गीताप्रेस की खूबियां उसकी पहचान हैं। वह धार्मिक व सदाचार की पुस्तकों के माध्यम से सिर्फ अच्छे संस्कारों का प्रचार-प्रसार ही नहीं करता बल्कि वहां काम करने वाले कर्मचारियों से लेकर प्रबंधक तक खुद भी उसे जी भी रहे हैं। परिसर इंसानियत की पाठशाला बन गया है, जहां ईमानदारी व कर्तव्यनिष्ठा कर्मचारियों का गुणधर्म भी है। और यहां न कोई नौकर है और न ही मालिक। सभी भगवान का कार्य कर रहे हैं। ट्रस्टियों की इस भावना ने कर्मचारियों में अभय का वातावरण बनाया हुआ है। पूरा परिसर सृजन और भगवान के स्मरण में डूबा तनावमुक्त रहता है। ट्रस्टियों की कर्मचारियों के प्रति बेहद संवेदनशीलता होता है। इससे गीताप्रेस एक जिम्मेदार परिवार बन चुका है। बाजार के इस दौर में भी सबको साथ लेकर चलने की भावना व ईमानदारी के कई ऐसे उदाहरण यहां मिलेंगे जो अन्यत्र नहीं भी दिखते। सब सामान खुले में रखे रहते हैं, लेकिन आज तक कुछ गायब नहीं हुआ है, सबकी जरूरत पर सभी काम आते हैं। आपसी सहिष्णुता व समन्वय कर्मचारियों की विशेषता बनी है। कर्मचारी कार्य शुरू करने के पूर्व पंद्रह मिनट तक एक साथ भगवान की प्रार्थना करते हैं और सदाचार का संकल्प भी लेते हैं और उसे जीते हैं।
हिंदी के विकास में योगदान
गीताप्रेस धार्मिक पुस्तकों का प्रकाशन कर जहां धर्म व अध्यात्म के संबंध में जानकारी भी देता है, वहीं उसका हिंदी के विकास में भी अमूल्य योगदान है।