अनुज कुमार गुप्ता की रिपोर्ट
हरदोई जिले की माटी में जन्मे व टड़ियावां के प्राथमिक विद्यालय में टाट पट्टी पर बैठकर ककहरा सीखने वाले सुधांशु कुमार शुक्ला की पहचान पोलैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ वॉरसा में हिंदी से बनी।उन्होंने यहां विदेशी छात्र-छात्राओं को हिंदी का होनहार बनाया। भारत सरकार की परिषद आईसीसीआर उन्हें चेयर ऑफ हिंदी के पद पर नामित कर चुकी है।
टड़ियावां के ग्राम बहोरवा में जगत नारायण शुक्ला के यहां छह मार्च 1961 को डॉ. सुधांशु कुमार शुक्ला ने जन्म लिया। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राइमरी विद्यालय आलूथोक में पूरी की। इसी दौरान उनके पिता की नौकरी शिक्षक पद पर दिल्ली में लग गई तो वे भी साथ में चले गए। कक्षा पांच के बाद की शिक्षा उन्होंने दिल्ली में ही पूरी की। बचपन से ही उन्हें हिंदी विषय आकर्षित करता था।
इसी कारण उन्होंने बीए करने के बाद हिंदी से एमए किया। फिर एमफिल व एमए पत्रकारिता की डिग्री भी हासिल की। भाषा विज्ञान में भी उन्होंने डिप्लोमा भी किया। इसके बाद वे माडर्न स्कूल बारह खंभा दिल्ली में शिक्षक पद पर अध्यापन कार्य करने लगे। चार सितंबर 1998 में उनका चयन हंसराज महाविद्यालय दिल्ली विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर हो गया तब से लेकर दिसंबर माह तक वे इसी पद पर रहे।
दिसंबर में आईसीसीआर द्वारा उनका नाम यूनिवर्सिटी ऑफ वॉरसा, पोलैंड में हिंदी पढ़ाने के लिए भेजा गया। इसके बाद उन्हें ससम्मान चेयर ऑफ हिंदी के पद पर नामित करते हुए वर्ष 2018 में पोलैंड भेजा गया। वहां वे तीन वर्षों तक विदेशी छात्र-छात्राओं को अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी की बारीकियां समझाते रहे। वर्ष 2021 में जुलाई में ही वे भारत वापस आए हैं।भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के अधीन है। यह परिषद विदेशों में स्थित विश्वविद्यालयों में भारतीय संस्कृति को प्रसारित करने के लिए काम करती है। भारत सरकार द्वारा हिंदी प्रोफेसरों को विदेशी विश्वविद्यालयों में पढ़ाने के लिए भेजा जाता है। प्रक्रिया के अनुसार पहले प्रोफेसर का नाम उस विदेशी विश्वविद्यालय को भेजा जाता है। इसके बाद वहां से सहमति दी जाती है। इसके बाद आईसीसीआर प्रोफेसर को चेयर ऑफ हिंदी से भी सम्मानित करती है और विदेशी विश्वविद्यालय भेजती है।
गौतम गंभीर व नंदा रहे मेरे शिष्य
क्रिकेटर गौतम गंभीर व सुपर स्टार अमिताभ बच्चन के दामाद निखिल नंदा भी उनके शिष्य रहे हैं। वार्ता के दौरान डॉ. सुधांशु कुमार शुक्ला ने बताया कि एक शिक्षक की भूमिका में रहकर कभी सोचता हूं कि जीवन में क्या पाया। इस बात की संतुष्टि मिलती है कि दूसरों का भविष्य बनाने वाला यह शिक्षक पद दूसरे रोजगारों से कहीं बेहतर है।
ये भी उपलब्धियां
. 15 से अधिक देशों के प्रवासी हिंदी साहित्यकारों को अपनी कलम से साधा और उनके साहित्य पर समीक्षात्मक लेखन किया।
. पोलैंड दूतावास में कराया आजादी का अमृत महोत्सव, जो काफी सराहा गया।
. हिंदी के साहित्यकार डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक के साहित्य का अध्ययन कर उनके अंतहीन कहानी संग्रह पर अंतहीन विमर्शों का पुंज एक शोधपरक पुस्तक भी लिखी।
. हिंदी को बढ़ावा देने के लिए कई लेख व पुस्तकों को लिखा।
.वर्तमान में सुप्रसिद्ध हिंदी लेखक, समीक्षक और आलोचक के रूप में जगह बनाई।