बज्म ए जिगर नजीबाबाद की शेरी नश्स्ति में शायरो ने देश प्रेम की रचनाएं पेश कर स्वतंत्रता दिवस मनाया
शादाब जफर शादाब की रिपोर्ट
नजीबाबाद। बीती शाम बज्म ए जिगर की जानिब से स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सोशल डिशटेंससिंग से एक शाम शहीदो के नाम से एक एक शेरी नश्स्ति का आयोजन मौहल्ला सब्नीग्रान मै शायर डाक्टर तैय्यब जमाल की के मकान पर किया गया। जिस में शायरी ने देश प्रेम में डूबी रचनाएं पेश कर देश के शहीदो को नमन किया। शेरी नशिस्त की सदारत कर रहे अकरम जलालाबादी ने अपने सम्बोधन में कहा कि देश की दुश्मन ताकते हम देशवासियों मैं हिन्दू मुस्लिम के बीज बो कर हमें आपस मैं लडाना चाहते हैं, पर जब तक अदब की ये गंगा जमुनी महफ़िलें क़ायम होती रहेंगी और हमारे देश में अपनी कविताओं, गीतों, ग़ज़लों के माध्यम से एकता अखंडता, भाईचारे का संदेश देने वाले कवि शायर मौजूद हैं तब हमारे मुल्क की हिन्दू मुस्लिम एकता अखंडता को कोई नहीं मिटा सकता।
नौजवान शायर नौशाद अहमद शाद ने हिंदोस्ता की गौरवगाथा बयान करते हुए कहा.. हिन्दुस्तान में रहता हूं मैं हिन्दुस्तान में रहता हूं, प्यार मौहब्बत मैं सब की पहचान में रहता हूं।
कार्यक्रम संयोजक शायर शादाब जफर शादाब ने अपने मुल्क हिन्दुस्तान के लिए कहा… मैं वतन पर मिटूं ये मेरी आरजू, काश मिटटी को दे दूं मैं अपना लहू। मादरे मुल्क तेरी कसम है मुझे, जान दे दूं ना दूं मैं तेरी आबरु।
मेज़बान शायर डा. तैय्यब जमाल ने हिन्दुस्तान की खूबियो को अपने जज़्बात में बयान करते हुए कहा.. ज़माने में जिसे सब लोग हिन्दुस्तान कहते हैं,कोई पूछे अगर हमसे हम अपनी जान कहते हैं। हमीं हैं जो फकत दुनिया में यह तहज़ीब रखते हैं,अगर दुश्मन भी घर आये उसे मेहमान कहते हैं।
नौजवान शायर, नशिस्त की खूबसूरत निज़ामत कर रहे उबैद अहमद ने कहा… ओढ कर जो बर्फ का कम्बल गया, आग से वो शख्स कैसे जल गया। प्यास ने आवाज़ दरिया को ना दी, काम फिर से आंसूओं से चल गया।
बेहतरीन लबों लहजे के मालिक जिद्दत पसंद शायरी करने वाले नौजवान शायर सय्यद अहमद ने कहा… एक दोस्त हैं जो काफी पुराना हैं मेरे साथ.वो साथ हैं तो सारा जमाना हैं मेरे साथ।
वरिष्ठ शायर व खूबसूरत तरन्नुम के मालिक जलालाबाद निवासी शायर शकील अहमद वफा ने अपने अशआरो में अपनी देशभक्त पेश करते हुए कहा… ये मेरी ज़मीं,मेरा गगन मेरा वतन हैं, धरती पे मेरे खूब हिमालय की फबन हैं।
मौसूफ अहमद वासिफ ने देश के शहीदो को नमन करते हुए कहा… बात आई कभी जब तेरी शान पर,सर से बांधा कफ़न खेले हम जान पर।
शेरी नशिस्त की सदारत फरमा रहे नौजवान शायर अकरम जलालाबादी ने खूबसूरत तरन्नुम में देशभक्ति गीत पेश करते हुए…छोड़ दो नफरतो का चलन साथियों, वरना लुट जायेगा ये चमन साथियों। जिस के चलने से मिलती हो शादाबिया, तुम हो सावन की ठंडी पवन साथियों।
शेरी नशिस्त की सदारत अकरम जलालाबादी ने व निज़ामत नौजवान शायर उबैद अहमद ने की।