आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट
लखनऊ। आज चारों तरफ से पत्रकारों पर वार हो रहें हैं फिर चाहे वह भूमाफियाओं की तरफ से हो या खनन माफियाओं की तरफ से या राजनितिज्ञों की ओर से या शासन-प्रशासन की ओर से, पर इन लोगों के द्वारा किए गए वारों से उतनी पीड़ा नहीं होती क्योंकि उनका कार्य है कि जो उनके काले कारनामों को उजागर करेगा उसे पहले यह खरीदने की कोशिश करेंगे फिर दबाने की । जब इतने में भी नहीं माना तो कुचलने की कोशिश होगी।
एक पत्रकार जब दूसरे पत्रकार का उत्पीडन सिर्फ इसलिए करता है और करवाता है कि उसको कोई नहीं पूछ रहा उसकी दुकान बंद हो रही है ।
ऐसा ही नजारा देखने को मिला राजधानी में जंहा ठाकुर गंज थाना पुलिस क्षेत्र में कुछ तथाकथित पत्रकार एकत्रित हो “नया भारत दर्पण समाचार” के यूपी टीम हेड शशांक तिवारी, पोर्टल के क्राइम ब्यूरो चीफ एवम टीम हेड सरवन कुमार सिंह और लखनऊ कार्यालय संवाददाता लवलेश कुमार से असंसदीय भाषा का प्रयोग कर जबरिया थाने ले गए।दोनों तरफ से चौकी में लिखित तहरीर दी गई। पुलिस जांच कर रही है ।
इस घटनाक्रम से मनकों पीड़ा पहुंची और हम यह सोचने के व कहने को विवश हुए कि आज पत्रकारिता किस ओर जा रही है ? इसका भविष्य क्या होगा? इसके लिए जिम्मेदार कौन हैं ? ऊपर से पत्रकारिता को गुंडे की भी संज्ञा दी जा रही है। ऐसे धन उगाही करने वाले पत्रकार कह रहे हैं- हम किसी से नही डरते हम पत्रकार कम गुंडे ज्यादा है।
जब दूसरा पत्रकार ऐसे शब्द बोलने से मना करें तो उसको जान से मारने की धमकी दी जाती है, वो भी पुलिस के आला अधिकारियों के सामने बोलने से नही कतराते और कहते हैं न हम पुलिस से डरते नही हैं किसी से और ज्यादा बोलोगे तो फंसा देंगे। बस मौका देखते ही जब पत्रकार कार को साइड लगाने को लिया जाता है तो वो ही गुंडे बोलने वाले पत्रकार उनका वीडियो बना के कि गाड़ी मेरे ऊपर चढ़ाने की कोशिश करने को बोल देते हैं। क्या सच बोलने वालों को ऐसे ही फंसाया जाता रहेगा।
अब ध्यान देने योग्य ये बात है कि पत्रकार शब्द को इस तरह सरेआम बदनाम कर रहें हैं। मैं उन चैनलों के मालिकों से अपील करना चाहूंगा कि ऐसे पत्रकारों को चैनल में न रख कर चैनल की गरिमा को बनाएं रखा जाए और उन पर तुरंत कार्यवाई की जाए। और पत्रकार शब्द को बदनाम करने वालों का भंडा फोड़ किया जाए।