शशांक तिवारी की रिपोर्ट
लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज की मजलिस में शामिल होने के आरोप में जेल में बंद छह विदेशी जमातियों की जमानत याचिका सशर्त मंजूर कर ली है। ये बिना सम्बंधित कोर्ट की इजाजत के देश नही छोड़ सकेगें। इन सभी जमातियों को 11-11 हजार रुपए मुख्यमंत्री कोविड-19 रिलीफ फंड में जमा करते का भी आदेश दिया गया है। यह आदेश जस्टिस जसप्रीत सिंह की बेंच ने किर्गिस्तान निवासी सैगिनबेक टोकतोबालोनोव, सुल्तानबेक तुसुनबैउलू, रुस्लान टोक्सोबैव, जमीरबेक मर्लिव, ऐदीन तालड़ू कुरगन व दाऊअरेनतालडु कुरगन की ओर से दाखिल जमानत की ओर से दाखिल जमानत याचिका को मंजूर करते हुए पारित किया है।
ये दी गई थी दलालें
याची की ओर से बहस करते हुए वकील प्रांशु अग्रवाल ने दलील दी कि याचियों को कैसरबाग थाना अंतर्गत डॉ .बी .एन वर्मा रोड पर स्थित मरकज मस्जिद से हिरासत में लिया गया था। जिसके बाद इन सभी को 14 दिन के क्वारटाईन में लोकबंधु अस्पताल में भर्ती करा दिया गया। याचियों का तीन-तीन बार कोविड-19 टेस्ट हुआ व सभी टेस्ट में याचीगण नेगेटिव पाए गए, यह भी कहा गया कि याचियों ने अपने प्रत्येक मूवमेंट की जानकारी फॉरेनर रिजनल रजिस्ट्रेशन ऑफिस, लखनऊ को दे दी थी। यहीं नही ऑफिस के आईबी अधिकारी को भी सभी जानकारीयां उपलब्ध करा दी गई थीं। याचियों ने न तो वीजा नियमों का उलंघन किया और न ही गलत या फर्जी पासपोर्ट से भारत मे दाखिल हुए याचियों की ओर से यह भी कहा गया कि 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के बाद राष्ट्रीय लॉकडाउन लागू कर दिया गया , जिससे याचियों के लखनऊ के बाहर कहीं जाने का प्रश्न ही नही उठता
सरकारी वकील ने किया जमकर विरोध
वहीं राज्य सरकार के वकील ने याचिका का विरोध करते हुए दलील दी कि याची भारत में पर्यटक वीजा प्राप्त करके दाखिल हुए , लेकिन उन्होंने धार्मिक कार्यक्रमों में हिस्सा लिया । उन्होंने खुद से पहल करते हुए , स्थानीय पुलिस स्टेशन में सम्पर्क कर इसकी जानकारी भी नहीं दी। सभी तथ्यों व परिस्थितियों पर गौर आदेश में कहा कि याचियों पर लगी धाराओं में अधिकतम पांच साल का कारावास है। उसने कहा कि हमारा संविधान दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार न सिर्फ भारत के नागरिक को बल्कि विदेशियों को भी देता है। इस आधार पर जमानत याचिका को खारिज नही किया जा सकता कि याचीगण विदेशी नागरिक।