अनिल अनूप
बुद्ध को महात्मा या स्वामी कहने वाले उन्हें कतई नहीं जानते. बुद्ध सिर्फ बुद्ध जैसे हैं. अवतारों की कड़ी में बुद्ध अंतिम हैं. उनके बाद प्रलयकाल तक कोई अवतार नहीं होने वाला है. हिन्दू और बौद्ध दोनों ही धर्मों के लिए बुद्ध का होना अर्थात धर्म का होना है. बुद्ध इस भारत की आत्मा हैं.
भगवान बुद्ध का जन्म वैशाख मास की पूर्णिमा को हुआ था इस पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा कहा जाता है. देश भर में आज बुद्ध पूर्णिमा का पर्व मनाया जा रहा है. बुद्ध पूर्णिमा बौद्ध अनुयायियों के साथ-साथ हिंदुओं के लिये भी खास पर्व है. हिन्दू धर्म में गौतम बुद्ध को भगवान श्री विष्णु का नौवां अवतार माना जाता है. इतिहासकारों के अनुसार बुद्ध के जीवनकाल को 563-483 ई.पू. के मध्य माना गया है. अधिकांश लोग नेपाल के लुम्बिनी नामक स्थान को बुद्ध का जन्म स्थान मानते हैं. गौतम बुद्ध की मृत्यु, उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में 80 वर्ष की आयु में हुई थी.
बुद्धत्व की प्राप्ति व महापरिनिर्वाण का दिन
बुद्ध पूर्णिमा का संबंध बुद्ध के साथ केवल जन्म भर का नहीं है बल्कि इसी पूर्णिमा तिथि को वर्षों वन में भटकने व कठोर तपस्या करने के पश्चात बोधगया में बोधिवृक्ष नीचे बुद्ध को सत्य का ज्ञान हुआ. कह सकते हैं उन्हें बुद्धत्व की प्राप्ति भी वैशाख पूर्णिमा को हुई. इसके पश्चात महात्मा बुद्ध ने अपने ज्ञान के प्रकाश से पूरी दुनिया में एक नई रोशनी पैदा की और वैशाख पूर्णिमा के दिन ही कुशीनगर में उनका महापरिनिर्वाण हुआ. कुल मिलाकर जन्म, सत्य का ज्ञान और महापरिनिर्वाण के लिये भगवान गौतम बुद्ध को एक ही दिन यानी वैशाख पूर्णिमा के दिन ही हुआ.
कहां कहां मनाई जाती है बुद्ध जयंती
भारत के साथ साथ चीन, नेपाल, सिंगापुर, वियतनाम, थाइलैंड, जापान, कंबोडिया, मलेशिया, श्रीलंका, म्यांमार, इंडोनेशिया, पाकिस्तान जैसे दुनिया के कई देशों में बुद्ध पूर्णिमा के दिन बुद्ध जयंती मनाई जाती है. भारत के बिहार राज्य में स्थित बोद्ध गया बुद्ध के अनुयायियों सहित हिंदुओं के लिये भी पवित्र धार्मिक स्थल है. कुशीनगर में बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर लगभग एक माह तक मेला लगता है. हालांकि लॉकडाउन की वजह से इस साल मेले का आयोजन नहीं किया गया है. श्रीलंका जैसे कुछ देशों में इस उस्तव को वेसाक उत्सव के रूप में मनाते हैं. बौद्ध अनुयायी इस दिन अपने घरों में दिये जलाते हैं और फूलों से घर सजाते हैं. इस दिन बौद्ध धर्म ग्रंथों का पाठ किया जाता है.
गौतम बुद्ध विष्णु के नौंवे अवतार
भगवान बुद्ध केवल बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिये आराध्य नहीं है बल्कि उत्तरी भारत में गौतम बुद्ध को हिंदुओं में भगवान श्री विष्णु का नौवां अवतार भी माना जाता है. विष्णु के आठवें अवतार भगवान श्री कृष्ण माने जाते हैं. हालांकि दक्षिण भारत में बुद्ध को विष्णु का अवतार नहीं माना जाता है. दक्षिण भारतीय बलराम को विष्णु का आठवां अवतार तो श्री कृष्ण को 9वां अवतार मानते हैं. बौद्ध धर्म के अनुयायी भी भगवान बुद्ध के विष्णु के अवतार होने को नहीं मानते.
बौद्ध धर्म के मुख्य तीर्थस्थल
बौद्धों के लिए, बोध गया नामक स्थान गौतम बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित सर्वाधिक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है. बोधगया के अतिरिक्त, कुशीनगर, लुम्बिनी तथा सारनाथ भी अन्य तीन महत्वपूर्ण तीर्थस्थल हैं. माना जाता है कि गौतम बुद्ध ने बोधगया में ज्ञान प्राप्त किया तथा उन्होंने पहली बार सारनाथ में धर्म की शिक्षा दी.
बुद्ध पूर्णिमा के दिन कैसे करें पूजा
– घर के मंदिर में विष्णु जी की दीपक जलाकर पूजा करें और घर को फूलों से सजाएं.
-घर के मुख्य द्वार पर हल्दी, रोली या कुमकुम से स्वस्तिक बनाएं और गंगाजल छिड़कें.
-बोधिवृक्ष के आस-पास दीपक जलाएं और उसकी जड़ों में दूध विसर्जित कर फूल चढ़ाएं.
-गरीबों को भोजन और कपड़े दान करें.
-रौशनी ढलने के बाद उगते चंद्रमा को जल अर्पित करें.
शांति की खोज में कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ 27 वर्ष की उम्र में घर-परिवार, राजपाट आदि छोड़कर चले गए थे. भ्रमण करते हुए सिद्धार्थ काशी के समीप सारनाथ पहुंचे जहाँ उन्होंने धर्म परिवर्तन किया. यहाँ उन्होंने बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचें कठोर तप किया. कठोर तपस्या के बाद सिद्धार्थ को बुद्धत्व ज्ञान की प्राप्ति हुई और वह महान सन्यासी गौतम बुद्ध के नाम से प्रचलित हुए और अपने ज्ञान से समूचे विश्व को ज्योतिमान किया. मान्यता है कि भगवान बुद्ध श्री हरि विष्णु का अवतार हैं. इस पूर्णिमा को सिद्ध विनायक पूर्णिमा या सत्य विनायक पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है.
वैसे तो हर साल बुद्ध पूर्णिमा के शुभावसर पर मंदिरों में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. सभी बुद्ध की प्रतिमा का जलाभिषेक करते है और फल, फूल, धुप इत्यादि चढाते हैं. बौध श्रद्धालु इस दिन ज़रुरतमंदों की सहायता करते हैं और कुछ श्रद्धालु इस दिन जानवरों-पक्षियों को भी पिंजरों से मुक्त करते है और विश्वभर में स्वतंत्रता का सन्देश फैलाते हैं. पर इस साल कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण देश भर में लॉकडाउन लगाया गया है, जिसके कारण लोग घर में रहकर ही पूजा पाठ करेंगे
बुद्ध के जीवन में चार द्रश्यों का अत्यधिक प्रभाव पड़ा:
– वृद्ध व्यक्ति
– बीमार व्यक्ति
– मृतक
– और प्रसन्नचित्त संन्यासी
इन सबके बारे में उन्होंने अपने सारथी से पूछा तो उसने कहा कि हर एक के जीवन में बुढ़ापा आने पर वह रोगी हो जाता है और रोगी होने के बाद वह मृत्यु को प्राप्त करता है. जब उन्होंने संन्यासी के बारे में पूछा तो सारथी ने कहा कि संन्यासी ही है जो मृत्यु के पार जीवन की खोज में निकलता है. जब उनकी पत्नी और बच्चा सो रहे थे तब उन्होंने ग्रह त्याग किया. यहीं आपको बता दें कि बौद्ध ग्रंथों में गृह त्याग को ‘महाभिनिष्क्रमण’ की संज्ञा दी गई है.
बौध धर्म की शिक्षाएं एवं सिद्धांत
बौध धर्म के त्रिरत्न हैं – बुद्ध, धम्म और संघ.
बौध धर्म के चार आचार्य सत्य हैं:
1. दुःख
2. दुःख समुदाय
3. दुःख निरोध
4. दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा (दुःख निवारक मार्ग) अर्थार्त अष्टांगिक मार्ग.
साथ ही दुःख को हरने वाले तथा तृष्णा का नाश करने वाले अष्टांगिक मार्ग के आठ अंग हैं.
अष्टांगिक मार्ग के तीन मुख्य भाग हैं: प्रज्ञा ज्ञान, शील तथा समाधि. इन तीन प्रमुख भागों के अंतर्गत जिन आठ उपायों की प्रस्तावना की गयी है वे इस प्रकार हैं:
– सम्यक दृष्टि: वस्तुओं के वास्तविक स्वरूप का ध्यान करना
– सम्यक संकल्प: आस्तिक, द्वेष तथा हिंसा से मुखत विचार रखना
– सम्यक वाणी: अप्रिय वचनों का सर्वदा परित्याग
– सम्यक कर्मान्त: दान, दया, सत्य, अहिंसा इत्यादि सत्कर्मों का अनुसरण करना
– सम्यक आजीव: सदाचार के नियमों के अनुकूल आजीविका का अनुसरण करना
– सम्यक व्यायाम: नैतिक, मानसिक एवं अध्यात्मिक उन्नति के लिये सतत प्रयत्न करना
– सम्यक स्मृति: अपने विषय में सभी प्रकार की मिद्या धारणाओं का त्याग करना
– सम्यक समाधि: मन अथवा चित को एकाग्रता को सम्यक समाधि कहते हैं.
अष्टांगिक मार्ग को भिक्षुओं का ‘कल्याण मित्र’ कहा गया है. बौध धर्म के अनुसार मनुष्य के जीवन का परम लक्ष्य है निर्वाण की प्राप्ति. यहीं आपको बता दें कि निर्वाण का अर्थ है दीपक का बुझ जाना और जीवन मरण के चक्र से मुक्त हो जाना. यह निर्वाण इसी जन्म से प्राप्त हो सकता है, किन्तु महापरिनिर्वाण मृत्यु के बाद ही संभव है.
बुद्ध ने दस शिलों के अनुशीलन को नैतिक जीवन का आधार बनाया है. जिस प्रकार दुःख समुदाय का कारण जन्म है उसी तरह जन्म का कारण अज्ञानता का चक्र है. इस अज्ञान रूपी चक्र को ‘प्रतीत्य समुत्पाद’ कहा जाता है.
‘प्रतीत्य समुत्पाद’ ही बुद्ध के उपदेशों का सार एवं उनकी संपूर्ण शिक्षाओं का आधार स्तम्भ है. इसका शाब्दिक अर्थ है: प्रतीत्य मतलब किसी वस्तु के होने पर और समुत्पाद का अर्थ है किसी अन्य वस्तु की उत्पत्ति.
‘प्रतीत्य समुत्पाद’ के 12 क्रम हैं जिसे द्वादश निदान कहा जाता है. जिसमें सम्बन्धित हैं:
जाति, जरामरण – भविष्य काल से
अविधा, संस्कार – भूतकाल से
विज्ञान, नाम-रूप, स्पर्श, तृष्णा, वेदना, षडायतन, भव, उपादान – वर्तमान काल से
बौध धर्म मूलत: अनीश्वरवादी है. बौध धर्म अनात्मवादी है. इसमें आत्मा की परिकल्पना नहीं की गई है. यह पुनर्जन्म में विशवास करता है. बौध धर्म ने जाति प्रथा और वर्ण व्यवस्था का विरोध किया. बौध धर्म का दरवाजा हर जातियों के लिए खुला था. सत्रियों को भी संघ में प्रवेश का अधिकार प्राप्त था. बौध संघ का संगठन गणतंत्र प्रणाली पर आधारित था. बौधों का सबसे पवित्र एवं महत्वपूर्ण त्यौहार वैशाख पूर्णिमा है जिसे ‘बुद्ध पूर्णिमा’ के नाम से भी जाना जाता है. इसका महत्व इसलिए हैं क्योंकि इसी दिन बुद्ध का जन्म, ज्ञान की प्राप्ति एवं महापरिनिर्वाण की प्राप्ति हुई.
महात्मा बुद्ध अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में हिरण्यवती नदी के तट पर कुशिनारा पहुंचे. जहां पर 80 वर्ष की अवस्था में इनकी मृत्यु हो गई. इसे बुद्ध परम्परा में महापरिनिर्वाण के नाम से जाना जाता है. मृत्यु से पहले उन्होंने अपना अंतिम उपदेश कुशिनारा के परिव्राजक सुभच्छ को दिया. महापरिनिर्वाण के बाद बुद्ध के अवशेषों को आठ भागों में विभाजित किया गया.
अंत में महात्मा बुद्ध के अनमोल विचार या कोट्स
इसमें कोई संदेह नहीं है की महात्मा बुद्ध की शिशाओं और कथनों को अपने जीवन में उतार कर सुख-समृद्धि और सफलता प्राप्त कर सकते हैं. जीवन की कई समस्याओं से बच सकते हैं.
1. तीन चीजें ज्यादा देर तक नहीं छुप सकतीं, सूर्य, चंद्रमा और सत्य.
2. तुम अपने क्रोध के लिए नहीं दंड पाओगे, तुम अपने क्रोध के द्वारा दंड पाओगे.
3. मैं कभी नहीं देखता कि क्या किया जा चुका है. मैं हमेशा देखता हूँ कि क्या किया जाना बाकी है.
4. जिसने अपने को वश में कर लिया है, उसकी जीत को देवता भी हार में नहीं बदल सकते.
5. हजारो साल बिना समझदारी के बिना जीने से बेहतर है, एक दिन समझदारी के साथ जीना.
6. घ्रणा को घ्रणा से खत्म नहीं किया जा सकता है बल्कि इसे प्रेम से ही खत्म किया जा सकता है जो की एक प्रक्रतिक सत्य है.
7. हम अपने विचारों से ही अच्छी तरह ढलते है, हम वही बनते है जो हम सोचते है. जब मन पवित्र होता है तो खुशी परछाई की तरह हमेशा हमारे साथ चलती है.
8. अपने मोक्ष के लिए खुद ही प्रयत्न करें, दूसरों पर निर्भर ना रहे.
9. शारीरिक आकर्षण आँखों को आकर्षित करती है, अच्छाई मन को आकर्षित करती है.
10. आज हम जो कुछ भी हैं, वो हमने आज तक क्या सोचा इस बात का परिणाम है.