आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट
लखनऊ। आधुनिक युग में जंगल और प्रकृति से लोगों का नाता टूटता जा रहा है। इसके बावजूद पशु प्रेम का कई उदाहरण देखने को मिल जाता है। वहीं मोगली की कहानी किसी से छिपी नहीं है। ऐसे ही हम बरेली के मोगली धीरज से आपको मिलाते हैं।
बरेली के मोगली धीरज के कार्यों को देखकर वन विभाग के अधिकारी चकित रह जाते हैं। पता नहीं ऐसा क्या है बरेली के मोगली में जिसे देखते ही खूंखार जानवर भी उसके सामने प्रेम से रहते हैं। सिर पर हाथ रखते ही जानवर उसे अपना समझने लगते हैं। आइए जानते हैं बरेली के मोगली पशु प्रेमी धीरज पाठक की कहानी। धीरज को देखकर लोग अब बरेली का मोगली ही कहते हैं। रामगंगा के पास वह कुछ पल बंदरों के साथ बिताते है। वैसे तो वह पशु सेल्टर होम में ही रहते हैं, जहां 200 से अधिक कुत्ता, बिल्ली, चील, कौआ, नील गाय, घोड़ा, कबूतर, तोड़ा, गायें, बैल रहते हैं। धीरज इन जानवरों के साथ 24 घंटे रहते हैं।
बता दें कि सुभाषनगर के रहने वाले धीरज पाठक ने बीएससी की पढ़ाई शुरू की। अपना रेस्टोरेंट भी घर के पास खोला। अचानक एक जख्मी कुत्ते ने उनके अंदर पशु प्रेम की भावना जागृत कर दी। कुत्ता रोज ही उनके पास आकर बैठता था। जिसका वह धीरे-धीरे इलाज करते रहे फिर उन्होंने अपना रेस्टोरेंट भी बंद कर दिया। और बेजुबानों के लिए रेस्क्यू करने लगे। एक फोन करने पर ही धीरज मौके पर पहुंच जाते थे। मोहल्ले में ही एक ठेकेदार के सहयोग से छोटा सा जानवरों का अस्पताल बना लिया। बाद में मेनका गांधी ने उनकी भावनाओं को समझा और पशु-पक्षी अस्पताल ही खोल दिया।