गौरव शुक्ला की रिपोर्ट
फर्रुखाबाद। प्रदेश सरकार के पूर्व बेसिक शिक्षामंत्री एवं हिंदी साहित्य भारती के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष रविंद्र शुक्ल ने कहा, साहित्य ही समाज को संस्कृति प्रदान करता है। यहां आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने दो रचनाओं का लोकार्पण भी किया।
राष्ट्रीय कवि संगम संस्था की ओर से श्यामनगर स्थित एक स्कूल में हुए समर्पण कार्यक्रम में पूर्व राज्यमंत्री रविंद्र शुक्ल ने संस्था अध्यक्ष भारती मिश्रा के उपन्यास ‘मॉई’ और ब्रह्मलीन प्रमोद कुमारी त्रिपाठी पत्नी राजेंद्र कुमार त्रिपाठी (अधिवक्ता) की पुस्तक ‘अतृप्ति के स्वर’ का लोकार्पण किया। पूर्व राज्यमंत्री ने इस अवसर पर विचार व्यक्त किए।
जीआईसी के पूर्व प्रधानाचार्य श्रीनिवास मिश्र ने अतृप्ति के स्वर पुस्तक की समीक्षा पढ़ी। बोले, जिंदगी के उतार चढ़ाव सभी को मालूम होते हैं, किंतु इन गहराइयों का सत्य जीवन के कटु अनुभवों से ही ज्ञात होता है। अतृप्ति के स्वर इन्हीं कटु अनुभवों का दस्तावेज है। भारती मिश्रा ने भी पुस्तक की तमाम बारीकी पढ़ीं। उपन्यास मॉई की समीक्षा रामबाबू मिश्र उर्फ रत्नेश ने की। कहा, मामी मात्र एक संबोधन है, जबकि मॉई एक संबंध है। अभिव्यंजना समन्वयक भूपेंद्र प्रताप सिंह ने भी विचार व्यक्त किए।
पूर्व एडीएम प्रदीप दुबे ने प्रमोद कुमारी त्रिपाठी के व्यक्तित्व और कृतित्व को याद किया। विशाल राज सिंह, आदेश गंगवार, मनोरमा कनौजिया को सम्मानित किया गया। ज्योति स्वरूप अग्निहोत्री ने दोनों पुस्तकों को धरोहर करार दिया। इस मौके पर कीर्ति त्रिपाठी, पूनम त्रिपाठी, वैष्णवी, शरद चंदेल, आलोक बिहारी शुक्ला, नीलम, वैभव, महेश पाल सिंह उपकारी, उपकार मणि उपकार आदि तमाम लोग थे। संचालन भूपेंद्र प्रताप सिंह और आभार राजेंद्र कुमार त्रिपाठी ने व्यक्त किया।
हमला स्वीकार वंदेमातरम बरकरार: रविंद्र
रविंद्र शुक्ल ने प्रेसवार्ता में कहा, जिस वंदेमातरम को गाकर हजारों देशभक्तों ने फांसी का फंदा चूमा, उसे हम कैसे छोड़ सकते हैं। बोले, मंत्रिमंडल में हमला स्वीकार किया, मगर वंदेमातरम का आदेश वापस नहीं लिया। हर किसी को वंदेमातरम गीत गाना चाहिए। एक सवाल पर कहा, भारत ने विश्व को सबसे अधिक संस्कारित साहित्य दिया है। मगर दुख है कि यहां के लोग विदेशी साहित्य पढ़ रहे हैं।