अर्पित श्रीवास्तव की रिपोर्ट
अतर्रा (बांदा)। अंग्रेजी माध्यम प्राथमिक विद्यालय पचोखर -2, क्षेत्र महुआ में स्वामी विवेकानंद की जन्म जयंती राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में हर्षोल्लास के साथ मनाई गई। इस अवसर पर विद्यालय के प्रधानाध्यापक प्रमोद दीक्षित मलय ने विद्यालय के शिक्षकों के सम्मुख स्वामी विवेकानंद जी के जीवन के प्रेरक प्रसंग साझा करते हुए कहा कि वह हिंदू दर्शन के प्रखर वक्ता एवं वैश्विक ध्वजवाहक थे। उनकी दृष्टि में सभी मनुष्य असीम ऊर्जा और रचनात्मकता से पूर्ण हैं। अपनी शक्तियों को पहचानने की जरूरत है। जीवन में भोगवादी व्यवहार-आचरण से मुक्त होकर त्याग, समर्पण और आत्मीयता युक्त जीवन ही श्रेयस्कर है। पश्चिमी संस्कृति दैहिक क्षणिक सुख दे सकती है, आत्मा का आनंद और संतुष्टि नहीं। 39 वर्ष के अल्प जीवन काल में महत्वपूर्ण कार्य किए जिनसे मानवता लाभान्वित हुई। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना कर पीड़ित मानवता की सेवा साधना का पथ चुना था। वे युवाओं को शक्ति की साधना करने पर बल लेते हुए कहते थे कि गीता का संदेश समझना है तो खेल के मैदान में जाओ। शरीर को बलिष्ठ बनाओ। उनका विचार में लक्ष्य प्राप्ति के लिए संकल्प बद्ध होकर कार्य करना चाहिए और जब तक लक्ष्य सिद्ध न हो विश्राम से दूर रहना चाहिए। युवाओं में आध्यात्मिक ऊर्जा और शारीरिक बल का समन्वय आवश्यक है।
गोष्ठी के आरम्भ में विद्यालय के शिक्षक-शिक्षिकाओं ने स्वामी विवेकानंद के चित्र पर पुष्प अर्पित कर नयन किया। कोरोना काल के कारण गोष्ठी बच्चों और अभिभावकों के बिना ही सम्पन्न हुई। फिर भी कुछ अभिभावक आ गये थे। शिक्षक राकेश द्विवेदी और शिक्षिका नीलम कुशवाहा ने भी स्वामी जी के विचारों को जीवन में उतारने और दुखी पीडित मानव एवं प्राणिमात्र की सेवा को मानव धर्म बताते हुए उनके बताये रास्ते पर चलने का आह्वान किया। गोष्ठी में विनय, सीमा, शकुंतला, लक्ष्मी, नत्थू प्रसाद, रविशंकर आदि उपस्थित रहे।