राजीव आनंद की रिपोर्ट
मुरादाबाद के हरपाल नगर चौराहे पर होप हॉस्पिटल ऐंड मैटरनिटी सेंटर में डॉ. शाजिया मोनिस ऑपरेशन थिएटर से मुस्कराते हुए निकलती हैं और बताती हैं, ‘‘आज तीन दिन बाद एक डिलिवरी हुई है.” लॉकडाउन से पहले इस मैटरनिटी सेंटर में हर रोज तीन-चार डिलिवरी होती थी और लगभग इतना ही लीगल एबोर्शन या गर्भपात के मामले होते थे. लेकिन लॉकडाउन के बाद अचानक जच्चा-बच्चा के मामले आने कम हो गए. नियमित रूप से दिखाने वाली गर्भवती महिलाएं भी नहीं आ पा रही हैं और गर्भधारण करने वाले नए मामले तो बहुत नगण्य हैं. दरअसल, लॉकडाउन के दौरान सरकार ने आपातकाल सेवाओं को छोड़कर लगभग सभी तरह की स्वास्थ्य सेवाओं पर रोक लगा दी. ऐसे में परिवार नियोजन सेवाओं पर भी तकरीबन तालाबंदी ही है. नतीजतन, अनचाहे गर्भ और असुरक्षित गर्भपात जैसे मामलो के बढ़ने का अंदेशा बढ़ गया है.
कम हुई गर्भनिरोधकों की खपत
लॉकडाउन के दौरान हालांकि दवाई की दुकानें खुली हुई हैं लेकिन लोग केवल बेहद जरूरी काम से बाहर निकल सकते हैं. देश में गर्भनिरोधक खरीदने जाना अब भी वर्जना का विषय माना जाता है. दिल्ली के कई बड़े अस्पतालों में कंसल्टेंट गायनीकोलॉजिस्ट और फेम केयर क्लिनिक की डॉ. पूजा राणा कहती हैं, ‘‘अक्सर लोगों के घर में बड़े-बुजुर्ग रहते हैं और लॉकडाउन के दौरान बाहर निकलने का एक जायज बहाना होना चाहिए. कई युगल के पास लॉकडाउन के दौरान सुरक्षित यौन संबंध का कोई विकल्प नहीं होगा. ऐसे में अनचाहे गर्भ के मामले बढ़ सकते हैं.” उनका अंदेशा सही लगता है. फाउंडेशन फॉर रिप्रोडक्टिव हेल्थ सर्विसेज (एफआरएचएस), इंडिया ने पूर्व (2017, 2018 और 2019) के आंकड़ों और गर्भ न ठहरने के लिए बाजार में मौजूद कॉन्ट्रासेप्टिव और आइयूसीडी (इंट्रा यूट्रीनल कॉन्ट्रासेप्टिव डिवाइस) की बिक्री के आंकड़ों के आधार पर एक विश्लेषण किया तो पाया कि लॉकडाउन की वजह से परिवार नियोजन जैसी योजना को एक बड़ा झटका लगने का अंदेशा है. अध्ययन के दौरान सामने आए नतीजों के मुताबिक 23 लाख अनचाहे गर्भधारण किए जाने, 6.79 लाख बच्चों के जन्म लेने, 14.5 लाख गर्भपात (इसमें असुरक्षित गर्भपात भी शामिल हैं) और 1,743 माताओं की मृत्यु का अनुमान है.
क्या कहते हैं विश्लेषण आधारित शोध
एफआरएसएच का अनुमान है कि सितंबर से पहले तक परिवार नियोजन की सेवाएं पूरी तरह शुरू नहीं हो पाएंगी और मई के तीसरे सप्ताह से गर्भनिरोधकों की बिक्री पटरी पर आने लगेगी. लेकिन तब तक 2.56 करोड़ युगलों के पास सुरक्षित यौन संबंध का खास विकल्प नहीं होगा. ऐस में 69 लाख स्टर्लाइजेशन सेवाएं, 97 लाख इंट्रा यूटेरिन कॉन्ट्रासेप्टिव डिवाइस (आयूसीडी), आइसी के 58 लाख डोज, गर्भ रोकने के लिए खाने वाली गोलियों के 2.3 करोड़ साइकल, 92 लाख इमजेंसी कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स और 40.59 करोड़ कंडोम धरे रह जाएंगे. जच्चा-बच्चा मामलों के विशेषज्ञों के अनुभव इस अंदेशे की पुष्टि करते लगते हैं. ऑब्स्टेट्रिशियन और गायनीकोलॉजिस्ट डॉ. शाजिया बताती हैं, ‘‘ मैंने लीगल एबोर्शन के लिए किट रखा हुआ है लेकिन लॉकडाउन के दौरान महीने में इनकी खपत बेहद कम हो गई है. पहले हर रोज करीब चार-पांच निकल जाता था लेकिन लॉकडाउन के दौरान 10 का डिब्बा अभी तक चल रहा है.”
नतीजतन, 23 लाख अनचाहे गर्भ धारण किए जाने की संभावना है. 6.79 लाख बच्चों के जन्म लेने, 14.5 लाख गर्भपात (इसमें असुरक्षित गर्भपात भी शामिल है.) और 1,743 माताओं की मृत्यु की संभावना है. अगर यह लॉकडाउन और ज्यादा बढता है तो यह आंकड़े और भी खतरनाक हो सकते हैं.
लॉकडाउन के बीच परिवार नियोजन नहीं होगा आसान
एफआरएचस के मुख्य कार्यकारी अधिकारी वी.एस. चंद्रशेखर कहते हैं, ”सरकारी अस्पतालों में कोविड-19 के अलावा अन्य स्वास्थ्य सेवाओं की सुविधा बेहद सीमित हैं. निजी क्लिनिक लॉकडाउन के चलते सेवाएं बहुत कम ही दे पा रहे हैं. मेडिकल स्टोर खुले हुए हैं, यहां ओरल पिल्स, कांडोम या दूसरे अन्य आपातकाल कॉन्ट्रासेप्टिव उपलब्ध हैं लेकिन लॉकडाउन की सख्ती के चलते लोग इन्हें खरीदने के लिए जा नहीं रहे. वैसे भी कॉन्ट्रासेप्टिव्स के उपभोक्ताओं का खरीद पैटर्न इस ओर इशारा करता है कि लोग अपने आसपास के मेडिकल स्टोर की बजाए अपनी सोसाइटी या मोहल्लों से दूर किसी दुकान से खरीददारी खरीदने को तरजीह देते हैं.” यही परेशानी नहीं है. देश में महिलाओं का बंध्याकरण या स्टर्लाइजेशन गर्भनिरोध का पसंदीदा साधन है. लेकिन स्वास्थ्य मंत्रालय ने अगले नोटिस तक बंध्याकरण और आइयूसीडी की सेवा रोक दी है. चंद्रशेखर बताते हैं कि पिछले डेढ़ महीने में बंध्याकरण का काम लगभग शून्य हो गया है क्योंकि २० मार्च के बाद बिहार, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के जिलाधिकारियों ने परिवार नियोजन की सेवाएं रोक देने के लिए कहना शुरू कर दिया था. बंध्याकरण का ज्यादातर काम सरकारी अस्पतालों में ही किया जाता है.
परिवार नियोजन के उपायों में आई गिरावाट, आंकडे़ भी दे रहे गवाही
कामसूत्र कंडोम के निर्माता और बिक्रेता रेमंड कंज्यूमर केयर में मुख्य कार्यकारी अधिकारी सुधीर लैंगर के मुताबिक, ‘‘मार्च के महीने में कामसूत्र कंडोम की बिक्री में 50 फीसद और अप्रैल में 60 फीसद की गिरावाट आई.” उन्हें उम्मीद है कि लॉकडाउन 4.0 में मिली कुछ छूट की वजह से मई के आंकड़ों में शायद कुछ सुधार आए. ऐसे में केवल कंडोम बनाने वाली कंपनियों का ही धंधा प्रभावित नहीं हुआ है. आइयूसीडी की निर्माता प्रेग्ना ब्रांड के मैनेजिंग डायरेक्टर मुकिल टपारिया कहते हैं, ” हमारे उपभोक्ता 80 फीसद सरकार है तो 20 फीसद निजी अस्पताल या क्लिनिक हैं. लेकिन इस बार सरकार का टेंडर लगातार टलता जा रहा है. सामान्य परिस्थितियों में अप्रैल या मई में आइयूसीडी के सरकारी ऑर्डर हमें मिलते हैं. लेकिन लॉकडाउन की वजह से अभी सब रुका हुआ है. ऑर्डर मिलने के बाद 3-6 महीने के भीतर हम डिलिवरी करते हैं. दूसरी तरफ निजी क्लिनिक ज्यादातर बंद ही रहे. अब खुलना शुरू हुए हैं तो दूसरी बेहद सीमित स्वास्थ्य सेवाओं ही फिलहाल दे रहे हैं.”
इस तालाबंदी ने परिवार नियोजन की सारी मंसूबेबंदी पर पानी फेर दिया है. ऐसे में अनचाहे गर्भ और फिर गर्भपात से नई समस्याएं खड़ी हो सकती हैं.