केवल कृष्ण पनगोत्रा
जब तबलीगी जमात वाले मौलाना साद का एक कथित ऑडियो सामने आया तो कई मीडिया संस्थानों ने खबरें चलायी। इस ऑडियो में मौलाना कोरोना वायरस का जिक्र करते हुए कह रहे हैं, “यह ख्याल बेकार है कि मस्जिद में जमा होने से बीमारी पैदा होगी, मैं कहता हूं कि अगर तुम्हें यह दिखे भी कि मस्जिद में आने से आदमी मर जायेगा, तो इससे बेहतर मरने की जगह कोई और नहीं हो सकती। अल्लाह पर भरोसा करो, कुरान नहीं पढ़ते अखबार पढ़ते हैं और डर जाते हैं, भागने लगते हैं। अल्लाह कोई मुसीबत इसलिये ही लाता है कि देख सके कि इसमें मेरा बंदा क्या करता है। कोई कहे कि मस्जिदों को बंद कर देना चाहिये, ताले लगा देना चाहिये, क्योंकि इससे बीमारी बढ़ेगी तो आप ख्याल को दिल से निकाल दो।”
अब कोई मौलाना साद से पूछे कि मौलाना जिन लोगों से आप यह कह रहे थे कि ‘मरने के लिए मस्जिद से बेहतर जगह नहीं हो सकती’, उन्हीं में से कई मर भी रहे हैं। मज़हब को ही मौत बना रहे हैं। छुप रहे, छिपा रहे और सरकार ढूंढ रही है। उनसे तमाम और लोग संक्रमित हो रहे हैं, उनके खुद के परिवार संक्रमित होंगे।
मज़हब मौत का जरिया नहीं है लेकिन बनाया गया और बनाया जा रहा है। मज़हब के ठेकेदारों द्वारा बनाया जा रहा है। मौलाना साद जैसे जहिलों द्वारा बनाया जा रहा है।
अब एक तबका है, जो चाहता है कि कोरोना वायरस के लिये इसी समुदाय को दोषी ठहरा दे। दूसरा तबका है जो चाहता है कि इस जाहिलियत को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ विचार बता दे, और उस अनपढ़ को दुनिया का मसीहा घोषित कर दे। आखिर बचाव किस चीज का हो रहा है? मौतों का ही न?
मौलाना साद अकेले नहीं हैं। मुजफ्फरनगर के मदरसा रोज़ातुल कुरान में जुटे मौलानाओं ने कहा, ‘कोरोना से सारी दुनिया कांप रही है, मगर मुसलमानों को इससे डरने की ज़रूरत नहीं है। पवित्र कुरान में हर बीमारी का इलाज़ है। हमें दीन की राह पर चलना है और ईमान मजबूत रखना है।’
उसी कार्यक्रम में एक और मौलाना हसन कांधलवी ने कहा कि 29 अप्रैल को दुनिया ख़त्म हो जाएगी, लेकिन मुसलमान चिंता न करें।
करोना वायरस के संकट की मुसीबत से हम यह भी नहीं सीख रहे कि हम लोग किन विचारों, किन कर्मकांडों में फंसे हैं।
जाहिल धार्मिक पंडों और मौलानाओं के चक्कर में करोड़ों हिंदू और करोड़ों मुसलमान फंसे हुए हैं। अगर आप भी फंसे हैं तो मेरी विनम्र अनुरोध है कि निकल आइये। किसी भी धर्म के अनुयायियों को ऐसे धर्मगुरुओं से ख़तरा है, जो आपके बच्चों को मध्ययुग में ले जाते हों। इनसे भी सोशल दूरी बनाने की जरूरत है, संकट की इस घड़ी में खासकर।
इस चर्चा के संदर्भ में 28 मार्च 2020 को संजीवनी टूडे में छपे एक समाचार को अक्षरश: उद्धरित न किया तो मुद्दे से अन्याय होगा। बेगूसराय डेटलाइन से खबर बोल रही है-
“नोवल कोरोना वायरस (कोविड-19) वैश्विक महामारी का रूप लेकर मानवता को लीलने के लिए आतुर है तो इस विषम परिस्थिति से निबटने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग लागू करना एक जरुरी कदम है। देश इस अदृश्य दानवी ताकत के खिलाफ युद्धरत है तो वहीं धार्मिक अंधविश्वास की खेती करने वालों को यह विपरीत समय भी माकूल लग रहा है। विभिन्न तरह के धार्मिक अफवाह फैलाकर लोगों को बरगलाया जा रहा है।
कहीं दुर्गा सप्तशती, हनुमान चालीसा और रामायण के अंदर दिव्य बाल मिलने और उस बाल से कोरोना की मुक्ति जैसा प्रोपेगैंडा फैलाने का कारोबार चल रहा है। वायरस के संक्रमण से बचने के लिए लोगों को जागरूक करने के साथ अंधविश्वास से बचने के लिए प्रेरित कर रहे डॉ. अभिषेक कुमार एवं मुकेश विक्रम इत्यादि कहते हैं कि ईश्वर या अल्लाह में आस्था रखना गलत नहीं है, गलत तो है आस्था के नाम पर अंधविश्वासी हो जाना।
अगर पूजा करने से, नमाज पढ़ने से भारत कोरोना मुक्त हो जाता तो आज देश के तमाम मंदिरों और मस्जिदों में ताला लटका नहीं लगा होता। मुसलमान भाई जो कुरान और नमाज में कोरोना का हल तलाश रहे हैं उन्हें सोचना चाहिए कि अगर यह हल होता तो मुस्लिम देश बांग्लादेश, ईरान, सऊदी अरब आदि के साथ मक्का-मदीना मस्जिद में ताला बंद नहीं होता।
दुर्गा सप्तशती, रामायण या हनुमान चालीसा हो अथवा कुरान, बाइबिल, गुरुग्रंथ, यह सब हमें कर्मनिष्ठ, कर्तव्यनिष्ठ होने की प्रेरणा देता है, कर्मच्युत होकर अंधविश्वासी बनने की नहीं। कोविड-19 के खिलाफ युद्ध में हमारा कर्म है कि स्वच्छ, संयमित और सतर्क रहना, खुद जागरूक होना तथा लोगों को जागरूक कर लॉकडाउन तथा सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करने के लिए प्रेरित करना। इस युद्ध में सरकार के दिशा-निर्देशों का पालन करने से ही मानवता की जीत होगी और कोरोना की हार।”
विश्व में अब तक 59,000 से ज्यादा लोग करोना वायरस का शिकार चुके हैं। कोई जाहिल तीन माह पूर्व सामने आयी बीमारी को तीन हजार साल पहले की पवित्र किताब से जोड़ रहा है। आप उसके अनुयायी हैं? ये कैसे लोग हैं, जो पढ़-लिख कर ऐसे लोगों का बचाव करते हैं? यह एक वैचारिक प्रश्न है।
इसलिए धर्म के मकड़जाल से बाहर आइये। अपनी आस्था को अपनी मौत मत बनाएं।