रिमझिम सावन .
बदरा उमड़ घुमड़ जब बरसे
भीगी विरहन पिय बिन तरसे
लगे आग पानी में तब तब,
रिमझिम सावन पास बुलाए।।
रिमझिम सावन पास……
प्रकृति सलोनी की तरुणाई, झर झर झरती बूंद सावनी।
मेघा लाए नवल संदेशा , जिय डरपाए चपल दामिनी।।
बेला किंसुक खिली चांदनी,
उपवन खेत बाग हरषाए।।
रिमझिम सावन पास……
बांझ धरा भी फोड़े अंकुर , ताल सरोवर नद उफनायी।
खिली खिली घाटी हिमनग की, निर्झरणी सुषमा मनभायी।।
प्रकृति नटी का रुप मोहनी,
आली री मानस सरसाए।।
रिमझिम सावन पास……
हद से अब आओ परदेशी, भीगा आंगन है सूना सा।
कैसे सुनाए हिय की तिय पिय, दर्द विरह का उर दूना सा।।
प्रखर प्रेम के अनुबंधों को,
पिय सावन गीत सुनाए।।
रिमझिम सावन पास……
प्रखर दीक्षित
फर्रुखाबाद