उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने सोमवार को उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव को लेकर एक दावा किया.
मौर्य ने ट्विटर पर लिखा, ” पंचायत चुनाव में भाजपा का दावा असली, विपक्ष का नक़ली.”
अगले ट्वीट में उन्होंने लिखा, ” पंचायत चुनाव में भाजपा की जीत से साबित हुआ सपा के दावे खोखले.”
त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के नतीजे पिछले महीने आए थे और ज़िला पंचायत अध्यक्ष चुनाव की प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हुई. चुनाव तीन जुलाई को है और नतीजे भी उसी दिन आएँगे.
लेकिन इसी बीच बीजेपी ने अपनी जीत का एलान कर दिया है. विपक्षी दल इन दावों पर सवाल उठा रहे हैं और सत्ताधारी बीजेपी पर सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का आरोप लगा रहे हैं.
उत्तर प्रदेश में ज़िला पंचायत अध्यक्ष चुनाव को लेकर ऐसे दावों और आरोपों-प्रत्यारोपों का दौर नया नहीं है लेकिन बीते कुछ दिन से इसमें अचानक तेज़ी आ गई है.
चुनाव मैदान में नहीं होगी बीएसपी
इन चुनावों को अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों का ‘सेमी फ़ाइनल’ बताया जा रहा है. हालांकि, बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने सोमवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर एलान किया कि उनकी पार्टी चुनाव में हिस्सा नहीं लेगी. मायावती ने ये एलान नामांकन की आखिरी तारीख़ बीतने के बाद किया है.
चुनाव में नाम वापसी की आखिरी तारीख़ 29 जून (मंगलवार) है.
मायावती ने उत्तर प्रदेश सरकार पर सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का आरोप लगाया और इसे ही चुनाव से दूर रहने की वजह बताया.
मायावती ने कहा, “यूपी में ज़िला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जीतना अब पूरे तौर से यहां खरीद फरोख़्त और सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करने आदि पर ही आधारित होकर रह गया है. इस मामले में बीजेपी भी वही तौर तरीके और शैली आदि अपना रही है जो पूर्व में समाजवादी पार्टी अपनी सरकार के दौरान अपनाती रही है.”
मायावती ने ये दावा भी किया कि प्रदेश में अगली सरकार उनकी पार्टी की बनेगी और “जब यहां बसपा की सरकार बन जाएगी तो ज़िला पंचायत अध्यक्ष खुद ही बसपा में शामिल हो जाएंगे. “
बीजेपी को बढ़त?
मायावती की पार्टी के चुनाव मैदान से हटने को लेकर कई तरह के दावे किए जा रहे हैं. अब कई ज़िलों में प्रदेश की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच सीधी टक्कर बताई जा रही है. हालांकि, कई ज़िलों में दो से ज़्यादा उम्मीदवार मैदान में हैं.
लेकिन बीजेपी और समाजवादी पार्टी टक्कर पर सबकी नज़र है और इस मुक़ाबले में बहुजन समाज पार्टी के समर्थन से जो पंचायत सदस्य जीते हैं, उनका फ़ैसला अहम हो जाएगा.
उत्तर प्रदेश में ज़िला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव तीन जुलाई को होना है. अंतिम नतीजे भी उसी दिन आएंगे. चुनाव के लिए नामांकन की आखिरी तारीख 26 जून थी और तब से ही गर्माहट बढ़ गई है. नामांकन का वक़्त ख़त्म होते ही 18 ज़िलों में पंचायत अध्यक्षों का निर्विरोध निर्वाचन तय हो गया. इनमें से 17 उम्मीदवार बीजेपी और एक समाजवादी पार्टी का है.
इसे लेकर समाजवादी पार्टी ने बीजेपी पर गंभीर आरोप लगाए. समाजवादी पार्टी ने दावा किया कि कई ज़िलों में उनके प्रत्याशियों को नामांकन ही नहीं करने दिया गया.
समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने आरोप लगाया, “बीजेपी सरकार ने जिस तरह गोरखपुर और दूसरी जगहों पर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों को जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिल करने से रोका, ये हारी हुई भाजपा का चुनाव जीतने का नया प्रशासनिक हथकंडा है. “
अखिलेश यादव ने ये दावा भी किया, ” भाजपा जितने पंचायत अध्यक्ष बनायेगी, जनता विधानसभा में उन्हें उतनी सीट भी नहीं देगी.”
अखिलेश ने की कार्रवाई
शनिवार यानी 26 जून को ही समाजवादी पार्टी के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तर पटेल के हवाले से मीडिया में ख़बर आई कि पार्टी ने 11 ज़िलाध्यक्षों को बर्खास्त कर दिया है.
पार्टी की ओर से बताया गया कि गोरखपुर, मुरादाबाद, झांसी, आगरा, गौतमबुद्ध नगर और मऊ समेत कुल 11 ज़िलों के प्रमुखों को हटा दिया गया है. इस कार्रवाई को पार्टी के नामित उम्मीदवारों का नामांकन न होने से जोड़कर देखा गया.
पंचायत चुनावों की चर्चा बीते महीने मई में भी हुई थी और तब त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव नतीजों को समाजवादी पार्टी का मनोबल बढ़ाने वाला बताया गया था. इन नतीजों को प्रदेश की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के लिए ‘ख़तरे की घंटी’ के तौर पर देखा गया था.
अयोध्या, मथुरा और वाराणसी में पार्टी का पिछड़ना राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बना था. ये तीनों ज़िले भारतीय जनता पार्टी के लिए अहम रहे हैं. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण बीजेपी का पुराना एजेंडा है. बीते साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में मंदिर निर्माण का भूमि पूजन हो चुका है. वहीं वाराणसी से प्रधानमंत्री मोदी सांसद हैं. फिर भी इन ज़िलों में भारतीय जनता पार्टी के निर्वाचित सदस्यों की संख्या दूसरे दलों के मुक़ाबले कम रहे.
समाजवादी पार्टी की जीत का दावा
उत्तर प्रदेश के 75 ज़िलों में कुल 3052 ज़िला पंचायत सदस्य चुने गए. इनमें से सबसे ज़्यादा 747 समाजवादी पार्टी समर्थित उम्मीदवार जीते जबकि बीजेपी के समर्थन वाले 690 उम्मीदवारों को जीत मिली. बहुजन समाज पार्टी के समर्थन वाले 381 पंचायत सदस्य चुने गए.
हालांकि, चुनाव नतीजों के एलान के बाद भारतीय जनता पार्टी ने दावा किया कि चुनाव में उसे 981 सीटें मिली हैं. पार्टी के मुताबिक जीते हुए तमाम निर्दलीय उम्मीदवार भी बीजेपी के ही हैं.
इस दावे पर सवालिया निशान विपक्ष के अलावा भारतीय जनता पार्टी के सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने भी लगाया.
त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के नतीजे आने के बाद स्वामी का 6 मई का ट्वीट ख़ासा चर्चा में रहा था.
स्वामी ने लिखा, “उत्तर प्रदेश के स्थानीय निकाय चुनाव में दलीय उम्मीदवारों की जीती सीटों के मुताबिक विधायकों की सीटों के लिहाज से ये जानकारी देती हैं. 1- विधानसभा की 403 सीटों में से विधायकों की 46 सीटें पूरी तरह शहरी हैं तो वहां कोई चुनाव नहीं हुए. चुनाव 357 सीटों पर हुए. 2- इनमें से सपा ने 243 और बीजेपी ने 67 पर जीत हासिल की. 3- बाकी के खाते में 47 सीटें गईं. अगर मैं ग़लत हूं तो कृपया सुधार करें.”
कौन जीतेगा सेमी फ़ाइनल?
उत्तर प्रदेश सरकार में नेतृत्व परिवर्तन की चर्चा भी इन चुनाव नतीजों के सामने आने के बाद तेज़ हुईं थीं. लेकिन, पंचायत अध्यक्ष चुनाव आते-आते स्थिति ख़ासी बदल रही है.
उत्तर प्रदेश में बीजेपी के अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों पर ये कहते हुए विराम लगा चुके हैं कि अगले चुनाव में ‘पार्टी की अगुवाई मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ करेंगे’. मुख्यमंत्री आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के बीच दूरियां कम होने के संकेत भी जाहिर किए गए हैं.
इस बीच चुनावी मोर्चे से भी बीजेपी को मनोबल बढ़ाने वाली ख़बर मिली है. 17 उम्मीदवारों के निर्विरोध निर्वाचन को उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और दूसरे नेताओं ने पार्टी की बड़ी जीत बताया है.
वहीं, मायावती ने जिस तरह बीजेपी पर सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए चुनाव से हटने का एलान किया है, उससे माना जा रहा है कि उन्हें अपने समर्थक पंचायत सदस्यों को एकजुट रखने में दिक्कत हो रही है.
हालांकि, ज़िला पंचायत चुनाव के आखिरी नतीजे तीन जुलाई को सामने आएंगे लेकिन शुरुआती बढ़त के बाद ही बीजेपी ने जीत का एलान कर दिया है.