देवेश कटियार की रिपोर्ट
कन्नौज-इत्र और इतिहास की नगरी कन्नौज का चीन से पुराना रिश्ता रहा है। यहां के राजा हर्षवर्धन के काल में चीनी यात्री ह्नेनसांग भारत आया था और कई माह तक कन्नौज में रुका था। उसने यहां के इत्र निर्माण की प्रशंसा की थी। चीन से जब व्यापारिक संबंध हुए तो इत्र के लिए छोटी शीशियों का आयात वहां से होने लगा। कारोबारियों के मुताबिक अब तक 70 फीसद डिजाइनर और फैंसी शीशियां चीन से ही आती थीं। लॉकडाउन में आयात बंद हो गया। अनलॉक के बाद सीमा पर तनाव होने से कारोबारियों ने नए ऑर्डर भी नहीं दिए। नगर के प्रतिष्ठित इत्र कारोबारी एवं सभासद मुस्ते हसन कहते हैं कि अब घरेलू उत्पाद को ही बढ़ावा देंगे और कन्नौज और मुंबई में स्थित फैक्ट्रियों में शीशी बनाएंगे। इत्र कारोबारी सोनू पांडे कहते हैं कि चीन के उत्पादों के बहिष्कार कर घरेलू उत्पाद पर निर्भर होना होगा। जेरिकन और वेलवेट की बोतलें देंगी मात।
इत्र कारोबारी मुस्ते हसन के मुताबिक कन्नौज में बन रहीं जेरिकन और वेलवेट चीनी शीशियों को मात दे सकती हैं। यह हैंडमेड हैं और इन्हें दोबारा भी प्रयोग किया जा सकता है, जबकि चीन से आने वाली शीशी सिर्फ एक बार ही प्रयोग हो सकती हैं। चीन की शीशी की डिजाइन अच्छी होती है। इस वजह से आयात करते थे। वर्तमान हालात को देखते हुए निर्णय लिया है कि अब किसी कीमत पर चीन से माल नहीं खरीदेंगे, बल्कि मुंबई स्थित अपनी फैक्ट्री में बनाएंगे।
-सागर दीक्षित, इत्र कारोबारी इतिहास साक्षी है कि चीन ने हमेशा भारत को दगा दिया है। सभी इत्र कारोबारी अपनी यूनिट लगाकर शीशी और अन्य वस्तुओं का स्वयं उत्पादन करें। इससे हमारे देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी।