• दिवास्वप्न पर शिक्षकों ने साझा किये अनुभव
• दिवास्वप्न है विद्यालयों को आनंदघर बनाने की आधारशिला
कार्यालय संवाददाता
बांदा। गिजुभाई बधेका की पुस्तक दिवास्वप्न शिक्षकों के लिए मार्गदर्शक है। विद्यालयों को आनंदघर बनाने की यात्रा का आरम्भ बिंदु है, शैक्षिक धरातल की मजबूत आधारशिला है। दिवास्वप्न न केवल शिक्षकों को प्रेरित प्रोत्साहित करती है बल्कि शैक्षिक प्रयोगों की एक भूमि भी तैयार करती है। प्रत्येक शिक्षक को दिवास्प्न पढ़नी चाहिए।
उक्त विचार शैक्षिक संवाद मंच द्वारा गत दिवस आयोजित पाक्षिक वेबिनार में पुस्तक परिचर्चा अन्तर्गत गुजराती लेखक एवं शिक्षाविद् गिजुभाई बधेका की पुस्तक दिवास्वप्न पर प्रदेश भर से जुड़े शिक्षक-शिक्षिकाओं ने व्यक्त किये। वेबिनार के आरम्भ में संवाद मंच के संस्थापक प्रमोद दीक्षित मलय ने गिजुभाई के कार्यों का वर्णन कर उनके शैक्षिक कथनों का वाचन किया और कहा कि आज व्यक्त होने वाले विचारों को संकलित कर एक पुस्तिका प्रकाशित की जायेगी। तत्पश्चात सुमन गुप्ता ,झांसी ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि यह पुस्तक गिजुभाई के जीवंत अनुभवों से उपजी है। वे ऐसे विद्यालय की रचना करते हैं जहां बच्चे उत्साह, उमंग, उल्लास से आना चाहते हैं। जहां उनको प्यार और अपनापन मिलता है। सही मायनों में गिजुभाई ने बच्चों आनंदमयी शिक्षा हेतु संघर्ष किया। गौतमबुद्धनगर से शिक्षिका हरियाली श्रीवास्तव ने कहा कि नई शिक्षानीति 2020 के आधार में दिवास्वप्न के विचार देखे जा सकते हैं। शिक्षकों का बच्चों से जुड़ाव होने से बच्चों का सीखना सहज हो जाता है। जिस प्रकार गिजुभाई को प्रयोग करने की स्वतंत्रता मिली क्या आज हम शिक्षकों को मिल पाना सम्भव है। आज भी शिक्षक पाठ्यक्रम पूरा करने के दबाव में जीता है। श्रवण गुप्ता वाराणसी ने दिवास्वप्न पर विस्तृत समीक्षात्मक टिप्पणी करते हुए कहा कि गिजुभाई का रास्ता विद्यालयों की शैक्षिक गतिविधियों को प्रकाश की ओर ले जाने वाला है। वह परीक्षा को लचीला बनाने के पक्षधर हैं और जिस बच्चे में जिस क्षेत्र में कुछ नया कर सकने की योग्यता, क्षमता है उस बच्चे को उसी क्षेत्र में प्रशिक्षित करना आवश्यक है। बच्चों को दंड नहीं स्नेह देना होगा। मथुरा से सुनीता गुप्ता ने शिक्षण में खेल, गीत, कहानी, नाटक, स्थानीय भ्रमण आदि के गिजुभाई के नये प्रयोगों पर सहमति जताते हुए बहुत प्रासंगिक बताया। कमलेश पांडेय ने इस अवसर पर दिवासवप्न पर आधारित एक कविता पढ़ी। वेबिनार में विभिन्न जिलों से 22 शिक्षक-शिक्षिकाओं ने सहभागिता की। रामकिशोर पांडेय, अर्चना वर्मा, नरेंद्र कुमार, इंदु पवांर (उत्तराखंड), रेणु सिंह, धर्मेंद्र कुमार, नीतू शर्मा, मोनिका सिंह, प्रतिभा यादव, दीक्षा मिश्रा, संतकुमार दीक्षित, शैलेंद्र शंखधर, मनुजा द्विवेदी आदि जुड़े रहे। आभार प्रदर्शन अर्चना सिंह वाराणसी ने किया।