रिपोर्ट-संजय सिंह राणा
चित्रकूट- सरकार परिवहन व्यवस्था को सुचारू रूप से संचालित करने के लिये कम्प्यूटरीकृत व्यवस्था से परिवहन कार्यालयों को लैस कर सभी काम आॅनलाइन कर दिया। पारदर्शिता बनाये रखने के केन्द्र व प्रदेश सरकार के सभी नियमों को ठेंगा दिखाते हुये जनपद का एआरटीओ कार्यालय लूट का अड्डा बना हुआ है। सबसे खास बात तो यह है कि आॅनलाइन व्यवस्था को ठेंगा दिखाते हुये जिला मुख्यालय पर संचालित ड्राइविंग स्कूल अधिकारियों की आंखों में धूल झोंक कर जनता को खुलेआम लूट रहे हैं। हल्का वाहन लाईसेंसधारी चालकों को भारी वाहन चलाने का लाइसेंस हासिल करने के लिये उन्हें इन स्कूलों के प्रमाण पत्र की जरूरत होती है, जिसके नाम पर ऐसे लोगों को स्कूलों के संचालक लूट रहे हैं।
उपभोक्ताओं से लूट का यह मामला चर्चा का विषय बना हुआ है। परिवहन दलालों द्वारा जब विभागीय अधिकारी के सामने विद्यालय संचालकों की बात को रखा जाता है तो अधिकारी स्कूल संचालकों को तलब कर कड़ी कार्यवाही की बात करते हैं।
सूत्रों के अनुसार पता चला हैं कि हैवी वाहन का लाईसेंस सहायक संभागीय परिवहन कार्यालय से जारी कराने के लिये लोगों को इन ड्राइविंग स्कूलों से प्रमाण पत्र हासिल करना पडता है। बीते कुछ दिनों से सरकार ने सेम लेटर मशीन टेस्ट की रिपोर्ट लगायी जाने की अनिवार्यता का आदेश जारी किया।
बावजूद इसके विभाग सेम लेटर को ताक पर रखकर हैवी वाहन चलाने का इन स्कूलो के प्रमाण पत्र को जारी कर रहा है।
आवेदक जब संचालक के पास प्रमाण पत्र हासिल करने के लिये जाते हैं तो उनसे यह कह कर 3 से 5 हजार रुपये की वसूली की जाती है कि संबंधित अधिकारी को तीन हजार की रकम देना पडता है। ‘मरता क्या न करता’ की कहावत को चरितार्थ करते हुये लोग स्कूल संचालकों को मुंहमांगी रकम चुकता करते हैं। लाइसेंस धारको को मोटी रकम देकर लाइसेंस प्राप्त हो रहा है l
अब तक कैसे जारी हुये लाइसेंस
एआरटीओ कार्यालय के दलालों और स्कूल संचालकों द्वारा जनता से होने वाली अवैध वसूली का जिम्मेदार कौन? यह सवाल जनता की चर्चा का विषय बन रहा है। लोगों का कहना है कि जब सरकारी आदेश के अनुपालन का पत्र जारी किया था तो फिर सेम लेटर मशीन की टेस्ट रिपोर्ट के बगैर हल्का वाहन और भारी वाहन चलाने का चालक लाईसेंस किस आधार पर विभाग जारी करता रहा। जनता से लाईट एवं हैवी वाहनो के लाईसेंस के नाम पर विभाग के संरक्षण में खुली लूट का धंधा जारी है। देखना यह है कि अब मामले पर विभाग कौन सा रूख अख्तियार करता है।