गणेश कुमार झा की रिपोर्ट
पाकुड़। मनुष्य, प्रकृति को नियंत्रित कदापि नही कर सकता है, लेकिन मनुष्य, अपनी हरकतो व मानसिकता को तो जरूर नियंत्रित कर सकता है । प्रति वर्ष मानसून का आना, मुसलाधार बारिश होना ये तो प्राकृतिक घटनाक्रम है जो सतत और सदैव चलती रहेगी, लेकिन मानवीय कुचेष्ठाए व प्रशासनिक असंवेदनशीलता के कारण पाकुड़वासी हर साल जल जमाव से परेशान व त्रस्त होने को मजबूर है । बात करें तो फाटक के पार मिशन स्कूल का मुख्य द्वार, रेलवे फाटक(अंडर पास), हाटपाड़ा के बिरसा चौक से इंदिरा चौक तक, वार्ड नंo तीन के मोहल्ले की गलिया और संकरी सडके, हर जगह आपको जलजमाव के नजारे मिल जाएगे । जल संरक्षण बेहद जरूरी है लेकिन प्रशासनिक इच्छाशक्ति के अभाव एवं मानवीय स्वार्थ के कारण इस तरह के जल संरक्षण लोगो को परेशानी में डाल रहे है । इसके लिए प्रशासन के साथ साथ लोगो को भी विचार करना चाहिए । इस बाबत जानकारो का कहना है कि पाकुड़ दुमका मुख्य सडक के किनारे अतीत मे कभी महानाला हुआ करता था जिसे कालांतर में संबंधित विभाग के नजरअंदाज किए जाने के कारण सडक के किनारे के दुकानदारो ने अपनी अपनी सुविधा के लिहाज से ढक दिया एवं उक्त महानाले के उपर अब उक्त दुकानदारो के ग्राहक की आवाजाही होती है एवं वाहनो का ठहराव किया जाता है ।