प्रधान संपादक की रिपोर्ट
चुनाव आयोग ने देश के 6 राज्यों – उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, महाराष्ट्र, तेलंगाना और ओडिशा की सात विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की तारीख का ऐलान कर दिया है. अगले महीने 3 नवंबर को इन सात सीटों पर होने वाले मतदान में एक तरफ जहां बीजेपी के सामने अपनी लोकप्रियता साबित करने की चुनौती है तो वहीं कांग्रेस को भी यह साबित करना है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का चुनावी फायदा मिलना शुरू हो गया है।
दरअसल, देश के अलग-अलग हिस्सों में जिन सात विधान सभा सीटों पर उपचुनाव होना है उनमें से तीन सीटें पिछले चुनाव में बीजेपी के खाते में आई थीं. दो सीट पर कांग्रेस को जीत हासिल हुई थी और अन्य दो सीटों पर आरजेडी और शिवसेना के उम्मीदवार जीते थे जो कांग्रेस गठबंधन के साथ हैं।
दांव पर लगी बीजेपी-कांग्रेस की साख
कांग्रेस के टिकट पर पिछली बार चुनाव जीतने वाले दो विधायक बाद में बीजेपी में शामिल हो गए और उनके इस्तीफे की वजह से ही इन सात में से दो सीटों पर उपचुनाव करवाया जा रहा है. इसलिए एक मायने में देखा जाए तो इस उपचुनाव में कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों की प्रतिष्ठा ज्यादा दांव पर लगी है। हरियाणा की आदमपुर सीट पर पिछले चुनाव में कांग्रेस के कुलदीप बिश्नोई और तेलंगाना की मुनुगोडे सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर के राजगोपाल रेड्डी ने जीत हासिल की थी लेकिन इन दोनों नेताओं ने कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया और अपनी-अपनी सीट से इस्तीफा दे दिया. कांग्रेस के सामने इन दोनों सीटों पर फिर से जीत हासिल करना बड़ी चुनौती है।
महाराष्ट्र की अंधेरी ईस्ट विधान सभा से पिछले चुनाव में शिवसेना उम्मीदवार रमेश लटके को जीत हासिल हुई थी लेकिन उनके निधन के कारण यह सीट खाली हो गई. शिवसेना में फूट पड़ने और उद्धव ठाकरे सरकार के गिरने के बाद यह पहला चुनाव होगा जिसमें एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे गुट आमने सामने होंगे.
चुनावी अग्निपथ में कौन बनेगा बादशाह
शिवसेना के साथ मिलकर सरकार चला चुकी कांग्रेस और अभी एकनाथ शिंदे को समर्थन देकर सरकार चला रही बीजेपी, दोनों ही राष्ट्रीय दलों के लिए यह चुनाव नाक का सवाल बन गया है. बिहार के मोकामा में पिछले चुनाव में आरजेडी के टिकट पर बाहुबली नेता अनंत सिंह जीते थे लेकिन अदालत से सजा मिलने के बाद उनकी विधायकी खत्म हो जाने की वजह से इस पर उपचुनाव करवाया जा रहा है।
बिहार में नीतीश के सामने ये चुनौती?
बिहार की दूसरी विधान सभा सीट गोपालगंज में पिछला चुनाव बीजेपी जीती थी लेकिन बीजेपी विधायक सुभाष सिंह के निधन के कारण इस सीट पर उपचुनाव हो रहा है. बीजेपी के सामने जहां लालू यादव के गृह जिले में अपनी सीट को बरकरार रखने की चुनौती है तो वहीं नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के सामने यह साबित करने की चुनौती है कि उनके कार्यकर्ता और मतदाताओं का भी गठबंधन हो चुका है और जिस जातीय आंकड़े के आधार पर वो लोक सभा चुनाव में बिहार में बीजेपी का सूपड़ा साफ करने का दावा कर रहे हैं वह जातीय अंकगणित महागठबंधन के पक्ष में मजबूत हो चुका है.
बीजेपी के लिए नाक का सवाल
उत्तर प्रदेश के गोला गोकर्णनाथ विधान सभा से पिछली बार बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर अरविंद गिरी और ओडिशा के धामनगर से बीजेपी के बिष्णु चरण सेठी चुनाव जीते थे. दोनों विधायकों के निधन के कारण इन सीटों पर उपचुनाव हो रहा है।उत्तर प्रदेश में अपनी लोकप्रियता को साबित करने के लिए बीजेपी के लिए यह चुनाव काफी अहम है. वहीं ओडिशा में अपनी जीती हुई सीट को फिर से जीतना भी बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है. इस सीट पर राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी बीजू जनता दल और कांग्रेस की साख भी दांव पर लगी है।इन सीटों पर 6 नवंबर को मतगणना होनी है और अगर चुनाव आयोग हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधान सभा चुनाव की तारीख इसके बाद का रखता है तो उपचुनाव के इन चुनावी नतीजों का असर इन दोनों राज्यों में BJP और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और नेताओं के साथ-साथ मतदाताओं पर भी पड़ना तय माना जा रहा है।