देहरादून: कोरोना संक्रमण के आने के बाद से विश्वविद्यालय और कॉलेज अभी सही तौर से खुले तक नहीं है। यह छात्र अपनी पढ़ाई से ज्यादा चुनावी सर गर्मियों में दिलचस्पी ले रहे हैं। फिर ऐसे में छात्र हितों का दम भरने वाले यह छात्र नेता शिक्षा की बजाएं कॉलेज चुनाव को लेकर ज्यादा चिंतित दिखाई दे रहे हैं। आखिर इन छात्र नेताओ की चुनावो में इतनी दिलचस्पी क्यों है? क्या वजह है जो पढाई पर ध्यान न देकर ये छात्र नेता चुनाव के लिए ज्यादा आतुर दख रहे है…
उत्तराखंड के सबसे बड़े डीएवी पीजी कालेज में हर साल छात्र संगठन के चुनावों में लाखों रुपये लुटाए जाते हैं। बड़े छात्र संगठन चुनाव लड़ने के लिए कई व्यापारियों, अपनी पार्टी नेताओं व उद्योगपतियों से चंदा वसूलते हैं। यह छात्र नेता सरकारी विभाग तक नहीं छोड़ते हैं। डीएवी कालेज में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (एनएसयूआइ), आर्यन, सत्यम शिवम छात्र संगठन, एसएफआइ, शिवम जैसे छात्र संगठन हर वर्ष चुनाव लड़ते हैं। यह छात्र नेता चुनावों में प्रचार के लिए न केवल पोस्टर, पंफ्लेट व बैनर, हेंड कार्ड का प्रयोग करते हैं, बल्कि पार्टियों का आयोजन भी किया जाता है। इनमें लाखों रुपये खर्च किए जाते हैं। लिंगदोह कमेटी के नियमानुसार छात्र संगठन में फिजूलखर्ची पर अंकुश लगाया गया है, लेकिन छात्र संगठन इसकी कोई प्रवाह नहीं करते हैं।
उधर, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रांत संगठन मंत्री प्रदीप शेखावत ने कहा कि उनका संगठन बेहद सीमित संसाधनों का प्रयोग कर चुनाव लड़ता है। किसी से भी धन की उगाई जैसा कार्य नहीं किया जाता है। एनएसयूआइ के प्रदेश अध्यक्ष मोहन भंडारी ने कहा कि उनके संगठन को कांग्रेस के बड़े नेता स्वयं चंदा देते हैं। कई वरिष्ठ पदाधिकारी चुनाव लड़ने की प्रचार सामग्री छपवाने में आर्थिक मदद करते हैं।