आत्माराम त्रिपाठी
बिगत दिनों तिंदवारी थाना क्षेत्र में एक मामा द्वारा अपनी ही अबोध भांजी के साथ किया गया दुराचार की घटना ने मन को झकझोर के रख दिया ।मन ब्यथित है इस निंदनीय घटना ने मानवता मानवीय मूल्यों को इतना नीचे गिरा दिया कि आज हर रिश्ते से विस्वास उठ गया। पिता के सरीखे मामा पर विस्वास बालक करता है और सम्मान इतना करता है कि उसे दो बार मा कहकर पुकारता है तब कहीं जाकर मामा बनता है और इसी से मामा शब्द के महत्त्व का पता चलता है कि मा+मां=मामा शब्द कितना पवित्र रिश्ता होता है पर इस घटना ने इस पबित्र रिश्ते को तार तार कर दिया।कंस, शकुनी, माहिल मामाओं को तो पढ़ा उनके करेक्ट्रेर को भी समझने की कोशिश की कुछ समझा कुछ शेष है उन्होंने अपनी जिंदगी खतरे में देखा अपने सम्मान का हरण होते देख कुंठाग्रस्त हो भांजे का विनाश किया किन्तु वासना रूपी पिशाच के बशीभूत हो इस तरह के घ्रणित कार्य नहीं किए कि सभ्य समाज में मामा शब्द निंदनीय और अविश्वसनीय हो जाय। उसकी पबित्रता ही खतरे में पड़ जाए। लेकिन इस घटना ने तो मन को झकझोर दिया। कई प्रश्न मन में उठ रहे हैं कि आज कौन सा रिश्ता विश्वास के काबिल बचा ? किस पर भरोसा किया जाए? क्या आज का मानव सभ्य समाज कहलाने का हकदार हैं? क्या इसी को कहते है इक्किसिवी सदी ? हम आगे बढ़ रहें हैं तो हमे घ्रणा है ऐसे समाज में रहने वालो कामुक बहशी दरिंदों से जो मानव समाज के लिए कंलक है। जिनके कारण मानव जाति ही नहीं पशु भी शर्मशार है। क्योंकि पशु को भी उसका अभिवावक उसके इन रिश्तों की मर्यादा बनाए रखने का प्रयास करता है पर स्वयं पशु से भी गया गुजरा हो कामुक दरिंदा बन उन रिश्तों को तार तार कर देता है जिसमें बालक माता पिता के बाद सबसे ज्यादा भरोसा करता है।वह कामुकता के अंधकार में डूबकर इस शब्द की गरिमा को डुबो देता है। आखिर मानव समाज कंहा किस ओर किस दिशा में जा रहा है क्या ऐसे लोग मानव कहलाने के योग्य है ? ऐसे लोग कौन से सजा के हकदार हैं और यह किसके दोषी है जो सामने दिखाई दे रहा है उस घटना के या उसके लिए जो दिखाई नहीं दे रहा जिसमें पूरा मानव समाज उसकी मान्यताओं विश्वास के साथ घटा है। खैर हम अब आगे ज्यादा कुछ न लिखते हुए मामा शब्द के साथ दुराचार करने वाली इस घटना की निंदा करते है।