आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट
लखनऊ, उत्तर प्रदेश में स्मार्ट सिटी परियोजना पर अफसरों ने ग्रहण लगा दिया है। बरेली स्मार्ट सिटी परियोजना में अफसरों की मनमानी के खिलाफ भाजपा संगठन और महापौर तक खुल कर मैदान में उतर आए हैं। मुख्यमंत्री तक शिकायत पहुंचाई गयी है पर इन सबको दरकिनार बरेली नगर निगम प्रशासन ने अपनी चहेती कंपनी हनीवेल पर मुहर लगा दी है। हैरत की बात है कि उस हनीवेल कंपनी को स्मार्ट सिटी का काम दिया गया है जिसने परियोजना के लिए रिक्वेस्ट फार कोटेशन (आरएफक्यू) में मांगी गयी जरुरतों को भी पूरा नहीं किया गया है। समूची टेंडर प्रक्रिया को देखने के बाद पता चलता है कि आरएफक्यू में मांगी गयी सेवाओं व उत्पादों के मानकों पर हनीवेल न तो खरी उतरती थी और नहीं इसने इनका जिक्र ही किया। इन सब बातों को दरकिनार कर बरेली नगर निगम ने उस कंपनी के हाथों प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट स्मार्ट सिटी का काम सौंप दिया जिसने अपेक्षाकृत घटिया क्वालिटी के उत्पादों का उपयोग, आपूर्ति का दावा किया है।
हनीवेल को काम देने पर आमादा अफसरों की ढिठाई का आलम यह है कि देश की जानी मानी कंपनियां तक बरेली स्मार्ट सिटी परियोजना की टेंडर प्रक्रिया में भाग नहीं ले सकी हैं। अपनी पंसदीदा पर कई विवादों में घिरी कंपनी को काम देने पर उतारु अफसरों ने बरेली स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत 180 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले इंटीग्रेटेड कमांट कंट्रोल सेंटर के लिए न केवल टेंडर की शर्तें बदल दीं बल्कि तारीख भी कई बार आगे बढ़ाई और भुगतान की शर्तों तक में फेरबदल किया। इतना ही नहीं अपने पंसद की कंपनी को ही काम मिले इसके लिए इस परियोजना की डीपीआऱ में हेरफेर कर डाला और उसे अनुमोदन के लिए अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) को भेज दिया। एएमयू ने न केवल डीपीआर के अनुमोदन से इंकार किया बल्कि विरोध में एक कड़ा पत्र भी बरेली नगर निगम को भेज दिया।
हैरत की बात है कि एएमयू, खुद अपने निर्वाचित महापौर सहित भाजपा संगठन की तमाम शिकायतों को किनारे रख बरेली नगर निगम के अफसरों ने मनमर्जी के साथ टेंडर करा डाला। नगर निगम की कारस्तानी के चलते स्मार्ट सिटी के इस महत्वपूर्ण काम के टेंडर में देश की तमाम जानी मानी कंपनियां हिस्सा तक नहीं ले सकीं। टेंडर प्रक्रिया सर आम घटिया काम व उत्पाद के लिए जानी जाने वाली कंपनी को ही सबसे कम बोली लगाने वाला घोषित करते हुए उसे काम दे दिया गया। कुल मिला स्मार्ट सिटी परियोजना में अभी तक वही हुआ है जो बरेली नगर निगम के अफसरों की मर्जी थी। मुख्यमंत्री से लेकर सरकार के हर उचित महकमें तक शिकायत करने के बाद भी खुले आम बरेली नगर निगम के अफसरों ने वही किया जो उन्हें करना था।
गौरतलब है कि स्मार्ट सिटी के रुप में चयनित होने के बाद भी बरेली में इस परियोजना पर काम को शुरु होने में ढाई साल से भी ज्यादा लग गए हैं। इस बीच कई अन्य शहरों में काफी काम हो भी चुका है। अब बरेली नगर निगम को इस परियोजना के तहत इंटीग्रेटेड कमांड कंट्रोल सेंटर की स्थापना की सुध हुयी तो 180 करोड़ रुपये का टेंडर निकाला गया। जारी होने के साथ यह पूरी प्रक्रिया विवादों में घिर गयी है। धांधली की तमाम शिकायतों के बीच भाजपा संगठन व निर्वाचित महापौर ने बरेली में ही हर स्तर पर शिकायत की। अफसरों की मनमानी पर लगाम न लगते देख महापौर उमेश गौतम ने लखनऊ आकर मुख्यमंत्री से पूरे प्रकरण की दस्तावेजों के साथ शिकायत की। महापौर, भाजपा संगठन सहित ज्यादातर निर्वाचित जन प्रतिनिधियों ने प्रदेश सरकार से मांग कर टेंडर को नए सिरे से करवाने और पारदर्शी तरीके से काम करवाने को कहा है।
गौरतलब है कि कुछ समय पहले इसी तरह का मामला लखनऊ में भी सामने आया था जब धांधलियों को लेकर राजधानी के महापौर और नगर आयुक्त में ठनी थी। हालांकि तब मुख्यमंत्री कार्यालय ने समय रहते हस्तक्षेप कर नगर आयुक्त को हटा दिया था। बरेली में अब तक प्रदेश सरकार इन तमाम शिकायतों पर कोई कारवाई नहीं कर सका है।