प्रधान संपादक की रिपोर्ट
लखनऊ-बिजली विभाग के लिए ई रिक्शा नासूर बन गए हैं, कहीं चोरी की बिजली से तो कहीं घरेलू बिजली से इन्हें चार्ज किया जा रहा है। व्यावसायिक प्रयोग में लाए जाने वाले ई रिक्शों को नियमानुसार वाणिज्यिक बिजली से चार्ज होना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। राजधानी में बिजली विभाग के 25 खंड में एक भी खंड ऐसा नहीं है जहां कोई वाणिज्यिक कनेक्शन लेकर ई रिक्शा चार्ज करता हो। क्योंकि अभी तक ई रिक्शा चार्ज करने के लिए चार्जिंग स्टेशन कहीं खुला ही नहीं है।
बिजली विभाग के पास भी इसका कोई आंकड़ा नहीं है। ऐसे में सवाल खड़ा होता है आखिर 35 हजार ई रिक्शा क्या घरेलू बिजली या फिर चोरी की बिजली से चार्ज हो रहे हैं। अगर ऐसा है तो बिजली विभाग को हर दिन लाखों रुपये की राजस्व चपत लग रही है। वहीं दर्जनों अभियंता हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं।
अप्रैल और मई माह के अधिकांश दिन निकल गए, लेकिन किसी भी खंड में एक भी अभियंताओं ने चोरी की बिजली से ई रिक्शा चार्ज होते हुए नहीं पकड़ा। सिर्फ 24 मई को ऐशबाग के मेहंदीगंज में जरूर चोरी की बिजली से एक ई रिक्शा चार्ज होते हुए पकड़ा गया था। सवाल खड़ा होता है कि राजधानी के 35 हजार ई रिक्शा को चार्ज कराने के लिए स्थानीय स्तर पर बिजली कर्मियों की भूमिका क्या संदिग्ध है? क्योंकि वाणिज्यिक बिजली के रेट घरेलू बिजली से काफी ज्यादा है। एक रिक्शा को सात से आठ घंटे चार्ज करने पर तीन से चार यूनिट बिजली की खपत होती है और अगर 35 हजार ई रिक्शा चार्ज किए तो एक रात में डेढ़ लाख यूनिट के आसपास बिजली खर्च हो जाएगी।
वाणिज्यिक बिजली प्रति यूनिट सात रुपये के आसपास है। इस तरह एक रात में साढ़े दस लाख रुपये की बिजली चोरी प्रतिदिन हो रही है और एक माह में यह ग्राफ तीन करोड़ से अधिक का है। बिजली विभाग के काबिल अभियंता मार्निंग मास रेड और देर रात चेकिंग चला रहे हैं लेकिन कार्रवाई में आज तक ई रिक्शा की कोई बड़ी चोरी नहीं पकड़ी गई। यही नहीं विद्या परिवर्तन यानी घरेलू से वाणिज्यिक बिजली का उपयोग भी जांच में कहीं नहीं पाया गया।