आत्माराम त्रिपाठी
यह अब हर साल का किस्सा है कि जाड़े की आहट के साथ दिल्ली व उत्तर भारत के दूसरे शहरों में प्रदूषण की परत वातावरण पर हावी हो जाती है। इस दौरान आरोप-प्रत्यारोप तथा समस्या का ठीकरा दूसरे राज्यों पर फोड़ने का सिलसिला बदस्तूर जारी रहता है। यह बताये बिना कि पिछले कई वर्षों से जारी समस्या के समाधान के लिये स्थायी प्रयास क्या हुए हैं। हद से हद पराली जलाने का जिम्मा किसान के सिर डालकर कर्तव्य की इतिश्री कर ली जाती है। यह जाने बगैर कि किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिये दिया गया मुआवजा पर्याप्त था या इसके वैकल्पिक प्रयासों का कोई वास्तविक लाभ मिल भी रहा है या नहीं। दरअसल, चिंता की बात यह है कि कोरोना संकट के बीच यह प्रदूषण बेहद घातक साबित हो सकता है। यह तथ्य सर्वविदित है कि कोविड-19 महामारी का संक्रमण सांस नली और फेफड़ों पर मारक होता है। जैसे कि चिकित्सा विशेषज्ञ बता रहे हैं कि यह प्रदूषण कोरोना संकट को घातक बना सकता है। आरोप-प्रत्यारोपों के बीच सांस संबंधी रोग से पीड़ित और अन्य लोग जहरीली हवा में संास लेने को अभिशप्त हैं। पिछले दिनों दो चिंता बढ़ाने वाली रिपोर्टें सामने आईं जो बताती हैं कि उत्तरी क्षेत्र एक खतरनाक प्रदूषण वाली धुंध की चादर में ढका है। एक रिपोर्ट बताती है कि हरियाणा का बल्लभगढ़ पी.एम. 2.5 प्रदूषक कणों के चलते देश में सबसे प्रदूषित शहर है, जिसका 340 स्तर वायु गुणवत्ता सूचकांक के लिहाज से बहुत खराब है। दूसरे स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2020 की रिपोर्ट के निष्कर्ष के अनुसार वायु प्रदूषण पी.एम. 2.5 कणों के चलते स्वास्थ्य जोखिमों में मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है। रिपोर्ट बताती है कि भारत में दूषित वायु के चलते वर्ष 2019 में हृदय व फेफड़ों के रोगों, मधुमेह तथा नवजातों की बीमारियों के कारण साढ़े सोलह लाख से अधिक मौतें हुईं, जिसे हमारे सत्ताधीशों को एक खतरनाक स्थिति के रूप में देखना होगा।
दरअसल यह चिंताजनक है कि वर्ष 2010 के बाद देश की वायु में पी.एम. 2.5 कणों का स्तर लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में उन कारकों से मुकाबले की चुनौती लगातार बढ़ी है जो हवा में जहरीले कणों में इजाफा करते हैं। मसलन यातायात, अपशिष्ट पदार्थ, धूल, उद्योग और पराली जलाना आदि। हम बल्लभगढ़ में उत्पन्न स्थिति के कारकों पर विचार करें। पंजाब-हरियाणा के खेतों में जलने वाली पराली का स्थायी समाधान निकालें। साल में एक-दो महीने राग अलापने से समस्या दूर न होगी। हम सोचें कि पंजाब में इस बार पराली जलाने की घटनाओं में तीन गुना वृद्धि क्यों हुई। कमोबेश हरियाणा में भी पराली जलाने की घटनाओं में सत्तर फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। घटनाक्रम सत्ताधीशों को चेताता है कि जन स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने वालों पर शिकंजा कसें। दरअसल, केंद्र के कृषि सुधार कानून पर पंजाब में किसानों के उबाल को देखते हुए केंद्र सरकार किसानों पर सख्ती से से बच रही है लेकिन इस मामले में किसी भी ढील का अर्थ है कि दूषित होती हवा और जन स्वास्थ्य के प्रति आंख मूंदना। इस दिशा में दिल्ली के मुख्यमंत्री का केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावेड़कर को दिया गया यह सुझाव विचारणीय है कि दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों से इस मुद्दे पर नियमित रूप से बैठकें की जायें। निश्चित रूप से लगातार होने वाले संवाद से समस्या के समाधान की दिशा में सार्थक पहल की जा सकती है। यह समस्या शीर्ष स्तर पर सजगता व सक्रियता से दूर की जा सकती है। लेकिन कोरोना संकट के बीच तत्काल पहल करने की जरूरत है। उत्तर प्रदेश व हरियाणा की थर्मल पावर इकाइयों व औद्योगिक यूनिटों को 2015 के मानकों के अनुरूप नियंत्रित करने की जरूरत है। विडंबना यह भी है कि पूर्णबंदी के चलते औद्योगिक इकाइयां अभी तक पटरी पर नहीं आई हैं। इसके बावजूद वाहनों के परिचालन में नियंत्रण और पराली जलाने पर अंकुश लगाने जैसे फौरी कदम कोरोना संकट के मद्देनजर उठाने तो जरूरी हैं।