अर्पित श्रीवास्तव की रिपोर्ट
तिन्दवारी। विकासखंड के क्षेत्र माटा गांव निवासी युवक बीते 8 वर्ष पहले रोजी रोजगार की तलाश में बेंगलुरु पहुंच गया जहां पर उसने गाड़ी चलाने का हुनर सीख लिया इसके बाद वह एक्सप्रेस कंपनी में गाड़ी चला कर अपने परिवार का भरण पोषण करने लगा लेकिन कोरोना महामारी के चलते वह गांव लौट आया।शहर में मिला हुनर उसके जीविकोपार्जन का सारथी बना लिया। आज वह टैम्पो चलाकर परिवार की गाडी चला रहा है। माटा गांव निवासी अभिलाष 24 पुत्र बल्ली यादव बताते हैं कि वह बंगलुरु में 8 वर्ष तक रहा। बीच-बीच में गांव आता जाता रहता था। कोरोना महामारी के चलते लाकडाउन घोषित कर दिया गया। कल कारखाने बंद हो गए । जिससे वह भी बेरोजगार हो गया। उसे चालक के रूप में मिली नौकरी भी चली गई। परदेस में भरण पोषण की समस्या आ गई किसी तरह वह ट्रक में सवार होकर गांव पहुंचा और वहां पर कोरेंटिन रहकर उसने अपने सेहत की जांच कराई । उसके बाद वह शहर में सीखे हुए हुनर के चलते टेंपो चलाकर अपने घर गृहस्ती चला रहा है।नियम सख्त हैं। वह निर्धारित सवारी की ही खेप लेकर चलता है। कहतें है कि लॉकडाउन है, लेकिन पेट को तो लॉक नहीं कर सकते। पहले कम्पनी के लोगों को मंजिल तक पहुंचाते थे। अब गांव की सवारियों को उनके ठिकाने तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं। लॉकडाउन ने हजारों मजदूरों की मजदूरी छीन ली है। ऐसे में कुछ ऐसे भी जीवट लोग हैं जिन्होंने समय के अनुकूल जीने की राह अख्तियार कर ली है। अखिलेश भी उन्हीं में से एक है।उसने बताया कि सामाजिक दूरी का ख़्याल रखते हुए वह प्रतिदिन सवारी लेकर जाता है। अखिललेश की मानें तो गाड़ी चलाना उसे बेहद पसन्द है।