- सरकारी नियमों को ताक पर रखकर की जा रही रजिस्ट्री
- सरकारी राजस्व व किसानों को पहुंचाई जा रही क्षति
रिपोर्ट-संजय सिंह राणा
चित्रकूट-रामनगर नगर विकास खण्ड के अंतर्गत आने वाले ग्राम पंचायत छीबों में एक निजी कंपनी के नुमाइंदों द्वारा सरकारी नियमों का खुला उल्लंघन करते हुए मनमाने तरीके से गरीबों की जमीनों को औने पौने दामो में खरीदकर सरकारी राजस्व व गरीबों को नुकसान पहुंचाने का काम किया जा रहा है l इन दबंग जमीन खरीददारों की हनक इस प्रकार है कि गरीबों को गुमराह करके उनकी जमीन हथियायी जा रही है l
दबंगई की हद तो तब हो गई जब रविवार को छुट्टी के दिन उप निबंधक कार्यालय मऊ में बड़ी मात्रा में रजिस्ट्री कराई गई व जमीन खरीददारों की हनक इस प्रकार चली कि गरीब किसानों के पास लामबन्द होकर गए क्रेताओं ने किसानों को जमीन बेचने पर मजबूर कर दिया l
सबसे बड़ी सोंचने वाली बात यह है कि ग़रीब अनुसूचित जाति के लोगों की पट्टे की जमीन को मनमाने ढंग से सौदेबाजी करते हुए ख़रीदी गई l जबकि जमीन खरीदने के लिए यह बात जरूर ध्यान रखना जरूरी है l
भूमि अधिग्रहण कानून पांच महत्वपूर्ण स्तंभों पर टिका है। ये स्तंभ हैं सामाजिक प्रभाव आकलन (एसआईए), लोगों की सहमति, मुआवजा, पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन। यह कानून सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए निजी जमीन लेने की सरकारी शक्तियों को सीमित करता है। वहीं अनावश्यक सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए सरकार द्वारा भेदभावपूर्ण अधिग्रहण भी रोकता है। कानून पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण से प्रभावित 70 प्रतिशत लोगों की स्वीकृति अनिवार्य बनाकर लोगों की व्यापक भागीदारी सुनिश्चित करता है। प्राइवेट परियोजनाओं के लिए 80 प्रतिशत लोगों की स्वीकृति जरूरी है। कानून के अनुसार, ग्रामीण भूमि का मुआवजा बाजार मूल्य का चार गुणा होगा, जबकि शहरी भूमि के लिए बाजार मूल्य का दोगुना मुआवजा मिलेगा। रोजगार गंवाने और जमीन देने वाले लोगों का पुनर्वास और पुनर्स्थापन भी अनिवार्य है।
ख़ासकर ग्रामीण लोगों को आबादी के लिहाज से यह कार्य आवश्यक है lजिसमें ग़रीब लोगों की जमीन को खरीदते वक्त दबी जुबान में विरोध किया जा रहा है l
ज़मीन की क़ीमत को देखते हुए इस विरोध को उचित ठहराया जा सकता है l
शहरी क्षेत्र के नज़दीक जो ज़मीनें हैं वहां क़ीमतें आसमान छू रही हैं लेकिन छीबों गांव में निजी कंपनी द्वारा लगाए जा रहे प्लांट के कारण इन इलाक़ों में ज़मीन मालिकों के लिए बहुत ज़्यादा मुनाफ़ा देने वाली हैं l
गाँव के गरीब लोग कई तरह की भ्रष्ट गतिविधियों के शिकार हैं इन गरीब लोगों की जमीन को दबंग क्रेताओं व स्थानीय भू माफ़िया कम क़ीमत देकर या बिना सहमति के उनकी ज़मीनें खरीद रहे है और इसमें राजनीतिक दखलंदाज़ी भी शामिल है l
सबसे बड़ी सोंचने वाली बात यह है कि इन दबंग क्रेताओं के पास इतना पैसा कहाँ से आया जो गरीबों की जमीन मनमाने तरीके से खरीद रहे हैं व स्टाम्प चोरी करते हुए सरकारी राजस्व को चूना लगाने का काम कर रहे हैं व जो कम्पनी अपना प्लांट लगा रही है वह सीधे गरीब लोगों की जमीन क्यों नहीं खरीद रही है l
निजी प्लांट के संचालन को खरीदी जा रही जमीन पर गरीब लोगों को उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है l
दबंग भू माफियाओ द्वारा गरीबों की ज़मीन पर अधिग्रहण के नाम पर हो रही लूट पर सरकार कब रोक लगाने का काम करेगी यह एक बड़ा सवाल है l