शशांक तिवारी की रिपोर्ट
लखनऊ– महानगर परिवहन सेवा गोमती नगर डिपो उत्तर प्रदेश। यहां की संविदा चालक परिचालकों की काफी समस्याएं हैं और इस डिपो की स्थापना सन 2005 में हुई थी तब से किलोमीटर की दर से ही हम लोगों को वेतन मिलता है और 2014 में जब कांग्रेस की सरकार थी तो गोमती नगर डिपो को 260 बसें सीएनजी सौंपी गई थी नई और उसके बाद से अभी तक कोई भी बस डिपो के अंदर नई बेड़े में नहीं शामिल की गई हैं उन्हीं खटारा और नीलाम होने वाली बसों का स्मार्ट सिटी के अंदर संचालन हो रहा है यह जितनी भी बसें डिपो के अंदर बची हैं यह सारी जर्जर और कबाड़ा खटारा हो चुकी है रोड पर चलने योग्य नहीं है मगर विभाग के अधिकारी एक दूसरे के ऊपर आरोप प्रत्यारोप लगाते रहते हैं और कर्मचारियों की जो दिक्कतें हैं उन को ध्यान में रखकर कोई उचित कदम नहीं उठाते हैं और हम लोगों की 1 साल से तो इतनी समस्याएं हैं जबसे इन सिटी बसों का संचालन लखनऊ से बाराबंकी देवा शरीफ चारबाग से मोहनलालगंज कैसरबाग से माल मलिहाबाद बख्शी तालाब कैसरबाग हैदर गढ़ इन रूपों का संचालन बंद हुआ है तब से विभाग की इनकम तो घटी है और हम लोगों की समस्याएं बहुत ही ज्यादा उत्पन्न हो चुकी है जबसे इन रूटों पर संचालन बंद किया गया विभाग की तरफ से तब से सभी स्टाफ बेरोजगार हो गए बराबर ड्यूटी नहीं मिल रही है और हम लोग बराबर डिपो आते हैं वापस चले आते हैं गाड़ी के पास गाड़ियां नहीं है तो हम लोगों को ड्यूटी नहीं मिलती है मगर विभाग के अधिकारी अपना आते हैं हम लोगों की दिक्कतों से उनका कोई लेना देना नहीं बस हम लोग अपनी आवाज उठाते हैं तो विभाग के एमडी महोदय धमकी देते हैं संविदा समाप्त करने की और जब रोड पर इनकम नहीं आती है तो उसके लिए भी ड्यूटी रोकी जाती है 50 वर्ष से कम नहीं होना चाहिए मगर विभाग के अधिकारियों को यह तो पता ही है कि जब यह खटारा और नीलाम होने वाली बसें बेड़े में नहीं शामिल होनी चाहिए इनका संचालन गलत है मगर तब भी इनका संचालन करवाया जा रहा है तो इस तरह की बसों पर कौन बैठेगा कौन अपनी जान से खिलवाड़ करेगा इतना सब कुछ पता होने के बावजूद भी यह गाड़ियां चल रही है ना तो विभाग ध्यान दे रहा है ना तो नगरी निदेशालय ध्यान दे रहा है ना तो सरकार ध्यान दे रही है तो इस परिस्थिति में हम लोग बहुत परेशान हैं और नई गाड़ियां आने की कोई उम्मीद नहीं है और हम लोगों की जो सैलरी मिलती है वह ₹2 पांच पैसे किलो मीटर की दर से ही भुगतान होता है 2012 से लेकर अभी तक कोई भी वृद्धि नहीं हुई है और जिस को ड्यूटी मिलती है एक महीने बराबर तो उसकी सैलरी साडे 7000 से लेकर 8000 तक ही बनती है तो इस तरह की महंगाई में इतनी कम सैलरी में हम लोगों को जीवन यापन करने में अपना घर परिवार पालने में कितनी मुसीबतों से जूझना पड़ता है और इसके बावजूद भी यह जो सैलरी बनती है इसको टाइम से दिया नहीं जाता है 3 महीने 4 महीने बाद दिया भी जाता है तो आधी अधूरी सैलरी दी जाती है तो इतना शोषण अत्याचार हो रहा है 2000 910 में 260 बसों की खेती थी और अब सिर्फ और सिर्फ 4045 वैसे ही योग्य हैं वह भी पूर्ण रूप से चलने लायक नहीं है सभी की उम्र और किलोमीटर पूरे हो चुके हैं नीलाम हो जाना चाहिए था मगर उनको नीलाम नहीं किया गया है और मरोड़ के संचालन किया जा रहा है। इस बात को लेकर एमडी आर.के. मंडल से बात की गई तो उन्होंने बताया इसके लिए सिर्फ सरकार जिम्मेदार है। हमें कुछ नही पता।
फिक्स वेतन का लाभ सबको नहीं
इसी डिपो के अंदर कुछ चालक परिचालकों को 17000 फिक्स वेतन मिलता है और यह सभी के लिए एक समान नियम लागू होने चाहिए। मगर विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत के कारण सभी को फिक्स वेतन का लाभ नहीं मिल रहा है कुछ कोई नियम और कड़ी शर्तों के साथ दिया जाता है। अगर वह शर्ते नहीं पूरी कर पाते हैं बाहर आ जाते हैं तो वह भी कटौती हो जाती है। तो यह हर तरफ से शोषण अत्याचार उत्पीड़न ही किया जा रहा है। लोड फैक्टर का यहां कोई प्रावधान नहीं है मगर यहां लोड फैक्टर के लिए भी सारे कठोर नियम बनाए गए हैं और यहां गोमती नगर डिपो में एक रेगुलर यारम है और एक संविदा का यार हम रखे हुए हैं। पैसे की बर्बादी करने के लिए इनके पास काफी रास्ते हैं। जहां एक की जरूरत है वहां तक 10 कर्मचारी अवैध तरीके से लगा रखे हैं और हम लोगों को देने के लिए विभाग के पास और एमडी महोदय के पास कुछ नहीं है और अपने कर्मचारियों के ऊपर बर्बाद करने के लिए धन है और हम लोगों के लिए कुछ नहीं।