शेखर की रिपोर्ट
याद करो वह दिन जब हर शाम मोहल्ले की गलियां बच्चों के शोर से गूंज उठा करते थे
वह लड़कपन और वह उधम मोबाइल की दुनिया में कहीं खो गया है बस क्योंकि बच्चों का अब ज्यादातर वक्त खेलने में तो दिखता है लेकिन मोबाइल पर आलम यह है कि बच्चों को खाना भी खाना हो तो एक हाथ में मोबाइल चाहिए
आपको बताते जाए कि पिछले डेढ़ साल से कोरोना के चलते बच्चों के भी बाहर जाने पर पाबंदी है इस कारण बच्चे स्कूल से दूर और मोबाइल के नजदीक हो गए हैं ऑनलाइन क्लास और टीवी में मशगूल बच्चों का स्क्रीन टाइम बढ़ गया है ऐसे में बच्चों का व्यवहार बदलने लगा है आंखों संबंधित हकीकत भी बड़ी है सामान्य दिनों की अपेक्षा कोरोना काउंट में स्क्रीन टाइम 4 से 5 गुना बड़ा है इसका असर बच्चों को आंखों की सेहत पर पड़ रहा है आंखों में दर्द चुभन भारीपन लाल होना पानी गिरना सिल्की लक्षण सामने आ रहे हैं इतना ही नहीं वह बीमारियां आंखों को पीड़ा देने के साथ बच्चों पर मानसिक दबाव बढ़ा रही है ऐसे में बच्चों ने चिड़चिड़ी हो रहे हैं उनके सभा में गुस्सा बढ़ता जा रहा है जिला अस्पताल बीआरडी मेडिकल कॉलेज के ओपीडी में ऐसे बच्चे को लेकर परिजन पहुंच रहे हैं वहीं बीआरडी मेडिकल कॉलेज के नेतृत्व के विभाग के अध्यक्ष डॉ रामकुमार जायसवाल के मुताबिक दिन भर मोबाइल पर लैपटॉप देखने की से बच्चों को आंखें कमजोर हो रही है रोजाना पांच से सात अभिभावक बच्चों को लेकर ओपीडी में आ रहे हैं बच्चों को मोबाइल के चलते चिड़चिड़ी हो रहे बच्चे बीआरडी मेडिकल कॉलेज के मानसिक रोग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ आमीन हयात खान ने बताया कि कोविड-19 बच्चे घरों में कैद है घर में रहने के चलते और दिन भर मोबाइल में व्यस्त होने के चलते बच्चे चिड़चिड़ी हो रहे हैं घबराहट भी बड़ी है सिर दर्द की परेशानी भी आम है रोजाना 10 से 15 भावत बच्चों के व्यवहार में तभी तब्दीली संबंधी शिकायत लेकर फोन पर या ओपीडी में आकर चला ले रहे हैं उन्होंने कहा की
तनाव से बचाव के उपाय खुद को खुश रखे एकांत में बच्चों को पाक ले जाएं रोशनी में मोबाइल देखने के अंधेरे में मोबाइल की स्क्रीन देखने से बचे घर में ही छोटे-छोटे खेल बच्चों संग खेले मां पहनकर पार्क आदि ने जा सकते हैं छत पर या घर के बगीचे में रोजाना आधे घंटे पहले