मोहन द्विवेदी
महाभारत के युद्ध के शुरु होने की सभी तैयारियां होने लगीं। श्रीकृष्ण ने घोड़ों को बांधा और सारथी के आसन से पीछे अर्जुन के बराबरी में जाकर बैठ गए | उन्होंनें कुंती पुत्र अर्जुन के कांपते हाथों को अपने हाथों में लेकर उनकी झुकी ठुड्डी को अपने हाथों से ऊपर उठाते हुए समझाते हुए धर्म की शिक्षा देने लगे तो अर्जुन बोले कि हे माधव ! “जो स्वयं सामने दिख रहा हो, उसके विषय में अधिक क्या सोचना ? युद्ध का परिणाम कुलनाश, जतिनाश और….सर्वनाश है | यह केवल पाप है। स्वयं काल का ग्रास बनना कोई धर्म नहीं। मैं अपने पूज्य गुरु द्रोड़ और पितामह भीष्म को मारने से अच्छा है कि मैं भिक्षा मांगकर ही अपना निर्वाह कर लूं | भला मैं, अपने स्वजनों, गुरुजनों और पितामह पर कैसे हथियार उठा सकता हूं ?”
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि “तुमने यह कैसे सोच लिया, कि तुम्हीं इन गुरुजनों और आचार्यों को मार सकोगे ? इसका उल्टा भी तो हो सकता है ! दूसरा पक्ष भी तो तुम्हें मार सकता है |” कृष्ण अर्जुन के कायरतापूर्ण, अनर्गल प्रलाप को सुन रहे थे और सोच रहे थे कि धर्म की बात करने वाला अर्जुन अपनी कर्तव्यपरायणता का धर्म भी भूल गया है | इसी घड़ी के लिए उसने जीवन – भर तपस्या की है ! जाने किस – किस देवता की सेवा कर उनसे असंख्य दिव्यास्त्र एकत्रित किए हैं। कृष्ण के ऐसे असंख्य प्रश्नों को सुनकर अर्जुन का मुंह लटक गया, उसमें साहस नहीं हुआ कि वह कृष्ण की आंखों में देख सके | उसे श्रीकृष्ण की खुली, चौड़ी, प्रश्न पूछती आंखों ने ही सब कुछ अहसास करा दिया कि उसमें कायरता प्रवेश कर रही है |
बहुत कहने समझाने के बाद अर्जुन जब ऊर्जा से भर गए तो उन्होंने प्रश्न किया “फिर मेरा धर्म क्या है, मधुसूदन ?”
तब कृष्ण अर्जुन से कहे “हे अर्जुन ! तुम अपने कर्तव्य, अपने धर्म का पालन करो | इससे बढ़कर एक क्षत्रिय के लिए कोई कल्याणकारी कर्तव्य नहीं होता | इस युद्ध को तुमने जान-बूझकर खड़ा नहीं किया है | सभी पांडवों ने संधि करने की बहुत चेष्टा की, किन्तु किसी भी प्रकार से दुर्योधन ने तुम्हारा राज्य वापस लौटाने से मना कर दिया | इसलिए हे अर्जुन ! मार्ग कितना भी कठिन हो, मनुष्य को कभी अपना कर्तव्य पालन नहीं भूलना चाहिए और इस समय यह युद्ध तो तुम्हें कर्तव्य रूप में प्राप्त हुआ है | इसलिए हे अर्जुन! आगे बढों और अपने कर्तव्य का पालन करों |”
कर्तव्य परायणता मनुष्य जीवन की स्थिरता एवं प्रगति का अस्तित्व एवं आधारशिला होता है | इससे विमुख नहीं होना चाहिए क्योंकि व्यक्ति को उसके कर्तव्य कर्म के रूप में प्राप्त होते हैं | कर्तव्य पालन करने वाला व्यक्ति कर्तव्य निष्ठा का परिचय देता है | निर्बलों एवं असहायों की मदद, जरूरतमंदों की आवश्यकता पूर्ति, राष्ट्रीय संपत्ति की सुरक्षा अपना अधिकार एवं कर्तव्य, नारियों का सम्मान, बड़े बुजुर्गो का सम्मान, किसान के लिए कृषि कार्य, राजा के लिए प्रजापालन, भक्त के लिए भगवान का स्मरण, गुरु के लिए शिष्य को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाना, विद्यार्थी के लिए विद्याध्ययन, चिकित्सक के लिए रोगी का समुचित इलाज, दास के लिए स्वामिभक्ति, राष्ट्र रक्षक के लिए राष्ट्र रक्षा में सर्वस्व न्यौछावर हो जाना इत्यादि कर्त्तव्य परायणता के सर्वोत्तम उदाहरण हैं। कर्त्तव्यपरायण होना हमें केवल सद्मार्ग की ओर ले जाता है। हमें भी अपनी कर्त्तव्य परायणता का आत्मबोध होना तथा उसके पालन के लिए सदैव तत्पर बने रहना चाहिए।