लखनऊ । आमतौर पर बरसात के महीनों से शुरू होकर सर्दी के शुरुआती सीजन तक प्याज की कीमतें आसमान छू रही होती हैं। लेकिन जनवरी, फरवरी और मार्च में प्याज हमेशा औने-पौने दाम में बिकता है या यूं कहें कि कौडिय़ों के दाम प्याज बिकता है तो गलत न होगा। बीते एक दशक में प्याज की कीमतों में इस कदर इजाफा कभी नहीं देखा गया। पर इस बार इन तीन माह में प्याज की कीमतों ने लोगों की आंखों में आंसू ला दिए हैं। थोक मंडी में इन दिनों प्याज 35 से 38 रुपये किलो बिक रही है। फुटकर में इस मसाला आइटम का भाव 55 से 60 के इर्द-गिर्द घूम रहा है।
बीते दस वर्षों में थोक मंडी में प्याज की आवक और औसत भाव
माह का नाम-आवक(क्विंटल)-रेट(रुपये प्रति क्विंटल में)
वर्ष-2011
जनवरी-21,556-606
फरवरी-30,183-877
मार्च- 34,203-1,580
वर्ष-2012
जनवरी-28,117-592
फरवरी-31,203-757
मार्च-34,647-878
वर्ष-2013
जनवरी-28,912-1,012
फरवरी-32,676-912
मार्च-34,647-878
वर्ष- 2014
जनवरी-83,418-1,015
फरवरी-35,346-955
मार्च-48,527-880
वर्ष-2015
जनवरी-44,515-914
फरवरी-43,284-927
मार्च-46,530-884
वर्ष-2016
जनवरी-45,520-886
फरवरी-43,851-930
मार्च-47,520-746
वर्ष-2017
जनवरी-50,584-667
फरवरी-57,430-747
मार्च-60,410-586
वर्ष-2018
जनवरी-50,690-1,600
फरवरी-54,440-1,050
मार्च-74,864-791
वर्ष-2019
जनवरी-75,810-650
फरवरी-74,418-600
मार्च-81,139-590
वर्ष-2020
जनवरी-26,352-2,465
फरवरी-53,881-1,314
मार्च-63,125-1,493
वर्ष-2021
जनवरी-59,116-2,800
फरवरी-3,073-3,500
मार्च————-
तीन महीनों में प्याज ने लाए आंखों में आंंसू: आढ़ती दुबग्गा थोक मंडी शहनवाज हुसैन ने बताया कि शुरुआती तीन महीनों में प्याज की कीमतें कभी इस कदर नहीं चढ़ती हैं। बीस रुपया किलो का आंकड़ा भी प्याज नहीं छू पाता है। लेकिन इस साल के तीन महीनों में प्याज ने हर व्यक्ति की आंखों में आंसू ला दिया है।
जानबूझकर माल की आपूर्ति धीमी: मंडी सचिव संजय सिंह के मुताबिक, यह सही है। कुछेक साल को छोड़ दिया जाए तो बीते एक दशक के दौरान दस रुपये प्रति किलो के आसपास ही प्याज का भाव थोक मंडी में रहा है। आवक भरपूर रही है। लेकिन इधर प्याज का भाव बराबर रफ्तार भर रहा है। यह चौंकाने वाला है। बाहर से आने वाली प्याज इन महीनों में हमेशा भरी पड़ी रहती थी। लेकिन इधर नासिक और अन्य स्थानों से आने वाले प्याज की आपूर्ति रुक-रुक कर आ रही है। फसल है तो ऐसा क्यों? नई फसल भी करीब है। ऐसे में रेट अकारण चढऩा संदेह पैदा करता है कि कहीं अन्य प्रांतों से जानबूझकर माल की आपूर्ति धीमी की जा रही है। मंडी खत्म होने के बाद अब टीम भंडारण पर सीधी कार्रवाई नहीं कर सकती है। कहीं यह कृत्रिम तेजी पैदा करने की कोशिश तो नहीं?