रिपोर्ट-संजय सिंह राणा
चित्रकूट- बेरोजगारों काे स्वयं का रोजगार शुरू करने के लिए जिला उद्योग केंद्र में विभिन्न योजनाओं के तहत ऋण उपलब्ध करवाया जा रहा है। इन योजनाओं के तहत विभाग से ऋण स्वीकृत भी हो जाता है, लेकिन फाइल के बैंक में जाते ही अधिकारियों द्वारा अनुमानित ऋण के अनुसार ऋण नहीं मिल पाता।
राज्य सरकार की ओर से बेरोजगारों को रोजगार सृजन योजना के तहत अधिकतम लाखों का ऋण दिया जा रहा है। वहीं केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री रोजगार सृजन योजना के तहत अधिकतम 25 लाख का ऋण देने का प्रावधान है। साथ ही बेरोजगारों लिए स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम भी चला रही है। इसके तहत बेरोजगारों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। प्रशिक्षण के बाद उनको स्वयं का रोजगार प्रारंभ करने के लिए लोन भी उपलब्ध करवा रही है। लेकिन धरातल पर बेरोजगारों काे जरूरत के मुताबिक लोन नहीं मिल पा रहा है। बेरोजगार अपना स्वयं का व्यवसाय खोलने के लिए अनुमानित राशि की फाइल जिला उद्योग केंद्र में लगाता है जिसे विभाग द्वारा सहमति देते हुए बैक में भेज दिया जाता है। बैंक में आवेदक की अनुमानित राशि पर कैंची चला दी जाती है। जिससे अनुमानित राशि नहीं मिल पाती है।
पूरा पैसा नहीं मिलने से शुरू नहीं हो पाता व्यवसाय
बेरोजगारआवेदक स्वयं के व्यवसाय के अनुसार बजट तैयार करते है। जब उन्हें बजट के अनुसार उनको ऋण नहीं मिल पाता है तो बेरोजगार अपना स्वयं का रोजगार शुरू नहीं कर पाते है।
बैंकों में लोन के लिए दर दर भटकते व्यापारी, रसूखदार को दिए जाते मनमाने तरीके से लोन
रोजगारके लिए आवेदन करने वाले बेरोजगारों की फाइल बैक में जाने पर उनकी अनुमानित राशि कभी कम कर दी जाती है तो कभी निरस्त कर दी जाती है। ऐसी दशा में कई आवेदक सिफारिश लगाने पर भी मजबूर हो जाते है। फिर भी ऋण मिलने की उम्मीद कम ही रहती है। व्यापारियों को जहां लोन के लिए दर-दर भटकना पड़ता है वहीं दूसरी ओर रसूखदार लोगों को मनमाने ढंग से लोन दे दिया जाता है जो लोन लेने के बाद भी व्यवसाय नहीं शुरू करते हैं व सरकारी पैसे को डकार जाते हैं उपायुक्त व बैंक कर्मियों की शह पर किस तरह लोन उठाया जाता है इसका जीता जागता एक उदाहरण है जहां पर प्रिंटिंग प्रेस के नाम से लिए गए लगभग 10 लाख रुपए के लोन लेने के बावजूद भी व्यवसाय नहीं शुरू किया गया व सब्सिडी का पैसा भी निकाल लिया गया l
सोचने वाली बात यह है कि सरकार द्वारा जहां गरीबों को रोजगार देने के लिए लोन दिया जाता है वहीं दूसरी ओर रसूखदार लोग सरकारी पैसे लेने के बावजूद भी व्यवसाय नहीं शुरू करवाते हैं वही उपायुक्त द्वारा ना तो व्यवसाय का निरीक्षण किया जाता है और ना ही बैंक कर्मियों द्वारा कोई निरीक्षण किया जाता है सिर्फ कागजों में ही कोरम पूरा कर सरकारी पैसे का बंदरबांट करवाया जाता है l
सूत्रों के अनुसार पता चला है कि प्रिंटिंग प्रेस के नाम पर एक रसूखदार व्यक्ति द्वारा लगभग 10 लाख रुपये का लोन लिया गया था जिसमें प्रिंटिंग प्रेस नहीं लगवाई गई वही सब्सिडी का पैसा भी हजम कर लिया गया ज्ञात तो यह भी हुआ है कि जिला उद्योग केंद्र के उपायुक्त द्वारा मनमाने तरीके से कमीशन खोरी की गई है वहीं इलाहाबाद बैंक(इंडियन बैंक) शाखा कर्वी के बैंक मैनेजर द्वारा मनमाने तरीके से की कमीशन खोरी की गई है व एलडीएम तक को मोटी रकम देकर मामले को दबाने का काम किया गया है l
सोचने वाली बात यह है कि जहां सरकार रोजगार देने के लिए धन मुहैया करा रही है वहीं दूसरी ओर जिम्मेदार अधिकारियों व बैंक कर्मियों की मिलीभगत से सरकारी पैसे का किस तरह बंदरबांट किया जा रहा है यह किसी से छिपा नहीं है l
क्या जिला प्रशासन जिला उद्योग केंद्र के उपायुक्त व इलाहाबाद बैंक के मैनेजर व एलडीएम के ऊपर जांच करवाते हुए कार्यवाही करवाने का काम करेगा l यह एक बड़ा सवाल है l