शादाब जफर शादाब की रिपोर्ट
नजीबाबाद। मुल्क में नजीबाबाद एक ऐतिहसिक नगर के रुप में स्थापित हैं जिसे पेशावर में 1707 में जन्मे नजीब खां ने सन् 1752 में ऐतिहासिक नगरी नजीबाबाद को बसाया था। नवाब नजीबुद्दौला के नाम से मशहूर हुए नजीब खां और उनके वंशजों ने नजीबाबाद को कई कलात्मक इमारतों का तोहफा दिया।
आज ये इमारते अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है। बारादरी, नवाब गंज स्थित नवाब नजीबुद्दोला का रिहायशी किला, पत्थर गढ का किला ये सब आज सिर्फ निशानी के तौर पर ही नज़र आ रहे हैं। उस पर सितम ये है नगर जनप्रतिनिधि, शहर की जनता, पुरातत्व विभाग समाजसेवियो और मीडिया को खंडहर होती इस बेशकीमती धरोहर की ज़रा भी फिक्र नहीं। स्टेशन रोड़ स्थित नवाब नजीबुद्दोला का मकबरा वहा स्थित मार्किट के लोगों के संरक्षण में आ जाने से कुछ बेहतर स्थिति में जरूर आ गया है।
वही बिजनौर प्रशासन और जनप्रतिनिधियो की उदासीनता के कारण नवाब नजीबुद्दौला के बसाए नगर नजीबाबाद में में प्राचीन नवाबी इमारतें एक-एक कर अपना अस्तित्व खो रही हैं। अनमोल धरोहर कही जाने वाली इन इमारतों के बाहर पुरातत्व विभाग के बोर्ड तो लगे हैं, लेकिन इनकी सुध नहीं लेने से इमारतें तेजी से खंडहर में तब्दील हो रही हैं। कुछ नवाबी इमारतें भूमाफिया की भेंट चढ़ चुकी हैं।
नजीबाबाद को बसाते वक़्त नवाब नजीबुद्दौला और उनके वंशजों ने नजीबाबाद को कई कलात्मक इमारतों का तोहफा दिया। नवाबी कला अनुराग की प्रतीक इमारतों में नवाब नजीबुद्दौला का महल, पत्थरगढ़ का किला, बारहदरी, चार मीनार को जिसने भी देखा, उसने कलात्मक कारीगरी की दृष्टि से दांतों तले उंगली दबा ली। सन 1755 में निर्मित पत्थरगढ़ के किले में सुल्ताना डाकू ने पनाह ली, तो उसे लोग इसी नाम से पहचानने लगे। नवाब नजीबुद्दौला ने किले का निर्माण 1755 में कराया था और उन्होंने ही अपने नाम पर नजीबाबाद शहर बसाया। असल में नवाब नजीबुद्दौला का असली नाम नजीब खां था। नजीबुद्दौला का खिताब उन्हें मुगलों के आखिरी बादशाह बहादुर शाह जफर के दरबार से मिला था।
आज इन बेशकीमती धरोहर इमारतो की कोई सुध लेने वाला नहीं है। नगर पालिका परिषद नजीबाबाद की इमारत के ठीक सामने नवाब नजीबुद्दौला का महल गिरने के कगार पर खड़ा है। बरसो से नजीबाबाद की शान ये किला उचित रखरखाव ना होने से कब गिर जाये और नजीबाबाद के इतिहास से कब ये अनमोल धरोहर मिट जाये कहा नहीं जा सकता।