा है तो गंगा में से मछली पकड़कर उसे पकाकर खा ले रहें हैं।
कुलदीप आगे बताते हैं कि उनके गांव में देश के कोने कोने से श्रमिक लौटे हैं, लेकिन उन दोनों को छोड़कर कोई और क्वारंटाइन का पालन नहीं कर रहा है। इस घड़ी में कुलदीप के माता-पिता तक ने उनको घर में घुसने से मना कर दिया। तभी से वे नाव पर ही आकर लगभग ढाई हफ्तों से रह रहें हैं। जब तक घर से खाना और पैसा मिला तो ठीक नहीं तो नहीं मिला, लेकिन किसी तरह की सरकारी मदद उनतक नहीं पहुंची।
वहीं कुलदीप के साथ ही गांव लौटे पप्पू निषाद तो और ज्यादा बदकिश्मत हैं। पहली बार बाहर कमाने तीन माह पहले ही मेहसाणा गए थें, लेकिन कुछ दिनों बाद ही लाॅक डाउन लग गया। वे बताते है कि वे मेहसाणा में वे भी गन्ने की मशीन चलाया करते थें। किसी तरह अपने गांव तक आए तो कोई गांव में घुसने तक नहीं दिया। 15-16 दिन से नाव पर ही रह रहें हैं। जब कभी कुलदीप के घर से मदद मिल गई तो ठीक नहीं तो मछली मारकर अन्य मल्लाह साथी दे देते हैं तो वहीं खा लेते हैं।