रिपोर्ट-संजय सिंह राणा
चित्रकूट- महिला अधिकारों के लिए रुढिवादी परम्पराओं के विरुद्ध खड़े होकर नारी पुरुष समानता का आंदोलन चलाने वाली आधुनिक भारत की प्रथम महिला शिक्षिका राष्ट्रमाता सावित्री बाई फ़ुले जी के जन्मदिवस (जयंती) के शुभ अवसर पर ग्राम सभा बरवारा कर्वी चित्रकूट में नारी चेतना विचार संगोष्ठी कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें महिलाओं को अपने हक अधिकार और शिक्षा के प्रति अग्रसर किया गया और बालिकाओं को पढने लिखने के लिए प्रेरित किया जिसमें नशा मुक्त गांव बनाने के लिए महिलाओं से आग्रह किया गया कि गांव से अपृवत्ती से चलाए जा रहे अवैध जानलेवा कच्ची शराब, जुआ जैसी विभिन्न परेशानियों को दूर करने के लिए महिलाओं से सहयोग मांगा गया ।
भारत की प्रथम महिला शिक्षका क्रान्ति ज्योति माता सावित्री बाई फुले जी के जन्म 03 जनवरी 1831 को हुआ था l
माता सावित्री बाई फुले भारत की प्रथम महिला प्राचार्या , समाज सुधारिका एवं मराठी कवियत्री थीं lउन्होंने अपने पति ज्योतिराव गोविंदराव फुले के साथ मिलकर स्त्री अधिकारों एवं शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए।
तथागत महामानव गौतम बुद्ध के धम्म मार्ग को आगे बढ़ाने के लिए जी जान की बाजी लगा दी। वे प्रथम महिला शिक्षिका थीं। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य का अग्रदूत माना जाता है। 1852 में उन्होंने बालिकाओं के लिए अनेकों विद्यालयो की स्थापना की।
उस समय कितनी मुसीबतों का सामना करते हुए धर्म के ठेकेदारों व अपने ही परिवार के लोगों ने समाज से बाहर कर दिया परंतु शिक्षा का प्रचार प्रसार का मार्ग नहीं छोड़ा। इसीलिए बाबा साहब के प्रथम गुरु सावित्रीबाई फुले दंपत्ति, पेरियार रामास्वामी नायकर को आदर्श मानते हुए तथागत बुद्ध की शरण में गए।
उनके द्वारा खोले गए कन्या व लडको के विद्यालयों की संख्या निम्न प्रकार है। यह विद्यालय भिड़ेवाड़ा जिला पूना, हरिजनवाड़ा जिला पूना, हडपसर, जिला पूना,ओतूर जिला पूना,सावड़ जिला पूना,ऑल हॉट का घर जिला पूना,नाय गाव तालुका खंडाला जिला सतारा, शिरवल तालुका खंडाला जिला सतारा, तालेगांव धमधेरे जिला पुना,शिरवर जिला पूना,आजीर वाडी माजगांव सातारा, करंजे कस्वा जिला सातारा,भिगार सातारा,मुंडले जिला पूना, अप्पा साहब चिपलुणकर हवेली पूना, नाना पेठ पूना,रास्ता पेठ पूना व बेताल पेठ पूना में खोले गए थे lयह स्कूल 01जनवरी 1848 से लेकर1853 के मध्य खोले गए थे l
फुले दंपत्ति ने एक विधवा माता का बच्चा गोद लिया उसका नाम यशवंत रखा।उसको पढ़ा लिखा कर डॉक्टर बनाया और उस डॉ पुत्र की उस समय अंतर्जातीय शादी थी।
1897 ईस्वी में महाराष्ट्र में ताउन्न (प्लेग) की बीमारी फैली लोग गांव छोड़कर जंगलों में चले गए मरीजों को उठाकर सावित्रीबाई लाती और अपने पुत्र यशवंत के अस्पताल में उनका इलाज करवाती।एक अछूत बालक प्लेग के रोग से तड़प रहा था। सावित्री बाई फूले उस बालक को उठा कर कंधे पर आ रही थी।वो भी प्लेग की शिकार हो गई और उनकी मृत्यु10 मार्च 1897 में हो गई।
इस प्रकार नारी समाज को धर्म की गंदगी से उठाकर नया जीवन देने वाली महान नारी का अंत हुआ आज घर-घर में लड़कियां पढ़ी लिखी मिलती है यह फुले दंपत्ति की ही देन है।
प्रभास महासंघ के तत्वावधान में माता सावित्रीबाई फुले के जन्म दिवस के मौके पर गरीब शोषित सर्व समाज के बच्चों के बीच जाकर संगठन ने शिक्षा व महिलाओं के अधिकारों के प्रचार प्रसार को आगे बढ़ाकर सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित किया l