आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट
लखनऊ । आज जिस प्रकार से उत्तर प्रदेश के डिप्टी सी.एम केशव प्रसाद मौर्य द्वारा पत्रकारों के प्रति दिया गया बयान ” पत्रकारिता छोड़ो , नेतागिरी करो ” उपरोक्त बयान पत्रकारों के प्रति गैर जिम्मेदाराना होने के साथ-साथ दुर्भाग्यपूर्ण वा निन्दनीय है ! पत्रकार कोई सड़क पर पड़ा हुआ पत्थर नही जब जिसने चाहा ठोकर मारा और चलता बना, इस लोकतांत्रिक देश में पत्रकार को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा गया है ! 1990 के बाद से जिस भारतीय जनता पार्टी को सर्वोच्च पटेल पर लाने के लिए देश के कलमकारों ने ऊबड़ – खाबड़ पगडंडियों पर उंगली पकड़कर चलना सिखाया आज उसी सरकार में पत्रकारों पर हो रहे हमले , हत्या सहित कदम-कदम पर अपमानित भी होना पड़ता है ! उन्हें कितने दंश झेलने पड़ रहे है ! इसका दर्द सिर्फ एक पत्रकार ही जान सकता है ! अपनी कलम की ताकत से जन-जन तक सरकार की योजनाओं और विकास कार्यो की सराहना करने वाले खबर नवीसों के प्रति सरकार का यह रवैया पत्रकारों की गरिमा और स्वतंत्रता को अस्ताचल की ओर ले जा रहा है। कहने को तो हम लोकतंत्र के चौथे स्तंभ है ! लेकिन सरकार पत्रकारों को अपने हाथों की कठपुतली बनाना चाहती है ! पत्रकार कोई खिलौना या धूल-मिट्टी नही ! पत्रकार वो स्तंभ है , जिसके इरादों को डगमगाना हर किसी के बस की बात नही ! पत्रकारिता वो तपोस्थली है जहाँ एक पत्रकार तप करके तपस्वी की भूमिका में आकर अपने घर-परिवार का त्याग कर देश-समाज के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए हर वक़्त तैयार रहता है ! आज पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर सरकार को ठोस कानून लाने की ज़रूरत है ! ताकि सभी पत्रकार अपने कर्तव्यों के प्रति सजग होकर अपने दायित्वों का निर्वाहन कर सके !