• हर शिक्षक में मौजूद हैं गिजुभाई
• पुस्तकें मनुष्य को जीने की कला सिखाती हैं
कार्यालय संवाददाता की रिपोर्ट
बांदा। शैक्षिक संवाद मंच द्वारा आयोजित मासिक ऑनलाइन पुस्तक चर्चा में वक्ता शिक्षकों ने अपने विचार रखते हुए कहा कि पुस्तकें व्यक्ति को गढ़ती हैं। मनुष्य को जीवन जीने की कला सिखाती हैं। गिजुभाई बधेका की पुस्तक दिवास्वप्न शैक्षिक प्रयोगों का एक दिव्य प्रकाश पुंज है जो शिक्षकों का सदा मार्गदर्शन करता रहेगा। हर शिक्षक के अंदर गिजुभाई मौजूद है आवश्यकता है उसे पहचानने और धरातल पर प्रकट करने की।
स्वप्रेरित शिक्षकों के स्वैच्छिक मैत्री समूह शैक्षिक संवाद मंच द्वारा रविवार की शाम को आयोजित ऑनलाइन संवाद में मासिक पुस्तक चर्चा के क्रम में गिजुभाई बधेका लिखित दिवास्वप्न पर उपस्थित शिक्षक-शिक्षिकाओं ने अपने विचार प्रकट किये। पुस्तक चर्चा की भूमिका रखते हुए प्रमोद दीक्षित मलय ने कहा कि गुजराती भाषा में 1932 में प्रकाशित दिवास्वप्न गिजुभाई के शैक्षिक प्रयोगों पर आधारित एक आत्मकथात्मक उपन्यास है जिसमें तत्कालीन शैक्षिक परिदृश्य और चुनौतियां विद्यमान हैं। यह पुस्तक हर उस शिक्षक के लिए पढ़ना आवश्यक है जो बच्चों के साथ काम करने को उत्सुक हो। मनुजा द्विवेदी ने कहा कि गिजुभाई के तरह हर नवाचारी शिक्षक को अकेले चलना पड़ता है। कल्पना को धरातल पर उतारने के लिए खून पसीना एक करना होता है। अमिता शुक्ला ने दिवास्वप्न के अंश पढ़ते हुए बच्चों की ओर से सवाल किया कि मैं खेलूं कहां मैं कूदूं कहां? कहानी बच्चों के मन पर जादू सा काम करती है। यदि हम अच्छे टीचर हैं तो हमें काम किये बिना कैसे चैन पड़ेगा। राम किशोर पांडेय ने चुनौतियों का संदर्भ देते हुए कहा कि विद्यालयों में जो चुनौतियां गिजुभाई के सम्मुख थीं, आज भी वही चुनौतियां मौजूद है। सुरुचिपूर्ण शिक्षण एवं संवाद से हम चुनौतियों का समाधान खोज सकते हैं। शरद चौहान ने स्वच्छता एवं दैहिक साफ सफाई पर बोलते हुए दिवास्वप्न को यथा स्थिति को तोड़ने के नए सफर के रूप में देखा। श्रवण गुप्ता विचार रखते हैं कि वकील होकर भी गिजुभाई ने शिक्षा में बहुत बड़ा काम किया है। एक शिक्षक के मन में उत्कंठा, आत्मविश्वास और दृढ़ निश्चय हो तो लक्ष्य हासिल होता है। धर्मेंद्र कुशवाहा ने मानव जीवन के प्रत्येक पल को मूल्यवान बताते हुए लक्ष्य के प्रति पूर्ण समर्पित होकर काम करने की बात कही। योगेंद्र पांडे ने आनंदमयी शिक्षा पर गिजुभाई के प्रयास और उनके नाटकों की चर्चा की। सुनीता गुप्ता कहती हैं कि स्कूलों में काम करते हुए गिजुभाई विचारों एवं मान्यताओं से जूझकर बच्चों के लिए सीखने का स्वतंत्र माहौल दिया। सुमन गुप्ता ने विचार रखे कि दिवास्वप्न एक शिक्षक के अनुभवों से उपजी पुस्तक है जिसमें आनंद, उल्लास और जीवटता के दर्शन होते हैं। नीतू शर्मा मत रखती हैं कि गिजुभाई ने पारंपरिक शिक्षा प्रणाली को कलात्मक ढंग से बदल बच्चों का दिल जीता। अरविंद सिंह के विचार में दिवास्वप्न संदेश देती है कि बच्चों एवं शिक्षकों पर बोझ न थोपते हुए उन्हें परीक्षाओं के भय से मुक्त कर ज्ञान निर्माण हेतु जगह देनी होगी। पूजा त्रिवेदी दिवास्वप्न को एक शिक्षक की सकारात्मकता के रूप में देखती हैं। माधुरी जायसवाल का मानना है कि दिवास्वप्न हर एक शिक्षक के लिए प्रेरणा है। शिक्षा सूचनाओं का आदान प्रदान नहीं है बल्कि ज्ञान सृजित करते हुए जीवन जीने की कला सिखाना है। बच्चों पर भरोसा जरूरी है। कमलेश त्रिपाठी की दृष्टि में गिजुभाई जिजीविषा के प्रतीक एवं नवीन प्रयोगों के धनी व्यक्ति हैं। छवि अग्रवाल की दृष्टि में बच्चों को प्रेम एवं सम्मान मिलना आवश्यक है। दिवास्वप्न बच्चों के साथ रोचक एवं सार्थक गतिविधियों के माध्यम से सीखने की प्रक्रिया को गतिशील करने का दर्शन कराती है। इंदु पवार ने दिवास्वप्न के माध्यम से सवाल उठाया कि हम शिक्षक के रूप में बच्चों को क्यों पढ़ा रहे हैं? परीक्षा पास करने हेतु या उन्होंने जिज्ञासा को बढ़ावा देकर नया सीखने के लिए प्रेरित करने हेतु। पुस्तक परिचर्चा में पूरे प्रदेश से 35 शिक्षक शिक्षिकाओं जुडकर विचार रखे, जिनमें अर्चना वर्मा, उर्मिला लाल, कमलेश पांडेय, कविता रानी, चंद्रशेखर सेन, नरेंद्र कुमार, रेनू सिंह, पवन पटेल, पूनम नामदेव, नौरीन सआदत, ममता शुक्ला, रुखसाना बानो, सपना कुशवाहा, स्मृति चौधरी, ऋतु श्रीवास्तव आदि। संचालन प्रमोद मलय ने और बलराम दत्त गुप्त ने सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।