सरवन कुमार सिंह की रिपोर्ट
लखनऊ: यूनेस्को की धरोहर के तौर विश्व विख्यात उत्तर प्रदेश में इटावा जिले के जसवंतनगर की रामलीला कोरोना रूपी रावण का वध करने के साथ ही मात्र एक दिन मे खत्म हो गई । यूनेस्को द्वारा धरोहर के तौर पर सम्मानित रामलीला वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण एक दिन में निपटायी गयी। कुल मिलाकर 165 वर्ष का इतिहास समेटने वाली यह रामलीला 1857 और 1858 में विश्वयुद्ध के चलते नही हुई थी।
बता करीब 15 दिन तक हर साल होने वाला रामलीला महोत्सव रविवार को केवल एक दिन यानि कुछ घंटे में ही सम्पन्न कर दिया गया। जसवंतनगर में वर्ष 1860 से हर साल रामलीला का आयोजन होता रहा है लेकिन इस वर्ष कोरोना काल के चलते नही हुआ,इस रामलीला की खासियत यह भी है कि 2005 में पूरे विश्व में हो रही 482 रामलीलाओं में इसे सर्वश्रेष्ठ घोषित किया गया था। ये रामलीला इसलिए भी भिन्न है क्योकि ये घुमंतू के साथ साथ मुखौटो वाली रामलीला है ।
इस रामलीला को यूनेस्को ने सबसे पहले इंडोनेशिया, फिजी ,श्रीलंका की रामलीलाओं को देखने के बाद मारीशस से आई इंद्राणी राम प्रसाद ने भारत में हो रही रामलीलाओं पर शोध किया और पाया कि इटावा के जसवंतनगर कस्बे की 162 वर्ष पुरानी रामलीला अपने आप मे अनूठी रामलीला है और तब इसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर मानते हुए विश्व की पहली रामलीला माना तब से अब तक जसवंतनगर की रामलीला अपने पहले स्थान पर काबिज रही है।
इस रामलीला की खास बात ये है कि अंतिम दिन राम रावण का युद्ध कस्बे की सड़कों पर होता है और उसके देखने हजारों की तादाद में आज भी लोग आते है, जसवन्तनगर की इस विश्वप्रसिद्ध रामलीला का कोविड के चलते न होने से यहॉ के लोगों में मायूसी है। जसवंतनगर मे दक्षिण भारतीय शैली के अनुसार रामलीला का आयोजन होता है एवं रावण के पुतले का भी दहन करने की बजाय लोग उसके पुतले को छिन्न-भिन्न कर उसकी अस्थियों को अपने साथ ले जाते हैं एवं वर्ष भर संजोकर रखते हैं। चूंकि रावण परम ज्ञानी व अनेकों ग्रंथो का ज्ञाता था इसलिए मान्यता है कि जिस घर मे उसकी अस्थियां रहती है वहां कभी अनिष्ट नहीं होता। हालांकि कई लोग इसे अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिये भी सहायक मानते हैं।